Mahashivratri 2023: शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि (Mrikanda Rishi) संतानहीन होने के कारण दुखी थे। विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था। मृकण्ड ने सोचा कि महादेव (Mahadev) संसार के सारे विधान बदल सकते हैं। इसलिये क्यों न भोलेनाथ (Bholenath) को प्रसन्नकर ये विधान बदलवाया जाये। मृकण्ड ने घोर तप किया। भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे, इसलिये उन्होंने शीघ्र दर्शन न दिया लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोले झुक ही जाते हैं।
महादेव प्रसन्न हुए। उन्होंने ऋषि को कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं लेकिन इस वरदान के साथ हर्ष के साथ विषाद भी होगा। भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को पुत्र हुआ, जिसका नाम मार्कण्डेय (Markandeya) पड़ा। ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि ये विलक्षण बालक अल्पायु है। इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है। ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया।
मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वत किया कि जिस ईश्वर की कृपा से संतान हुई है, वही भोले इसकी रक्षा करेंगे। भाग्य को बदल देना उनके लिये सरल कार्य है। मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र (Shiv Mantra) की दीक्षा दी। मार्कण्डेय की माता बालक के उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी। उन्होंने मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात पहले ही बता दी थी।
मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिये उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे जिन्होंने जीवन दिया है। बारह वर्ष पूरे होने को आये थे। मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिये महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjaya Mantra) की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे:-
“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”
समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आये। यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की। मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था। यमदूतों का मार्केण्डेय को छूने का साहस न हुआ और लौट गये। उन्होंने यमराज को बताया कि वो बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाये। इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा। यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गये।
बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर- जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया। यमराज (Yamraj) ने बालक को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा। एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गयी।
शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हो गये। उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया? यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे। उन्होंने कहा:- प्रभु मैं आप का सेवक हूँ। आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है।
भगवान चंद्रशेखर (Lord Chandrashekhar) का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूँ और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है। तुम इसे नहीं ले जा सकते। यम ने कहा:-प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है। मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूँगा।
महाकाल (Mahakala) की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गये। उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता है। सोमवार को महामृत्युंजय का पाठ करने से शिवजी की कृपा प्राप्त होती है और कई असाध्य रोगों, मानसिक वेदना से राहत मिलती है।