Krishna Janmashtami Pujan
अधरों पर मनमोहनी मुस्कान, शरारतों से भरी मृगनयनी आँखें, घंघुराले बाल, माथे पर उर्ध्व पुण्ड्रा तिलक, पीताम्बर पहने हुए, हाथों में वंशी लिये हुए। जिसके चित्त और चरित्र में सम्मोहन है, आर्कषण है। जिसके चेहरा देखते ही दिल और वक्त थम-सा जाता है। जिसने ना जाने कितनी सखियों का दिल तोड़। जिसकी विरह की वेदना में पत्थर तक पिघल गये। इतने बिम्ब काफी है, उस सांवरी सूरत वाले के परिचय के लिए। उसके सौन्दर्य के समक्ष अमिधा,व्यंजना,लक्षणा और संसार भर के समस्त विश्लेषण फीके है। उनके चरित्र का हर पहलू अपने आप में खास है। गोपियों के लिए वो दिल चुराने वाले ग्वाले है। श्री राधिका के लिए प्रेम का केन्द्र है। शत्रुओं के लिए यदुवंशी योद्धा है। पूतना राक्षसी को मातृत्व का सुख देकर तराने वाले है। वृन्दावनवासियों के लिए छालिया है। अक्रूर के लिए अवतार है। द्रोपद्री के भाई है।
कुरूक्षेत्र के मैदान में बेहतरीन रणनीतिकार है। सांदीपनी मुनि के आश्रम में उत्कृष्ट विद्यार्थी है। अपने हर स्वरूप में वे पूर्णता को प्राप्त करते है। उनकी हर लीलाओं में गूढ़ संदेश छिपा है। उन्हीं संदेशों को अगर हम अपने जीवन में उतारे तो पूर्णता तो नहीं, लेकिन सहजता जरूर प्राप्त कर सकते है। आप उनसे सीख सकते है, एक प्रेमी कैसा होना चाहिए। शासन-प्रशासन कैसे संभालना चाहिए। अधिकार के लिए किस तरह से लड़ा जाये। युद्ध भूमि में रीति नीति का निर्वाह कैसे किया जाये। प्रेम को सांसरिक सीमाओं से निकालकर अलौकिकता कैसे प्रदान की जाये। कृष्णावतार के हर प्रसंग में साफ देखा जा सकता है कि, अवतार होने के बावजूद उनमें नैसर्गिक रूप से हर मानवी भाव का संचार होता है। वो आनन्दित होते है, वो माखन चुराते है मित्रों में बांटते है, वो क्रोधित होते है। वो नाचते और नाचाते है। एक तरफ गोकुल, बरसाने, नंदगाव, वृन्दावन में वे कोमल, स्निग्ध, मार्धुय भावों से भरे दिखते है।
दूसरी ओर हस्तिनापुर, मथुरा, द्वारका और कुरूक्षेत्र के मैदान में कठोर, परिपक्व, राजसी भावों का अनुसरण करते हुए दिखते है। इस तरह से वो हमें सिखाते है, बताते है किन परिस्थितियों किस तरह का व्यवहार करना उचित रहता है। ब्रज की गोपियों से घिरे रहने के बावजूद उनके प्रेम में कहीं भी छिछलापन और अश्लीलता नहीं है। अगर कुछ है तो, वो है समपर्ण, त्याग और अनन्तहीन प्रतीक्षा। कारागार में उनका जन्म ही अपने आप में कई खास मायने रखता है। जिस संघर्ष के साथ उन्हें नंद बाबा ने वहाँ से बाहर निकाला। ये दिखाता है कि, आम मानवी भी संघर्ष करके अपनी कमजोरियों की जेल से रिहा हो सकता है। रणछोड़ बनकर उन्होनें दिखा दिया कि, जरूरत पड़ने पर लड़ाई का मैदान छोड़ना पड़े तो, छोड़ दो। गोर्वधन को पूजकर पर्यावरण की महत्ता को रेखांकित किया। और मथुरा की उस त्रिवक्रा कुबड़ी स्त्री को हम कैसे भुला सकते है, जिसके निश्छल प्रेम के वशीभूत हो ठाकुर जी ने उसे ठीक किया, साथ ही अभूतपूर्व सौन्दर्य उसकी झोली में डाल दिया। हर कोई उन्हें अपना बनाना चाहता है, और वे हर किसी के बने भी। आप भी उन्हें अपना बना सकते है। जैसा चाहे उसी रूप में वो आपको मिलेगें। नवधा भक्ति के समस्त प्रकारों के अतिरिक्त दोस्त, भाई, प्रेमी, बेटा, देवर जिस भी स्वरूप में आप उनकी परिकल्पना करेगें। उसी रूप में वो आपको अपना बना लेगें।
वृन्दावन में एक कहानी बेहद ही मशहूर है, अनन्य प्रेम के वशीभूत होकर किस तरह से संवारियां सरकार एक ग्रामवधू के देवर बन गये थे। भक्त के लिए गवाही देने न्यायालय पहुँच जाते है। लड्डू गोपाल बनकर रूप-लावण्य से भक्तों को वात्सल्य का अद्भुत आनंद देते है। इस पावन अवसर पर आराधक, उपासक श्री कृष्ण के बाल स्वरूप का ध्यान करते है। नैवेद्य का भोग लगाते है और पंचगव्य से उन्हें स्नान कराते है। ये एक पक्ष है। क्या कभी आपने जानने की कोशिश की, वो क्या चाहते है, वो चाहते है आप उन्हें अपना अहं अर्पित करे बदले में आपको उनका अनुराग मिलेगा। आप अपने क्रोध का तर्पण करे, वो आपको कृपावर्षा से भिगो देगें। आप उनसे अपना संदेह साझा कीजिये, आपके लिए प्रेम के मार्ग प्रशस्त होगें। गोपियों से प्रेम सीखकर, कर्म, ज्ञान और योग का भागवत ज्ञान तक कृष्ण मर्म का फलक अत्यन्त विस्तृत है। कृष्ण को समझने के लिए बुद्धि का प्रयोग तुच्छ है, उन्हें समझने में मन रमाना पड़ता है। वे आपकी बुद्धि को नहीं मन को टटोलेगें। चर,अचर,चराचर और सम्पूर्ण बह्मांड उनके आनंद की ऊर्जा से स्पंदित होते है।
उनकी करूणा हम पर बरसात बनकर गिरती है। नवजात शिशुओं की आँखों की जिज्ञासा और विस्मय हमें उनके अस्तित्व का बोध कराता है। झरने की कलकल उनकी हंसी है। उषा की किरणें उनका तेज है। हर जगह आप उनकी उपस्थिति महसूस कर सकते है। सहज इतने है कि, द्रौपदी के द्वारा बांधे साड़ी के कपड़े की डोर से, वे बंधे रहे। उस कपड़े के बंधन ने भरी सभा में द्रोपदी की लाज़ बचाई। राजसी पकवान छोड़कर विदुर के घर बथुयें का साग खाने पहुँच गये। तीन मुट्ठी कच्चे चावल खाकर सुदामा को त्रिभुवन का वैभव प्रदान किया। मात्र वे ही जो हर बंधन से बंधकर भी निर्बाध है। और आखिरी में कृष्ण जन्मतिथि पर गौर करते तो, ये भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी है। भादों की काली अंधेरी रात में जन्म लेकर कृष्ण ये संदेश देते है कि, ना उम्मीदी के बीच विश्वास रास्ते बहाल करते है। हर अंधेरी रात अपने साथ आशाओं का नया सवेरा लेकर आती है। इसलिए उम्मीदों का दामन थाम रखिये।
– राम अजोर
एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर एवं सह संपादक ट्रेन्डी न्यूज़