न्यूज़ डेस्क (दिगान्त बरूआ): विकास दुबे (Vikas Dubey) में मामले में रोजाना नये खुलासे होने लगे है। जांच-पड़ताल में पुलिस को कई नयी जानकारियां मिल रही है। स्थानीय ग्रामवासी पुलिस वालों को विकास दुबे के आंतक से जुड़े किस्से साझा कर रहे है। योगी सरकार इस मामले को लेकर काफी गंभीरता बरत रही है। मामले की जांच के लिए दो विशेष टीमों का गठन किया गया है। गहन जांच पड़ताल के लिए यूपी सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति शशिकांत अग्रवाल का एकल जांच आयोग का गठन कर दिया है।
जांच आयोग का बनाया जाना काफी अहम माना जा रहा है। इसकी मदद के कई सनसनीखेज खुलासे होने की भी उम्मीद जतायी जा रही है। अपर मुख्य सचिव संजय भूसरेड्डी की अगुवाई वाला जांच दल बिकरू गांव में विकास दुबे के गैंग से पुलिस की मुठभेड़ की जांच करेगा। वहीं दूसरी ओर एनकाउंटर की जांच प्रदेश सरकार द्वारा गठित जांच आयोग करेगा। आयोग का मुख्यालय कानपुर में बनाया गया है। जांच आयोग दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंप देगा।
दूसरी ओर शहीद हुए यूपी पुलिस के आठ जवानों की मुखबिरी करने वाले सब इंस्पेक्टर केके शर्मा ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दस्तक दी है। शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दरख्वास्त लगाते हुए उसने दावा किया कि, उसकी जान को खतरा है। उसे न्यायालय द्वारा सुरक्षा दी जाये। साथ ही मामले की जांच में सीबीआई को सौंपी जाये ताकि मामले की सारी पर्तें निष्पक्ष तरीके से लोगों के सामने आये।
वारदात के बाद ये शक जताया जा रहा था कि, पुलिस महकमें के किसी सदस्य की मुखबिरी के कारण ही आठ ज़वानों की मौत हुई है। जिसके बाद जांच में एसआई केके शर्मा का नाम सामने आया था। दिलचस्प ये भी है कि विकास दुबे के एनकाउंटर से पहले ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। जिसमें विकास दुबे की जान को खतरा बताते हुए सुनवाई की मांग की गयी थी। लेकिन न्यायिक प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही विकास मुठभेड़ में मार गिराया गया।
अब विकास दुबे के तर्ज पर केके शर्मा ने न्यायिक शरण की ओर रूख़ किया है। हालांकि सब इंस्पेक्टर ने ये खुलासा नहीं किया है कि, उन्हें किसके खतरा महसूस हो रहा है। यूपी सरकार द्वारा गठित किया गया जांच दल अभी केके शर्मा से पूरी तरह पूछताछ नहीं कर पाया है। ऐसे में बड़ा सवाल ये उठता है कि मामले में सीबीआई और सर्वोच्च न्यायालय को शामिल कर केके शर्मा किससे बचना चाह रहे है। क्या वो न्यायिक प्रक्रिया की आड़ में मामले को लंबा खींचना चाहते है? ज्युडिशियल कस्टडी में जाकर वो किन बड़ी मच्छलियों से बचना चाह रहे है?