नई दिल्ली (यथार्थ गोस्वामी): दशहरा (Dussehra) का त्यौहार राम के साथ-साथ रावण को भी समर्पित होता है। रावण एक ऐसा व्यक्ति था, जिसके बारे में लोग बेहद कम जानते है। लोग सिर्फ उसे घमंडी और सिरफिरा मानकर उसकी दूसरी चारित्रिक विशेषताओं (Characteristics) को दरकिनार कर देते है। भले ही वो राक्षसी और तामसिक प्रवृतियों का स्वामी था, लेकिन उसमें दूसरे कई अन्य गुण भी थे। जिस पर बेहद कम लोगों का ध्यान गया है। तुलसी कृत रामचरितमानस, बाल्मीकिकृत रामायण और तमिल रामायण सहित रामायण के कई अन्य संस्करणों में उसके गुणों के बारे में विस्तार से लिखा गया है। इनमें सबसे अधिक प्रमाणिक स्रोत बाल्मीकिकृत रामायण है, जिसे राम और रावण के समकालीन महार्षि बाल्मीकि (Maharishi Valmiki, contemporary of Ravana) ने लिखा था। महान शिवभक्त होने के साथ-साथ वो देवी निकुंभिला (Goddess Nikumbhila) का भी आराधक था, जो कि उनकी कुलदेवी थी। मौजूदा लिहाज़ से देखा जाये तो रावण का राज इंडोनेशिया, मलेशिया, बर्मा, आस्ट्रेलिया, जावा तक फैला हुआ था। इतना शक्तिशाली होने के बावजूद पूरे जीवनकाल के दौरान उसने सिर्फ तीन लोगों के सामने घुटने टेके सहस्त्रबाहु अर्जुन, वानरराज बाली और भगवान श्री राम।
राक्षसराज रावण से जुड़ी बेहद खास जानकारियां
- रावण को रावण नाम स्वयं भगवान शिव ने दिया था। रावण शब्द का मतलब होता है जो तेज आवाज में दहाड़ता हो। एक बार रावण भगवान शिव को कैलाश सहित लंका ले जाने लगा। भगवान शिव इसके लिए तैयार नहीं थे। भगवान शिव ने अपने पांव की उंगुलियों से कैलाश पर्वत को दबा दिया। जिसके कारण रावण कैलाश पर्वत के नीचे दबकर चिल्लाकर दहाड़ने लगा और भगवान शिव से क्षमा याचना करते हुए शिव तांडव मौके पर ही रच डाला। भगवान शिव प्रसन्न होकर क्षमादान दिया और साथ ही रावण नाम से अभिभूषित किया।
- रावण जाति से ब्राह्मण और वृतियों से राक्षस था। नोएडा के बिसरख गांव में देवगन गोत्र में उसका जन्म हुआ था। मंदसौर जोधपुर में उसकी ससुराल थी। रावण के छह (कुबेर, विभीषण, कुंभकरण, अहिरावण, खर और दूषण) और दो बहनें (शूर्पणखा और कुंभीनी) थी। देवयोग से उसे सात बलवान पुत्रों (मेघनाथ, अक्षय कुमार, अतिकाय, त्रिशरा, नरान्तक, परहस्त्र और देवांतक) की प्राप्ति हुई थी।
- भगवान ब्रह्मा जी के कई सारे मानस और अंश पुत्र थे। उनके दसवें पुत्र का नाम अनाम प्रजापति पुलत्स्य था। रावण के पिता ऋषि विश्रवा अनाम प्रजापति पुलत्स्य के ही पुत्र थे। ऋषि विश्रवा ने दो विवाह किये। पहला वरवणिनी और दूसरा कैकेसी से। वरवणिनी से उन्हें एक पुत्र के प्राप्ति हुई जो आगे चलकर धन के अधिपति देवता कुबेर बने। कैकसी से उन्हें रावण, कुंभकरण, शूर्पनखा औऱ विभीषण की प्राप्ति हुई। ऐसे में राक्षसराज रावण भगवान ब्रह्मा के पड़पोते भी है।
- रावण सभी ग्रह-नक्षत्रों को अपने इशारे पर नचाता था। मेघनाद के जन्म के समय एक खास दशा बनाने के लिए रावण ने सभी ग्रहों को विशेष स्थिति में रहने का आदेश दिया। जिससे मेघनाद का जन्म ऐसे मुर्हूत में हो सके कि वे अजर-अमर हो जाये। सभी ने ग्रहों ने रावण की बात मान ली। आखिर वक़्त में शनिदेव ने रावण के आदेश की अवहेलना कर दी। जिससे रावण काफी क्रोधित हो गया और उसने शनिदेव को ज़बरन कई सालों तक कारावास में बंदी बनाये रखा।
- रावण घमंडी होने के साथ बेहद महत्त्त्वकांक्षी था। वो चाहता था कि मूढ़मति के सभी राक्षण बुद्धिमान हो जाये। सभी राक्षस गौरवर्ण के हो। समुद्र का खारा पानी मीठा हो जाये। सोने का लंका से स्वर्ण की गंध आये। मदिरा की दुर्गंध समाप्त हो जाये। साथ ही वो मृत्युलोक और स्वर्गलोक के बीच सीढ़ी भी बनाना चाहता था।
- कहीं कहीं ये भी वर्णन आता है कि रावण के मृत शरीर को औषधियों का लेप करके लंका में आज भी कहीं संरक्षित किया गया है। नाग जाति के लोग उसे कई बार जीवित करने की कोशिश कर चुके है। उनका मानना है कि संजीवनी के इस्तेमाल से अगर लक्ष्मण को पुर्नजीवन मिल सकता है तो रावण को भी दुबारा जीवित किया जा सकता है।
- यन्त्र-तन्त्र-मन्त्र सभी विधाओं में उसे महारत हासिल थी। रावण संगीत का अच्छा जानकार था। शिव तांडव स्त्रोत, अरुण संहिता और रावण संहिता को उसने रचा था। इसके साथ ही आयुर्वेद, सम्मोहन, इन्द्रजाल, युद्धशास्त्र, रीति-नीति और प्रशासन उसने विशेषज्ञता प्राप्त की थी। रूद्र वीणा और सागर वीणा बजाने में रावण अत्यंत प्रवीण था।
- नासा के ‘प्लेनेटेरियम सॉफ्टवेयर’ (NASA’s Planetarium Software) की कैलकुलेशन के मुताबिक भगवान राम ने रावण का वध ईसा पूर्व 5076 साल पहले किया था।
- देशभर में कई जगह मंदिर बनाकर रावण को पूजा जाता है। कानपुर का कैलाश मंदिर साल भर में दशहरे वाले दिन एक बार खुलता है जहां पर रावण की पूजा की जाती है। श्री लंका सहित दक्षिण भारत में कई जगह रावण के मंदिर है। उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के कालपी में राक्षसराज रावण के समर्पित पूरा मंदिर है जिसे लंका मीनार के नाम से जाना जाता है। यहां पर रावण सहित उसके पूरे परिवार की पूजा अर्चना की जाती है।