न्यूज डेस्क (देवेंद्र कुमार): Manipur Crisis: सुप्रीम कोर्ट ने आज (9 जून 2023) हिंसा प्रभावित सूबे मणिपुर में 3 मई से इंटरनेट सेवाओं के निलंबन के खिलाफ याचिका की तत्काल लिस्टिंग से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ये मामला उच्च न्यायालय में विचाराधीन है, ऐसे में इस पर सुनवाई नहीं की जा सकती है। न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल (Justice Aniruddha Bose and Justice Rajesh Bindal) की अवकाशकालीन न्यायिक पीठ ने कहा, “उच्च न्यायालय में मामले पर विचार कर रहा है। आप इस मामले को दूसरे रास्ते से लाने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? इसे नियमित पीठ के सामने आने दें।”
दो मणिपुरी निवासियों अधिवक्ता चोंगथम विक्टर सिंह और व्यवसायी मेयेंगबाम जेम्स (Advocate Chongtham Victor Singh and businessman Mayengbam James) की ओर से पेश वकील शादान फ़रास्ट (Advocate Shadan Farast) ने याचिका को तुरन्त सूचीबद्ध करने के मामले का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य में 35 दिनों से ज्यादा वक्त बीत गया राज्य में इंटरनेट सेवायें पूरी तरह ठप्प है। मणिपुर सरकार (Government of Manipur) की ओर से पेश वकील ने पीठ को बताया कि उच्च न्यायालय में पहले से ही कुछ मामले लंबित हैं और इस मामले की सुनवाई की कोई जल्दी नहीं है।
बता दे कि शीर्ष अदालत में याचिका दायर की गयी थी, जिसमें कहा गया था कि राज्यव्यापी इंटरनेट बंद से उनका जीवन और रोजीरोटी बुरी तरह प्रभावित हुई है। इंटरनेट बंद करने का याचिकाकर्ताओं और उनके परिवारों दोनों पर आर्थिक, मानवीय, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है।
याचिका में आगे कहा गया है कि याचिकाकर्ता अपने बच्चों को स्कूल भेजने, बैंकों से पैसे हासिल करने, ग्राहकों से पेमेंट पाने, तनख्वाह बांटने करने, ईमेल और व्हाट्सएप के जरिये बातचीत करने पाने में असमर्थ हैं। चोंगथम विक्टर सिंह ने Trendy News Network को बताया कि लगभग एक महीने से पूरे राज्य में इंटरनेट की पहुंच पर पूरी तरह से रोक लगा दी गयी है और इससे लोगों की रोजमर्रा की ज़िन्दगी और उनके मौलिक अधिकारों को काफी नुकसान पहुँच रहा है।
बता दे कि मणिपुर में इंटरनेट पर प्रतिबंध 3 मई को लगाया गया था और जो कि अभी तक जारी है।
याचिका में कहा गया है कि, “अफवाहों को रोकने और गलत जानकारियों को फैलने से रोकने के मकसद से इंटरनेट सेवाओं को लगातार रोके रखना दूरसंचार निलंबन नियम 2017 की ओर से तयशुदा सीमा को पार नहीं करता है।”
याचिकाकर्ता ने कहा कि इंटरनेट प्रतिबंध पर कोई निर्धारित सार्वजनिक आदेश जारी नहीं किया गया है और ये कदम समीक्षा समिति के निरीक्षण से नहीं गुजरा जो कि कानून के तहत जरूरी है।
याचिका में कहा गया है कि इंटरनेट प्रतिबंध का आदेश भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समेत व्यापार और व्यवसाय करने की आज़ादी का गला घोंट रहा है। याचिका में ये भी कहा गया है कि इसके जरिये दूरसंचार निलंबन नियमों के नियम 2(2) का उल्लंघन किया जा रहा है, इसलिये ये कवायद पूरी तरह से असंवैधानिक हैं।
याचिकाकर्ताओं ने मणिपुर में इंटरनेट की बहाली की मांग की, सिर्फ उन इलाकों को छोड़कर जहां अशांति और हिंसा जारी है। शीर्ष अदालत ने मणिपुर में हिंसा से संबंधित मामलों की गंभीरता को देखते हुए मेइती और कुकी समुदायों के बीच हिंसा से प्रभावित लोगों के लिये राहत और पुनर्वास प्रयासों पर केंद्र और राज्य से स्थिति रिपोर्ट मांगी।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने मेइती और कुकी समुदायों के बीच हिंसा के दौरान मणिपुर में जान-माल के नुकसान पर चिंता ज़ाहिर की और वहां सामान्य स्थिति बहाल करने के लिये पर्याप्त उपाय करने पर जोर दिया।
बता दे कि 27 मार्च को मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेइती समुदाय को शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया था, जिसके बा 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM – All Tribal Students Union of Manipur) की एक रैली के बाद मणिपुर में हिंदू मेइती और आदिवासी कूकी जो कि ईसाई हैं, के बीच बड़े पैमाने पर हिंसा भड़की।