न्यूज डेस्क (शाश्वत अहीर): लोहड़ी का त्योहार (Festival Of Lohri) सर्दियों के अंत का प्रतीक है और इसे धूप के दिनों के स्वागत के तौर पर मनाया जाता है। लोहड़ी, जिसे ‘लाल लोई’ के नाम से भी जाना जाता है। त्यौहार को ज्यादातर सिख और हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है और वे इसे अलाव जलाकर, उत्सव का खाना खाकर, चमकीले पारंपरिक कपड़े पहनकर और लोक नृत्य (Folk dance) और गीतों पर नृत्य करके मनाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि लोहड़ी साल की सबसे लंबी रात का प्रतिनिधित्व करती है, और उसके बाद आने वाले दिन को माघी (Maghi) कहा जाता है। शानदार फसल को संभव बनाने के लिये ईश्वर को धन्यवाद देने के लिये भी त्योहार मनाया जाता है।
लोहड़ी का महत्व
लोहड़ी फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। फसल को संभव बनाने के लिये सम्मान देने के लिये भी त्योहार मनाया जाता है। लोहड़ी की रात को साल की सबसे लंबी रात माना जाता है, इसलिए इसे शीतकालीन संक्रांति (Winter Solstice) भी कहा जाता है।
लोहड़ी की रात क्या करते हैं लोग?
परिवार के लोग अलाव के आसपास इकट्ठा होते हैं, वे इसके चारों ओर चक्कर लगाकर ‘अग्नि’ को अपना सम्मान देते हैं। लोग बीते साल और नये साल की शुरुआत के लिये दुआ करते हैं। अलाव के चारों ओर घूमते हुए लोग तिल की रेवड़ी, मकई, गजक और मुरमुरे एक साथ आग में डालते हैं। बाद में लोग एक साथ आते हैं और पारंपरिक भोजन (Traditional Food) करते हैं, और वो एक दूसरे के साथ प्रसाद का आदान-प्रदान भी करते हैं। रात के आखिरी मस्ती से भरे नृत्य और गीत समारोह के साथ होता है, जो सुख और समृद्धि की शुरुआत का प्रतीक है।
लोहड़ी की रात के दौरान एक लोकप्रिय गीत ‘सुंदरी मुंदरिये’ बजाया जाता है और लोग जोश और ऊर्जा के साथ इस गीत पर नृत्य करते हैं। गीत दुल्ला भट्टी (Dhulla Bhatti) को श्रद्धांजलि देता है, जिन्होंने दो ब्राह्मण लड़कियों सुंदरी और मुंदरिये की इज़्जत बचायी थी, इस तरह उन्होनें मानव तस्करी (Human Trafficking) के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
लोहड़ी की रात देश में सबसे प्रतीक्षित त्योहारों में से एक है और ये साल की खूबसूरत शुरुआत का प्रतीक है। इस समय हम सभी एक बड़े परिवार में तब्दील हो जाते हैं जो मानव जाति (Mankind) की भलाई के लिये दुआ करते हैं।