पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण (Shri Krishna) ने 8 स्त्रियों से विवाह किया था जो उनकी पटरानियां बनी। ये थी – रुक्मिणी, जाम्बवती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रवृंदा, सत्या (नाग्नजिती), भद्रा और लक्ष्मणा। प्रत्येक पटरानी से उन्हें 10 पुत्रों की प्राप्ति हुई। इस तरह से उनके 80 पुत्र थे। आइये जाने श्री कृष्ण की 8 रानियों और 80 पुत्रों के बारे में बतायेगें।
1. रुक्मिणी- विदर्भ राज्य का भीष्म नामक एक वीर राजा था। उसकी पुत्री का नाम रुक्मिणी (Rukmini) था। वो साक्षात् लक्ष्मीजी का ही अंश थीं। वो अत्यधिक सुंदर और सभी गुणों वाली थी। नारद जी द्वारा श्रीकृष्ण के गुणों का वर्णन सुनने पर रुक्मिणी श्रीकृष्ण से ही विवाह करना चाहती थी। रुक्मिणी के रूप और गुणों की चर्चा सुनकर भगवान कृष्ण ने भी रुक्मिणी के साथ विवाह करने का निश्चय कर लिया था।
रुक्मिणी का एक भाई था, जिसका नाम रुक्मि था। उसने रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से साथ तय कर दिया। जब ये बात श्रीकृष्ण को पता चली तो वे विवाह से एक दिन पहले रुक्मिणी का हरण कर द्वारका ले गये। द्वारका पहुंचने के बाद श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह किया गया। रुकमणी के दस पुत्र पैदा हुये
रूक्मिणी के पुत्रों के ये नाम थे- प्रद्युम्न, चारूदेष्ण, सुदेष्ण, चारूदेह, सुचारू, विचारू, चारू, चरूगुप्त, भद्रचारू, चारूचंद्र।
2. जाम्बवती- सत्राजित नामक एक यादव था। उसने भगवान सूर्य की बहुत भक्ति की। जिससे खुश होकर भगवान ने उसे एक मणि प्रदान की थी। भगवान कृष्ण ने सत्राजित को वो मणि राजा उग्रसेन को भेंट करने को कहा लेकिन सत्राजित ने उनकी बात नहीं मानी और मणि अपने पास ही रखी। एक दिन सत्राजित का भाई प्रसेन उस मणि को लेकर जंगल में शिकार करने गया। वहां एक शेर ने प्रसेन का वध करके वो मणि छीन ली और अपनी गुफा में जा छिपा। कुछ दिनों बाद ऋक्षराज जाम्बवन्त ने शेर को मारकर वो मणि अपने पास रख ली।
सत्राजित ने मणि चुराने और अपने भाई का वध करने का दोष श्रीकृष्ण पर लगा। इस दोष के मुक्ति पाने के लिए श्रीकृष्ण उस मणि की खोज करने के लिए वन में गये। मणि की रोशनी से श्रीकृष्ण उस गुफा तक पहुंच गये, जहां जाम्बवन्त और उसकी पुत्री जाम्बवती (Jambavati) रहती थी। श्रीकृष्ण और जाम्बवन्त के बीच घोर युद्ध हुआ।
युद्ध में पराजित होने पर जाम्बवन्त को श्रीकृष्ण के स्वयं विष्णु अवतार होने की बात पता चली। श्रीकृष्ण का असली रूप जानने पर जाम्बवन्त ने उनसे क्षमा मांगी और अपने अपराध का प्रायश्चित करने के लिए अपनी पुत्री जाम्बवती का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।
जाम्बवंती के पुत्र ये थे- साम्ब, सुमित्र, पुरूजित, शतजित, सहस्रजित, विजय, चित्रकेतु, वसुमान, द्रविड़ व क्रतु।
3. सत्यभामा- मणि लेकर श्रीकृष्ण द्वारका पहुंचे। वहां पहुंचकर श्रीकृष्ण ने वो मणि सत्राजित को दी और खुद पर लगाये दोष को गलत साबित किया। श्रीकृष्ण के निर्दोष साबित होने पर सत्राजित खुद को अपमानित महसूस करने लगा। वो श्रीकृष्ण के तेज को जानता था, इसलिये वो बहुत भयभीत हो गया। उसकी मूर्खता की वजह से कहीं श्रीकृष्ण की उससे कोई दुश्मनी न हो जाये, इस डर से सत्राजित ने अपनी पुत्री सत्यभामा (Sathyabhama) का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।
सत्यभामा के पुत्रों के नाम थे- भानु, सुभानु, स्वरभानु, प्रभानु, भानुमान, चंद्रभानु, वृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु और प्रतिभानु।
4. सत्या (नग्नजिती)- कौशल राज्य के राजा नग्नजित की एक पुत्री थी। जिसका नाम नग्नजिती थी। वो बहुत सुंदर और सभी गुणों वाली थी। अपनी पुत्री के लिये योग्य वर पाने के लिये नग्नजित ने शर्त रखी। शर्त ये थी कि जो भी क्षत्रिय वीर सात बैलों पर जीत प्राप्त कर लेगा, उसी के साथ नग्नजिती का विवाह किया जायेगा। एक दिन भगवान कृष्ण को देख नग्नजिती उन पर मोहित हो गयी और मन ही मन भगवान कृष्ण से ही विवाह करने का प्रण ले लिया। भगवान कृष्ण ये बात जान चुके थे।
अपनी भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान कृष्ण ने सातों बैल को अपने वश में करके उन पर विजय प्राप्त की। भगवान का ये पराक्रम देखकर नग्नजित ने अपनी पुत्री का विवाह भगवान कृष्ण के साथ किया। सत्या के बेटों के नाम ये थे- वीर, अश्वसेन, चंद्र, चित्रगु, वेगवान, वृष, आम, शंकु, वसु और कुंत।
5. कालिन्दी- एक बार भगवान कृष्ण अपने प्रिय अर्जुन के साथ वन में घूम रहे थे। यात्रा की थकान दूर करने के लिये वे दोनों यमुना नदी के किनारे जाकर बैठ गए। वहां पर श्रीकृष्ण और अर्जुन को एक युवती तपस्या करती हुई दिखायी दी। उस युवती को देखकर अर्जुन ने उसका परिचय पूछा। अर्जुन द्वारा ऐसा पूछने पर उस युवती ने अपना नाम सूर्यपुत्री कालिन्दी (Suryaputri Kalindi) बताया।
वो यमुना नदी में निवास करते हुए भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिये तपस्या कर रही थी। ये बात जान कर भगवान कृष्ण ने कालिन्दी को अपने भगवान विष्णु के अवतार होने की बात बतायी और उसे अपने साथ द्वारका ले गये। द्वारका पहुंचने पर भगवान कृष्ण और कालिन्दी का विवाह किया गया। कालिंदी के पुत्रों के नाम ये थे- श्रुत, कवि, वृष, वीर, सुबाहु, भद्र, शांति, दर्श, पूर्णमास एवं सोमक।
6. लक्ष्मणा- लक्ष्मणा ने देवर्षि नारद से भगवान विष्णु के अवतारों के बारे में कई बातें सुनी थी। उसका मन सदैव भगवान के स्मरण और भक्ति में लगा रहता था। लक्ष्मणा (Lakshmana) भगवान विष्णु को ही अपने पति रूप में प्राप्त करना चाहती थी। उसके पिता ये बात जानते थे।
अपनी पुत्री की इच्छा पूरी करने के लिए उसके पिता ने स्वयंवर का एक ऐसा आयोजन किया, जिसमें लक्ष्य भेद भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के सिवा कोई दूसरा न कर सके। लक्ष्मणा के पिता ने अपनी पुत्री का विवाह उसी वीर से करने का निश्चय किया, जो की पानी में मछली की परछाई देखकर मछली पर निशाना लगा सके।
शिशुपाल, कर्ण, दुर्योधन, अर्जुन कोई भी इस लक्ष्य का भेद न कर सका। तब भगवान कृष्ण ने केवल परछाई देखकर मछली पर निशाना लगाकर स्वयंवर में विजयी हुए और लक्ष्मणा के साथ विवाह किया। लक्ष्मणा के पुत्रों के नाम थे- प्रघोष, गात्रवान, सिंह, बल, प्रबल, ऊध्र्वग, महाशक्ति, सह, ओज एवं अपराजित।
7. मित्रवृंदा- अवंतिका (उज्जैन) की राजकुमारी मित्रवृंदा (Princess Mitravrinda) के विवाह के लिये स्वयंवर का आयोजन किया गया था। उस स्वयंवर में मित्रवृंदा जिसे भी अपने पति रूप में चुनती उसके साथ मित्रवृंदा का विवाह कर दिया जाता। उस स्वयंवर में भगवान कृष्ण भी पहुंचे। मित्रवृंदा भगवान कृष्ण के साथ ही विवाह करना चाहती थी लेकिन उसका भाई विंद दुर्योधन का मित्र था।
इसलिये उसने अपनी बहन को बल से भगवान कृष्ण को चुनने से रोक लिया। जब भगवान कृष्ण को मित्रवृंदा के मन की बात पता चली। तब भगवान ने सभी विरोधियों के सामने ही मित्रवृंदा का हरण कर लिया और उसके साथ विवाह किया। मित्रविंदा के पुत्रों के नाम – वृक, हर्ष, अनिल, गृध, वर्धन, अन्नाद, महांश, पावन, वहिन तथा क्षुधि।
8. भद्रा- कैकय देश में रहने वाले श्रुतकीर्ति नामक राजा के बेटी थी। भद्रा (Bhadra) और उसके भाई भगवान कृष्ण के गुणों को जानते थे। इसलिए भद्रा के भाइयों ने उसका विवाह भगवान कृष्ण के साथ करने का निर्णय किया। उनकी इच्छा पूरी करने के लिये भगवान कृष्ण ने पूरे विधि-विधान के साथ भद्रा के साथ विवाह किया।
भद्रा के पुत्र – संग्रामजित, वृहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित, जय, सुभद्र, वाम, आयु और सत्यक।
विशेष- इनके अलावा श्री कृष्ण की 16100 और पत्नियां है। इन 16100 कन्याओं को श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध कर मुक्त कराया था और अपने यहाँ आश्रय दिया। इन सभी कन्याओं ने श्री कृष्ण को पति स्वरुप मान लिया था।