न्यूज न्यूज (दिगान्त बरूआ): हाल ही में राजधानी दिल्ली में एक ऐतिहासिक सर्जिकल ऑप्रेशन किया गया। जिसमें एक व्यक्ति को सैकेंड हैंड लीवर ट्रांसप्लांट (Liver Transplant) किया गया। नई दिल्ली के साकेत में मैक्स अस्पताल (Saket Max Hospital) के डॉक्टरों ने अनिल कश्यप की जान बचायी। लेकिन ये कोई साधारण ट्रांसप्लांट नहीं था और साथ ही कोई सामान्य लीवर नहीं था। ये अविश्वसनीय रूप से दुर्लभ प्रक्रिया थी। इसके तहत डॉक्टरों ने एक ऐसे लीवर का इस्तेमाल किया जिसे पहले रोगी को शरीर में पूरी तरह नकार दिया था। जिसकी वज़ह से पहले रोगी की मौत हो गयी।
पहले मरीज की मौत के बाद राजधानी के अस्पतालों में अलर्ट जारी कर दिया गया कि उस व्यक्ति का शरीर अंग दान के लिये उपलब्ध हैं, जिसमें एक बार प्रत्यारोपित लीवर भी शामिल है। हालांकि शुरुआत में कोई इसे लेने के लिये तैयार नहीं था। इस मामले पर मैक्स अस्पताल के लीवर ट्रांसप्लांट और और पित्त विज्ञान प्रमुख डॉ सुभाष गुप्ता (Dr. Subhash Gupta) ने बताया कि “कई मरीजों को डर था कि ये (लीवर) ख़राब हो सकता है, वे चिंतित थे कि पहला ट्रांसप्लांट पहले मरीज पहले से ही एक हफ़्ते से अधिक वक़्त तक गहन देखभाल में रहा होगा और वो संक्रमित हो गया होगा। उन्हें डर था कि पहले से नाकाम हुए लीवर का दुबारा ट्रांसप्लांट किया जाता है तो दूसरे मरीज की जान को खतरा हो सकता है।”
मैक्स में लीवर ट्रांसप्लांट का इंतज़ार कर रहे 21 रोगियों में से 20 ने संबंधित रक्त समूह से जुड़े होने के बावजूद इसे लेने से मना कर दिया। भारत सरकार के लिये काम करने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर कश्यप ही मौका लेने को तैयार थे। दो साल तक लीवर खराब होने से जूझने के बाद, कश्यप की हालत गंभीर थी और उनके परिवार में कोई संभावित डोनर नहीं मिल रहा था।
इसके बाद डॉ गुप्ता और उनकी टीम लीवर का निरीक्षण किया। इस डॉक्टर गुप्ता ने कहा कि, "हमने ये सुनिश्चित करने के लिये मेडिकल रिकॉर्ड की जांच की कि पहले प्रत्यारोपण में सही दवाओं का इस्तेमाल किया गया था, हमने ब्लड़ मैचिंग (Blood Matching) की जांच की और क्योंकि ये सब ठीक लग रहा था, इसलिये हम आगे बढ़े।"
जब डॉ सुभाष गुप्ता की अगुवाई में लीवर ट्रांसप्लांट किया गया को ये बेहतर हालत में था। डॉ गुप्ता की टीम ने कश्यप के खराब लीवर को ट्रांसप्लांट के लिए तैयार करने के लिये निकालना शुरू कर दिया। तीन घंटे के भीतर मैक्स अस्पताल में लीवर आ गया और प्रत्यारोपण की प्रक्रिया आगे बढ़ी। पहले से ट्रांसप्लांट लीवर में नाकाम होने का ज़्यादा जोखिम होता है, इसलिए अगले कुछ दिन कश्यप के ठीक होने के लिये बेहद अहम होंगे। वो पहले से ही वेंटिलेटर से बाहर है और अपने कमरे में चलने में पूरी तरह सक्षम है।
55 वर्षीय कश्यप ने कहा कि उन्हें लीवर को लेकर कोई ऐतराज नहीं है। उन्होनें कहा कि- मैं डॉ गुप्ता के पास आने से पहले दो साल से देश भर में इधर-उधर भाग रहा था। मुझे लीवर की सख्त जरूरत थी और एकमात्र मुद्दा ये था कि ये अच्छी क्वालिटी वाला लीवर होना चाहिए। मेरे केस पर पहले से ही ट्रांसप्लांट लीवर का दुबारा ट्रांसप्लांट किया गया। मैं अब अच्छा महसूस कर रहा हूं और जल्द ही पूरी तरह ठीक होने की उम्मीद है।
पूरे सर्जिकल प्रोसेस को लेकर डॉ गुप्ता ने बेहद सावधानी बरती, जिसे लेकर वो काफी आशावादी थी। ट्रांसप्लांट ऑप्रेशन के बाद लीवर की बायोप्सी (Liver biopsy) की गयी, उसे स्टेरॉयड पर रखा गया। फिलहाल उसकी मौजूदा कार्यक्षमता काफी उम्मीदें जगा रही है। माना जा रहा है कि वो आगे भी भी बेहतर काम करेगा।
मौटे अनुमान के मुताबिक हर साल 50,000 भारतीयों में से एक को लीवर ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन इस अवधि के दौरान सिर्फ 800-1,000 लीवर ही ट्रांसप्लांट किये जाते है, क्योंकि कैडवेरिक डोनर्स (Cadaveric Donors) की भारी कमी होती है।
डॉ गुप्ता ने कहा कि दूसरी बार लीवर ट्रांसप्लांट करना लगभग अनसुना था। उन्होनें कहा कि "बतौर मेडिकल प्रोफेशनल में 30 सालों से काम कर रहा हूँ और ऐसा मामला बेहद काम देखने और सुनने को मिलता है।