नई दिल्ली (विश्वरूप प्रियदर्शी): किसान आंदोलन (Kisan Andolan) की आंच लगातार बढ़ती जा रही है। आज दिल्ली से लगी सीमाओं पर किसान के प्रदर्शन को 31 दिन पूरे हो गये। इस बीच कई स्तरों पर बैठक हुई। किसान प्रतिनिधि (Farmer representative) को समझाने के लिए खुद पीएम मोदी ने कमान संभाली। बावजूद इसके गतिरोध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। कयास लगाये जा रहे है कि, आज किसान संयुक्त समिति केन्द्र सरकार से मिले वार्ता प्रस्ताव पर आखिरी फैसला ले सकती है। चिल्ला और गाजीपुर बॉर्डर पर बीते तीन दिनों से ट्रैफिक ठप्प पड़ा है। इस क्रम में आंदोलनकारी किसानों ने हरियाणा के सभी टोल प्लाजा फ्री कराये रखा।
सिंघु, ढांसा और टीकरी बार्डर पर किसान सर्दी से बचने के लिए कैंपनुमा स्थायी ठिकाने बनाने की कवायद में लगे दिखे। दिल्ली-यूपी-हरियाणा रूट पर काम करने वाले लोगों का खासा परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जिसकी वज़ह से उन्हें कई किलोमीटर का घुमाव लेकर मंजिल तक पहुँचना पड़ रहा है। पुलिस लगातार किसानों की घेरेबंदी पर नज़रे बनाये हुई है। ट्रैफिक की समस्या का अहम कारण किसानों के साथ-साथ तमाशबीन भी है। किसानों का आंदोलन में आना भले ही कम हुआ हो, लेकिन तमाशबीन लोगों को हुजूम भी धरना स्थलों पर पहुँचकर यातायात बाधित (Traffic interruption) कर रहा है।
दूसरी ओर टीएमसी, कांग्रेस, वामदल और आम आदमी पार्टी समेत कई विपक्षी दल आंदोलन खुला समर्थन दे रहे है। भले ही किसान राजनीतिक सपोर्ट में बातों का नकारे लेकिन कहीं ना कहीं विपक्षी दलों का रवैया उन्हें हिम्मत जरूर बंधा रहा है। कुछ रोज पहले डेरेक ओ ब्रायन और अरविंद केजरीवाल ने धरना स्थल पर पहुँचकर किसानों के पक्ष में तकरीरें (Arguments in favor of farmers) बुलन्द की। इसी क्रम में आज राहुल गांधी एक बार फिर ट्विट कर किसानों के समर्थन में दिखे। उन्होनें एक वीडियों पोस्ट करते हुए लिखा कि- मिट्टी का कण-कण गूंज रहा है, सरकार को सुनना पड़ेगा।
केन्द्र सरकार की ओर से किसान आंदोलन को खत्म कराने की कोशिशें लगातार की जा रही है। रणनीति के तहत भाजपा ने अपने कई मुख्यमंत्रियों समेत खुद पीएम मोदी को इस मुहिम में उतार चुकी है। फिलहाल इसका असर किसानों पर होता नहीं दिख रहा है। कयास लगाये जा रहे है कि केन्द्र सरकार अपने शाहीन बाग (Shaheen bagh) वाले अनुभव से कोई रास्ता निकाल सकती है या फिर किसान खुद आंदोलन खत्म कर दे। फिलहाल एक बात तय है कि किसान आंदोलन तमाम विपक्षी पार्टियों के लिए संजीवनी बूटी साबित हो रहा है।