नई दिल्ली (ब्यूरो): दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में संपन्न हुए धार्मिक आयोजन तबलीगी ज़मात के मरकज़ को लेकर विवाद की स्थिति बनी हुई है। जिसकी वजह से ये इलाका इंफेक्शन हॉटस्पॉट बन गया है। 281 विदेशी नागरिक सहित इस आयोजन में तकरीबन 1800 लोगों का जमावड़ा लगा हुआ था। कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच इतने सारे लोगों का एकजुट होना अपने आप में खतरे की घंटी है। कार्यक्रम में शामिल हुए सभी विदेशी नागरिकों के खिलाफ वीजा नियमों का उल्लंघन करने का मामला दर्ज कर लिया गया है। ये लोग मैंडेटरी मिशनरी वीजा लेने के बजाय टूरिस्ट वीजा पर हिंदुस्तान में आए थे।
जैसे ही बीती रात मामले का खुलासा हुआ, प्रशासनिक अमले सहित पूरे देश में खलबली मच गई। मरकज में शामिल 24 लोग इंफेक्शन पॉजिटिव पाए गए हैं। 350 लोगों को दिल्ली के अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती करवाया गया है। साथ ही दिल्ली पुलिस कार्यक्रम में शामिल 1600 लोगों की तलाश कर रही है। दिल्ली स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी और विश्व स्वास्थ्य संगठन से जुड़े लोग इलाकों का दौरे कर रहे हैं। दिल्ली पुलिस की ओर से मरकज आयोजकों के खिलाफ महामारी एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है। आयोजकों के मुताबिक कार्यक्रम के दौरान ही 22 मार्च को लॉक डाउन की घोषणा कर दी गई, जिसके कारण लोग वहां फंसे रह गए।
इस पूरे मामले पर मीडिया की रिपोर्टिंग को सवालों के घेरे में लेते हुए ट्विटर पर #मीडिया_वायरस ट्रेंड कर रहा है। ट्विटर पर ये चर्चा जोर पकड़ रही है कि, मीडिया ने इस मामले में चुनिंदा रवैया अख्तियार किया है। जो कि मरकज को बदनाम करने की साजिश है। इस हैशटैग के तहत लोग मीडिया के काम करने के तौर-तरीकों, तटस्थता और पूर्वाग्रहों पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। लोग सवाल उठा रहे हैं कि मरकज़ में फंसे लोगों को छुपा हुआ बताया जा रहा है। जबकि वैष्णो देवी में लोगों को फंसा हुआ बताया जा रहा है। जिस तरह से मीडिया द्वारा शब्दों का चयन किया जा रहा है, उससे नफरत की खेती होती है। मामले को जानबूझकर हिंदू मुस्लिम रंग दिया जा रहा है। मीडिया खासतौर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जानबूझकर मुसलमानों से जुड़े हर मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देती है।