न्यूज डेस्क (शौर्य यादव): भारत के मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय न्यायिक खंडपीठ ने किसान आंदोलन (Kisan Andolan) की सुनवाई करते हुए, किसानों प्रतिनिधियों को गहरे पसोपेश में डाल दिया। फिलहाल किसान नेताओं के बीच आगामी 15 तारीख को होने वाली बैठक को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। मौजूदा गतिरोध को खत्म करने के लिए और साथ ही कानूनों को रद्द कराने से जुड़े मसले पर किससे बात की जाए। सुप्रीम कोर्ट की समिति से या केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों से। मौजूदा हालातों में किसान प्रतिनिधि अपने कानूनी सलाहकारों (Legal advisors) से इस मसले पर रायशुमारी कर रहे हैं। न्यायालय द्वारा विशेष समिति के गठन के बाद किसानों के लिए चीज किसी भी दूसरी समानांतर वार्ता मतलब नहीं रह जाता है।
अब इस बात पर भी शंका के बादल मंडरा रहे हैं कि, किसान 15 तारीख को होने वाली 9 वें दौर की प्रस्तावित बैठक में हिस्सा लेंगे भी या नहीं। फौरी तौर पर किसान संगठन सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेष कमेटी के सामने पेश नहीं होने की बात कह रहे हैं। किसान नेताओं के मुताबिक समिति के चारों सदस्य नये कृषि कानूनों के समर्थक हैं। ऐसे में समिति की निष्पक्षता पर बड़े सवालिया निशान लगते हैं। किसान संगठनों ने एक बार फिर अपनी मंशा साफ करते हुए जाहिर कर दिया कि, तीनों कानूनों को वापस लिए जाने से कम उन्हें कुछ भी स्वीकार नहीं है।
इस मुद्दे पर भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत काफी मुखर है। उनके मुताबिक समिति से वार्ता करना आंदोलन के सिद्धांतों के खिलाफ है। विशेष कमेटी का गठन सिर्फ ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने जिन 4 सदस्य को समिति में रखा है, वो कॉरपोरेट कृषि व्यवस्था (Corporate farming system) के पैरोकार है।ऐसे में आंदोलनकारी तयशुदा कार्यक्रम के तहत आगामी 26 जनवरी को किसान परेड निकाले जाने पर डटे रहेंगे और साथ ही दिल्ली की ओर कूच करेगें।
जानकारों के मुताबिक अगर किसान नियमित तौर पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति बातचीत करने के लिए तैयार हो जाते हैं तो इससे केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को काफी राहत मिलेगी। जिससे वे बार-बार बैठक करने की कवायद से बच जायेगें। हालांकि मुख्य न्यायाधीश ने मामले की सुनवाई के दौरान ये साफ कर दिया था कि, गठित की गई विशेष समिति सिर्फ तीनों के क्रियान्वयन से होने वाले ज़मीनी बदलावों के बारे में रिपोर्ट देगी। इसके साथ ही किसान पक्ष की चिंता और आंशकाओं को भी रिपोर्ट में जगह दी जायेगी।