प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का विपक्ष का घोषित उद्देश्य उन्हें मणिपुर (Manipur) में चल रही जातीय हिंसा पर बोलने के लिये मजबूर करना था। उन्होंने बोला और उन्होंने संघर्षग्रस्त राज्य में शांति और सुलह के लिये काम करने का वादा किया। हालाँकि गुरुवार को पीएम मोदी (PM Modi) के भाषण की धार विपक्ष के खिलाफ थी, जो सदन की ओर से ध्वनि मत के जरिये प्रस्ताव को खारिज करने से पहले वॉकआउट कर गया। बहस के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर में संघर्ष और हालातों को लेकर सरकार के नज़रिये की ज्यादा साफ तस्वीर सदन में रखी।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और केंद्र मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह (Chief Minister N. Biren Singh) के बचाव में साफतौर पर उतरी हैं। अमित शाह ने कहा कि हाल के सालों में म्यांमार से मणिपुर और मिजोरम (Mizoram) में शरणार्थियों की ताजा आमद ने मैतेई और कुकी के बीच सदियों पुरानी जातीय प्रतिद्वंद्विता को बढ़ा दिया है। उन्होंने विदेशी आबादी को मैनेज करने और जातीय संघर्ष को रोकने के लिये लागू किये सुरक्षा उपायों पर भी रौशनी डाली। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री केंद्र के साथ सहयोग कर रहे हैं और ज़मीनी हालात ये नहीं है कि उन्हें बर्खास्त किया जाये या राष्ट्रपति शासन लगाया जाये। अमित शाह ने जातीय हिंसा की चपेट में घिर दोनों समुदायों मैतेई और कुकी से एक-दूसरे के साथ और केंद्र के साथ बातचीत करने की अपील की। उन्हें उस अपील पर अमल करना चाहिये।
अगर यदि मणिपुर रक्तपात से कलंकित है तो देश की राष्ट्रीय राजनीति सरकार और विपक्ष के बीच मनमुटाव से प्रभावित है। अविश्वास प्रस्ताव पर बहस में समझदारी और बौद्धिकता की कमी थी, लेकिन इसमें विद्वेष और आलोचना बहुत थी क्योंकि दोनों पक्षों ने छोटे-मोटे मुद्दे उठाने की कोशिश की। साल 2024 के चुनाव से पहले विपक्ष INDIA के लिये जिस वैकल्पिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है, वो बहस के जरिये चमक नहीं पाया।
इस बीच सत्तारूढ़ भाजपा ने विपक्ष को चुप कराने के लिये नियमों और मानदंडों को हथियार बनाना जारी रखा और विधायी कामकाज को बाधित किया। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी (Adhir Ranjan Chowdhary) को सदन में उनके कथित अनियंत्रित आचरण के बारे में विशेषाधिकार समिति की ओर से फैसला लिये लेने तक निलंबित कर दिया गया। ये फैसला प्रमुख विपक्षी दल के नेता को अनिश्चित काल के लिये संसद से दूर रखता है। राष्ट्रीय राजनीति एक ना खत्म होने वाली जंग की तरह लग रही है। राजनीतिक दलों को मणिपुर में संघर्ष की नकल नहीं करनी चाहिये। असहमति और विरोध लोकतांत्रिक राजनीति के अंतर्निहित अंग हैं, लेकिन इसमें खोखली बयानबाजी और जिद्दी उदासीनता की कोई जगह नहीं हैं।