जाने क्या है हलाल मीट? जिसे लेकर BCCI में मचा है घमासान

न्यूज डेस्क (शौर्य यादव): भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) एक ऐसे विवाद में आ गया है जिसका क्रिकेट से कोई लेना-देना नहीं है। ये विवाद कुछ मीडिया रिपोर्टों के साथ शुरू हुआ जिसमें कहा गया था कि खिलाड़ियों को भारतीय क्रिकेट बोर्ड द्वारा सिर्फ हलाल मांस खाने के फरमान जारी किये गये है।

टीम इंडिया की नयी डाइट व्यवस्था में बीसीसीआई पहले ही किसी भी रूप में बीफ और पोर्क पर बैन लगा चुकी है। ये डाइट प्लान कानपुर में न्यूजीलैंड के खिलाफ पहले टेस्ट से पहले सामने आया। कई मीडिया रिपोर्टों ने क्रिकेट बिरादरी और समाज को पूरी तरह दो धड़ो में बांट दिया। समाज के एक बड़े वर्ग को लगता है कि खिलाड़ियों को सिर्फ हलाल मांस खाने के लिये मजबूर करना हिंदू समुदाय (Hindu community) की भावनाओं को आहत करता है।

दूसरी तरफ मुसलमान हलाल मीट ही खाते हैं। मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि बीसीसीआई ने एक नया डाइट प्लान (Diet Plan) पेश किया है ताकि टीम इंडिया के खिलाड़ी आने वाले खिताबी मुकाबलों के लिये सेहतमंद और फिट रहे।

हलाल अरबी में मतलब है। हलाल भोजन वो है जो पवित्र कुरान (The Holy Quran) में बताये गये इस्लामी कानून का पालन करता है। धाबीहा या हलाल करने को इस्लामी तरीका बताया गया है। इसमें गले की नस, कैरोटिड धमनी और श्वासनली (Carotid Artery And Trachea) को काटकर मारना शामिल है। काटे जाने के वक़्त पशु जीवित और स्वस्थ होने चाहिये और उसके मारे जाने के बाद उससे शरीर से सारा खून निकल जाना चाहिए।

धाबीहा या हलाल की प्रक्रिया के दौरान मुसलमान समर्पण का पाठ करेगा, जिसे तस्मिया या शाहदा के नाम से जाना जाता है। हलाल किये जाने वाले जानवरों को एंटीबायोटिक या ग्रोथ हार्मोन नहीं दिया जा सकता। साथ ही हलाल किये जाने वाले जानवर को पूरी तरह वेजिटेरियन डाइट (Vegetarian Diet) पर रखा जाता है। हलाल में जानवर का अंडकोष और मूत्राशय समेत कुछ हिस्से नहीं खाये जा सकते है। हलाल करने के दौरान जानवर के दिमाग में किसी तरह का कोई तेज झटका नहीं लगता है। जिससे वे बेहोश हो जाते हैं। आम धारणा ये है कि झटके में सारा खून नहीं बहता है, जिससे मांस सख्त और सूख जाता है।

ज़्यादा सेहतमंद होता है हलाल मीट?

आम धारणा है कि हलाल मीट खाने में सेहतमंद माना जाता है क्योंकि मारने के बाद जानवर की धमनियों से खून निकल जाता है। खून लगातार बाहर निकलने के कारण ज़हरीले चीज़े जानवर के खून के साथ बाहर आ जाती है क्योंकि मारे जाने के बाद कुछ सेकंड के लिये हृदय पंप करना जारी रखता है।

हालांकि इस बात को साबित करने के लिये कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया है कि किसी तरह का अंतर आता है न्यूट्रीशनल क्वालिटी (Nutritional Quality) में मुस्लिम समुदाय के लोगों का मानना है कि हलाल मांस ज़्यादा नर्म होता है और इसका स्वाद बेहतर होता है। मांस में खून सड़ सकता है और स्वाद पर बुरा असर डाल सकता है, इसलिये मुस्लिम हलाल को बेहतर और झटका मीट को हराम मानते है।

मुस्लिम समुदाय के लोगों का दावा है कि खून की गैर मौजूदगी की वज़ह से मीट लंबे समय तक ताजा रहता है, जो बैक्टीरिया को पनपने को रोकता है।

मीट को लेकर दुनियाभर में पैमाने

1979 से यूरोपीय संघ में पशुओं को एक ही दम से मारने (झटका) को अनिवार्य मंजूरी है। इसके सदस्य देश राज्य धार्मिक वध (ज़िब्हा) के लिये छूट दे सकते हैं। डेनमार्क समेत कुछ देशों ने जानवरों को एक ही दम से मारने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का विकल्प चुना है। ब्रिटेन सरकार का कहना है कि उनका ज़िब्हा पर प्रतिबंध लगाने का कोई इरादा नहीं है।

यहूदियों में माना जाता है कि झटका मीट खाना ठीक नहीं है। इस तरह से आया मांस धार्मिक नज़रिये से पाक नहीं माना जा सकता है। हलाल मीट हिंदू धर्म और सिख धर्म में प्रतिबंधित है क्योंकि माना जाता है कि इसके तहत जानवर को बेहद बेरहमी से तड़पा तड़पाकर मारा जाता है।

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