सोचिये कि उस रोज उस 3 नवंबर 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma) अगर अपनी बहादुर डेल्टा कंपनी के पचास-एक जवानों के साथ श्रीनगर एयरपोर्ट से सटे उस टीले पर वक्त से नहीं पहुँचे होते तो भारत का नक्शा कैसा होता…!
26 अक्टूबर 1947 को जब बड़ी जद्दोजहद और लौह-पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल के अथक प्रयासों के बाद आखिरकार कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराज हरि सिंह ने प्रस्ताव पर दस्तखत किये तो भारतीय सेना की पहली टुकड़ी कश्मीर रवाना होने के लिये तैयार हुई। भारतीय सेना की दो इंफैन्ट्री बटालियन (Infantry Battalion) 4 कुमाऊँ (Four Kumaon Regiment) और 1 सिख (One Sikh Regiment) को इस पहली टुकड़ी के तौर पर चुना गया। 27 अक्टूबर 1947 जब भारतीय सेना (Indian Army) की पहली टुकड़ी ने श्रीनगर हवाई-अड्डे पर लैंड किया। इतिहास ने खुद को एक नये तेवर में सजते देखा और इस तारीख को तब से ही भारतीय सेना में इंफैन्ट्री-दिवस (Infantry Day) के रूप में मनाया जाता है।
मेजर सोमनाथ शर्मा इसी कुमाऊँ रेजिमेंट की चौथी बटालियन (Four Kumaon) की डेल्टा कंपनी के कंपनी-कमांडर (Company commander of Delta Company) थे और उन दिनों अपना बांया हाथ टूट जाने की वजह से हास्पिटल में भर्ती थे। जब उन्हें पता चला कि 4 कुमाऊँ युद्ध के लिये कश्मीर जा रही है वो हास्पिटल से भाग कर एयरपोर्ट आ गये और शामिल हो गये अपनी जाँबाज डेल्टा कंपनी के साथ।
उधर कबाइलियों का विशाल हुजूम कत्लेगारात मचाता हुआ बरामूला शहर तक पहुँच चुका था। उनकी बर्बरता की निशानियाँ और दर्द भरी कहानियाँ अभी भी इस शहर के गली-कूचों में देखी और सुनी जा सकती है। जब दुश्मनों की फौज को पता चला कि भारतीय सेना की अतिरिक्त टुकड़ियाँ भी श्रीनगर हवाई-अड्डे पर लैंड करने वाली है तो वो बढ़ चले उसे कब्जाने।
उस वक्त दूसरी ओर मेजर सोमनाथ अपनी डेल्टा कंपनी के साथ करीब ही युद्ध लड़ रहे थे जब उन्हें हुक्म मिला श्रीनगर हवाई-अड्डे की रखवाली का और फिर इतिहास साक्षी बना शौर्य, पराक्रम और कुर्बानी की एक अभूतपूर्व मिसाल का। जिसमें पचपन जांबाजों ने पाँच सौ से ऊपर दुश्मन की फौज को छः घंटे से तक रोके रखा, जब तक कि अपने सेना की अतिरिक्त मदद पहुँच नहीं गयी। मेजर सोमनाथ के साथ 4 कुमाऊँ कि वो डेल्टा-कंपनी पूरी की पूरी बलिदान हो गयी। मृत्यु से कुछ क्षणों पहले मेजर सोमनाथ द्वारा भेजा गया रेडियो पर संदेश:-
“I Shall Not Withdraw An Inch But Will Fight to The Last Man & Last Round"
(मै एक इंच पीछे नहीं हटूंगा और तब तक लड़ता रहूँगा जब तक कि मेरे पास आखिरी जवान और आखिरी गोली है)
मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत आजाद भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार "परमवीर चक्र" (Highest Gallantry Award Param Vir Chakra) से नवाजा गया और वो इस पुरस्कार को पाने वाले प्रथम भारतीय बने।