न्यूज डेस्क (शौर्य यादव): पोंगल (Pongal) चार दिवसीय फसल उत्सव तमिलनाडु और केरल के कुछ हिस्सों में इसे बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। ये त्यौहार सूर्य देव या सूर्य देव को समर्पित उत्तरायण (Uttarayan) की शुरुआत का प्रतीक है। पोंगल का अर्थ है ‘फैलाना’, त्यौहार का नाम चावल, दूध और गुड़ को एक बर्तन में उबालने की परंपरा से लिया गया है, जब तक कि ये उबलकर बर्तन से बाहर ना निकलने लगे। इस साल पोंगल 14 जनवरी से 17 जनवरी तक मनाया जायेगा।
पोंगल का महत्त्व
त्यौहार अतीत को जाने देने और जीवन में नई चीजों का स्वागत करने से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। त्योहार का पहला दिन भोगी पांडिगई (Bhogi Pandigai) है, लोग अपने घरों और कार्यालयों को सजाते हैं। दूसरा दिन पोंगल का मुख्य दिन होता है, जिसे थाई पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग सूर्य देव का आशीर्वाद लेने के लिये विशेष पूजा करते हैं। परंपरागत रूप से लोग पोंगल बनाते समय दूध गिराते हैं, क्योंकि इसे समृद्धि के संकेत के तौर पर देखा जा सकता है
पोंगल के तीसरे दिन को मट्टू पोंगल कहा जाता है। इस दिन किसान अपने मवेशियों को सजाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। पोंगल का चौथा और अंतिम दिन कानुम पोंगल है जब लोग पारंपरिक भोजन (Traditional Food) के साथ उत्सव मनाने के लिये इकट्ठा होते हैं।
पोंगल 2022: दिन और तारीख
14 जनवरी (शुक्रवार): भोगी पांडिगई
15 जनवरी (शनिवार): थाई पोंगल या सूर्य पोंगल
16 जनवरी (रविवार): मट्टू पोंगल
17 जनवरी (सोमवार): कानुम पोंगल
इस दिन घरों में फेस्टिव लुक होता है, लोग नये कपड़े भी पहनते हैं। पारंपरिक व्यंजन उत्सव का अभिन्न अंग हैं। पोंगल के चार दिनों के दौरान खास खाना बनाया जाता है, जैसे मेदु वड़ा, अवियल, रसम, चुकंदर पचड़ी, सकराई पोंगल और मूंग दाल पायसम (Moong Dal Payasam) भी तैयार किये जाते हैं।
इतिहास: पोंगल के बारे में दो कहानियां
1) एक बार भगवान शिव (Lord Shiva) ने अपने बैल बसव को दुनिया की यात्रा करने के लिये कहा ताकि सभी को महीने में एक बार खाने, स्नान करने और हर दिन तेल मालिश करने के लिये कहा जा सके। हालांकि बसवा भ्रमित हो गया और ठीक इसके विपरीत संवाद किया। इसके बाद भगवान शिव क्रोधित हो गये और बैल को वनवास में जाने के लिये कहा, जोतते समय लोगों की मदद करने के लिये उसे आदेश दिया। यही कारण है कि मवेशियों को फसल से जोड़ा जाता है।
2) भगवान कृष्ण (Lord Krishna) ने गोकुल (gokul) के लोगों से कहा कि वो अंहकारी स्वभाव वाले इंद्रदेव (Egoistic Indradev) की पूजा न करें क्योंकि वो गर्व से भरे हुए थे। इससे भगवान देवराज इंद्र नाराज़ हो गये उन्होंने गरज और बाढ़ का प्रकोप गोवर्धन पर उड़ेल दिया। भगवान कृष्ण ने ब्रज (Braj) के लोगों की रक्षा के लिय आश्रय प्रदान करने के लिये गोवर्धन पर्वत (Govardhan Parvat) को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया। इसके बाद इंद्र देव को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने क्षमा मांगी।