Agriculture Laws: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 418 दिनों के बाद देश की संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। कई लोग इसे मोदी का मास्टरस्ट्रोक बता रहे हैं, कई लोग इसे किसानों की जीत बता रहे हैं, विपक्षी पार्टियां इसे अपनी जीत मान रही हैं, खालिस्तानी इसे अपनी जीत मान रहे हैं और देश का ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ भी आज तालियां बजा रहा है तो ये किसकी जीत है और किसकी हार है?
प्रधानमंत्री ने बड़े दिल और विनम्रता का परिचय देते हुए कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की। लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) और अन्य किसान संगठनों ने तय किया है कि ये आंदोलन अब भी जारी रहेगा। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि उन्होनें बिजली संशोधन विधेयक (Electricity Amendment Bill) को वापस लेने की भी मांग की है और जब तक ऐसा नहीं होता ये आंदोलन जारी रहेगा। राकेश टिकैत ने कहा है कि जब तक कृषि कानूनों को खत्म करने की संवैधानिक कार्रवाई पूरी नहीं हो जाती तब तक वो आंदोलन खत्म नहीं करेंगे। उन्होंने ये भी कहा है कि अब वो एमएसपी यानि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिये अलग कानून चाहते हैं और ये मांग भी सरकार को पूरी करनी चाहिये।
राकेश टिकैत के शब्दों से आप समझ सकते हैं कि ये आंदोलन असल में कृषि कानूनों के बारे में नहीं है, ये प्रधानमंत्री मोदी को हटाने के लिये है। आज केंद्र सरकार एमएसपी का कानून बना भी ले तो ये आंदोलन खत्म नहीं होता। क्योंकि ये लोग कानून नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी को हटाना चाहते हैं।
उम्मीदों के उल्ट जाते हुए, प्रधान मंत्री मोदी ने इस कदम से लोकतंत्र को संसद से बाहर निकालने की कोशिश की। लेकिन जो लोग बाहर बैठे हैं वे कह रहे हैं कि जब तक सरकार संसद में इन कानूनों को निरस्त नहीं करती तब तक वे आंदोलन करते रहेंगे। इसलिए अगर आपको भी लगता है कि ये किसान आंदोलन रुक जायेगा तो आप गलत हैं। अभी तो दिल्ली के बॉर्डरों की कई सड़कें इसी तरह घिरी रहेगी और संसद के शीतकालीन सत्र (Winter Session Of Parliament) का इंतजार करना होगा।
देश के वो किसान बेहद दुखी हैं जो देश के कृषि क्षेत्र में सुधार की उम्मीद किये बैठे थे। पंजाब और हरियाणा को छोड़कर देश के बाकी 26 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों के किसान चाहते थे कि इन कृषि कानूनों को लागू किया जाये। लेकिन दो राज्यों के मुट्ठी भर किसानों की वजह से देश इस कृषि सुधार को नहीं अपना सका। देश के ये किसान बहुत निराश होंगे। लेकिन ये कहना विडंबना ही होगी कि हमारे देश की विपक्षी पार्टियां इसे अपनी जीत मानकर कर खुश हैं। आज राहुल गांधी ने भी इस पर एक ट्वीट किया और लिखा कि ये देश के 'अन्नदाता' की जीत है। कल्पना कीजिये कि जो आंदोलन दो राज्यों के किसानों तक सीमित था, वो देश के अन्य राज्यों के किसानों की आवाज कैसे हो सकता है।
आपने देखा होगा कि आज विपक्षी पार्टियों के चेहरे उतर गये हैं लेकिन फिर भी हर कोई इस फैसले को अपने-अपने तरीके से देख रहा है और अपनी जीत बता रहा है।
इस फैसले को उत्तर प्रदेश और पंजाब के विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh and Punjab assembly elections) से भी जोड़कर देखा जा रहा है और कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने ये फैसला किसानों के हित में नहीं बल्कि चुनाव के हित में लिया है। ये सच नहीं है, ये कानून पिछले साल 27 सितंबर 2020 को लागू हुए थे। उसके बाद बीजेपी ने असम चुनाव जीता, बंगाल में 77 विधानसभा सीटें जीतीं, जहां पहले उसके पास सिर्फ 3 सीटें थीं, गुजरात और यूपी में पंचायत चुनाव जीते, कई राज्यों में उपचुनाव जीते। अगर ये फैसला उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनावों को ध्यान में रखकर लिया गया होता तो सवाल ये है कि कानून लागू होने के बाद देश में बीजेपी ने ये चुनाव कैसे जीते?
प्रैक्टिकल बात ये है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं और चुनाव अहंकार से नहीं जीते जाते बल्कि विनम्रता ही जीत का मार्ग प्रशस्त करती है। न सिर्फ उत्तर प्रदेश में बल्कि पंजाब में भी चुनाव हैं, जहां इस आंदोलन में सबसे ज्यादा किसान शामिल हुए हैं। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने विनम्रता से मान किया कि शायद वो किसानों को अपनी बात ठीक से नहीं बता पाये और कहीं न कहीं कमियां थीं। लेकिन आपको इस फैसले की प्रासंगिकता भी समझनी चाहिए, प्रधानमंत्री मोदी ने ये फैसला श्री गुरू नानक देव (Sri Guru Nanak Dev) के 552वें प्रकाश पर्व के मौके पर लिया। इसी दिन सिखों के पहले सच्चे बादशाह गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था।
गुरु नानक जी कहा करते थे कि कुछ फायदे किसी को दिखायी नहीं देते। उनके जीवन का एक किस्सा है। एक बार उनके पिता ने गुरू महाराज को कुछ पैसे देकर एक गाँव भेज दिया और कहा कि वो वहाँ से सस्ती खाने की चीज़े खरीद कर दूसरे गाँव में ऊँची कीमत पर बेच दे। उनके पिता कारोबारी थे और एक कारोबार की कामयाबी की बुनियाद मुनाफा कमाना है। श्री गुरु नानक देव ने खाना खरीदा और उसे बेचने के लिये दूसरे गाँव गये, लेकिन रास्ते में उन्हें कुछ भूखे साधु मिले, जिन्होंने कई दिनों से कुछ नहीं खाया था। गुरु नानक ने जो कुछ खरीदा था वो सब साधुओं में बाँट दिया। इस पर उनके पिता को बहुत गुस्सा आया, लेकिन गुरु नानक ने कहा कि भूखे साधुओं का पेट भरने से ज्यादा फायदेमंद और क्या हो सकता है? ये अलग बात है कि इसका फायदा किसी को नहीं दिखता।
प्रकाश पर्व के दिन प्रधानमंत्री द्वारा लिये गये फैसले का फायदा भले ही सीधे तौर पर ना दिखता हो, लेकिन उन्होंने विनम्रतापूर्वक देश भर के किसानों तक अपनी बात पहुंचायी। साथ ही उन्होनें सरकार और असली किसानों के बीच एक नये रिश्ते की शुरुआत की।