न्यूज डेस्क (निकुंजा वत्स): एकनाथ शिंदे की खुली बगावत ने शिवसेना, कांग्रेस, राकांपा की एमवीपी सरकार को संकट (Maharashtra Crisis) में डाल दिया है। पहले ये बताया गया था कि शिवसेना नेता को 20 से ज़्यादा विधायकों का समर्थन हासिल था। अगर एकनाथ शिंदे ने सिर्फ 20 विधायकों के साथ सरकार गिराने की कोशिश की होती तो वो दलबदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) के दायरे में आ जाते, जिसकी वज़ह से उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा (Maharashtra Legislative Assembly) से अयोग्य घोषित कर दिया जाता। हालांकि उनके पास बागी विधायकों की तादाद धीरे-धीरे दो-तिहाई कट ऑफ के करीब पहुंच रही है, जो उन्हें अगर हासिल हो जाती है तो वो और उनके वफादारों को दलबदल कानून को दरकिनार कर पायेगें।
आज तड़के सुबह एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) और उनके विधायकों की टीम भाजपा (BJP) शासित असम (Assam) पहुंची। उन्होंने कहा कि उनके साथ 40 विधायक गुवाहाटी (Guwahati) आये हैं। उन्होंने दावा किया कि निकट भविष्य में 10 और बागी विधायक उनके खेमें में शामिल हो जायेगें। उन्होनें मीडिया के सामने कहा कि- मैं किसी की आलोचना नहीं करना चाहता। हम दिवंगत बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) द्वारा स्थापित शिवसेना (Shiv Sena) को जारी रखने के इच्छुक हैं।”
अगर ये सच है तो ये मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Chief Minister Uddhav Thackeray) के लिये अच्छा संकेत नहीं है। महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के 56 विधायक हैं। दलबदल विरोधी कानून को लागू होने से रोकने के लिये एकनाथ शिंदे को 37 शिवसेना विधायकों के समर्थन की जरूरत है। महाराष्ट्र विधानसभा 288 सदस्यीय है। राज्य में सरकार बनाने के लिये किसी पार्टी या गठबंधन को 145 सीटों की दरकार होती है। एमवीए के 169 विधायक हैं, जिनमें एनसीपी के 53 और कांग्रेस के 44 और निर्दलीय शामिल हैं।
इसलिये एकनाथ शिंदे को शिवसेना सरकार गिराने के लिये सिर्फ 25 विधायकों के साथ की दरकार है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (National Democratic Alliance) के पास मौजूदा हालातों में महाराष्ट्र विधानसभा में 113 सीटें हैं। भाजपा का नंबर 106 है। गठबंधन को सरकार बनाने के लिये 32 विधायकों के समर्थन की जरूरत है। हालांकि अगर बीजेपी का समर्थन करने वाले शिवसेना विधायकों की संख्या 38 से कम है तो उन्हें विधानसभा से अयोग्य घोषित किया जा सकता है। अगर दलबदल विरोधी कानून लागू होता है तो शिवसेना के बागी विधायक सरकार गिरा सकते हैं, लेकिन भाजपा की मदद नहीं कर पायेगें। तब इन सीटों पर चुनाव होने तक एमवीए अल्पमत सरकार चलायेगी। इन सियासी तस्वीरों के बीच दोनों पक्षों को विश्वास मत के जरिये सदन के पटल पर अपनी संख्या साबित करनी होगी।
हिंदुत्व (Hindutva) से जुड़े मामलों पर पार्टी के रूख को कथित तौर पर कमजोर किये जाने से एकनाथ शिंदे और शिवसेना के बागी नेता काफी नाराज हैं। वो वैचारिक रूप से उल्ट कांग्रेस और राकांपा (Congress and NCP) के साथ शिवसेना के गठबंधन से भी खासा खफा हैं। शिंदे और बागी विधायकों की मांग की है कि शिवसेना अपने पारंपरिक सहयोगी भाजपा के साथ साझेदारी करे क्योंकि दोनों पार्टियों का वैचारिक झुकाव समान है।