पॉलिटिकल डेस्क (गौरांग यदुवंशी): महाविकास आघाड़ी दम पर टिकी महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Govt.) में लड़खड़ाहट देखी जा रही है। गठबंधन के सहयोगियों के बीच लगातार शंकाओं और वैचारिक गतिरोध के चलते उद्धव सरकार के भविष्य पर लगातार संकट मंडराता दिख रहा है। मौजूदा सियासी समीकरण और लक्षण इसी ओर खुलकर इशारा कर रहे है। इन्हीं रास्तों पर चलते हुए उद्वव सरकार ने 1 साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है।
राजनीतिक विश्लेषक शुरू से ही इस गठबंधन को बेमेल बताते रहे है। जिसका खुला कारण शिवसेना की कट्टर हिंदुत्ववादी छवि और कांग्रेस पार्टी का धर्मनिरपेक्ष रवैया रहा है हालांकि कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के कई नेता अलग-अलग मंचों पर ये दावा करते रहे हैं कि उद्धव सरकार की अगुवाई में महाराष्ट्र सरकार अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा करेगी लेकिन जिस तरह से बयानबाजी और राजनीतिक घटनाक्रम सामने आ रहे है, उसे देखकर लगता है कि गठबंधन सहयोगियों और सरकार के बीच कई आपसी मतभेद है।
हाल ही में बीते रविवार एनसीपी नेता और महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री जितेंद्र अवध ने थाणे के कल्याण में एक कार्यक्रम के दौरान खस्ताहाल सड़कों के लिए सीधे तौर पर शिवसेना को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि यहां की सड़कें महाराष्ट्र की सबसे खराब है। इस कार्यक्रम में उस वक्त स्थानीय शिवसेना विधायक विश्वनाथ भोईर उपस्थित थे। गौरतलब है कि कल्याण डोंबिवली म्युनसिपल काउंसिल (Kalyan Dombivali Municipal Council) में शिवसेना का दबदबा है। सीटों के लिहाज से देखा जाए तो महाविकास अघाडी में एनसीपी दूसरे पायदान पर काबिज है।
कुछ इसी तर्ज पर शिवसेना और कांग्रेस के बीच भी नोकझोंक देखी गयी। मामला औरंगाबाद शहर का नाम बदलने को लेकर जुड़ा हुआ है। जिस पर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए चीफ मिनिस्टर उद्धव ठाकरे ने कहा, अगर किसी को हिंसक और बेरहम औरंगजेब (Violent and heartless Aurangzeb) से प्यार है तो इसे सेक्यूलिरिज़्म का नाम नहीं दिया जा सकता। उनके इस बयान पर कांग्रेस की ओर से जवाबी पलटवार आया। जिसमें कहा गया कि जब भाजपा और शिवसेना प्रदेश में सत्तारूढ़ थे तो तत्कालीन सरकार ने इस मुद्दे को इतना तूल क्यों नहीं दिया।
गठबंधन की शुचिता का ख्याल रखते हुए महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष बालासाहेब थोराट का बयान सामने आया। जिसमें उन्होंने दावा किया कि, शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की महाविकास आघाडी सरकार मजबूती से कायम है। साथ ही सरकार तयशुदा न्यूनतम साझा कार्यक्रम के मुताबिक काम कर रही है। जज्बातों की सियासत में कोई जगह नहीं होती। शिवसेना और पूर्व में उनकी गठबंधन सहयोगी भाजपा औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज के नाम पर संभाजीनगर रखना चाहते है।
अगर इन राजनीतिक घटनाक्रमों पर गौर करें तो, ये बात सामने निकल कर आती है कि- भले ही महाविकास आघाडी गठबंधन सरकार की मजबूती के कितने ही दावे कर ले लेकिन कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के बीच रिश्ते काफी लड़खड़ाए हुए से दिख रहे हैं। गठबंधन में शामिल नेताओं के बीच बयानबाजियां इस ओर साफ इशारा कर रही है कि अगर जल्द ही तीनों घटक दलों के बीच तीखे बयानों का दौर और वैचारिक मतभेद दूर नहीं हुए तो इसका असर सीधे महाराष्ट्र सरकार पर पड़ना तय है। जिस पर अभी मौजूदा प्रकरणों को देखते हुए शकोसुबह के बादल मंडरा रहे है।