सियासी अखाड़े के सूरमा थे Mulayam Singh Yadav

सियासी हलकों में “नेताजी” के नाम से मशहूर 82 वर्षीय मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री थे, वो आठ बार राज्य विधानसभा और सात बार सांसद के तौर पर चुने गये थे। पहलवान से शिक्षक बने राजनेता ने केंद्रीय रक्षा मंत्री के तौर पर भी काम किया। इटावा जिले (Etawah District) के सैफई गांव (Saifai Village) से ताल्लुक रखने वाले मुलायम का राजनेता के तौर पर निजी सफर यूपी के राजनीतिक इतिहास से जुड़ा हुआ है, 1980 और 1990 के दशक में मंडल-कमंडल की राजनीति के दौर से लेकर जब तक कि उन्होंने अपने बेटे को अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को साल 2012 में पार्टी की बागडोर सौंप दी।

यूपी की सियासत में मुलायम का उदय उनके कॉलेज के दिनों से शुरू हुआ था, 1970 के दशक के बाद तेज सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल के बीच उन्होनें राजनीतिक गालियारे में कदम रखा और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) ने तब यूपी में राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करना शुरू कर दिया, जिसने उच्च जाति के नेताओं के वर्चस्व वाली कांग्रेस पार्टी को दरकिनार कर दिया। भारत का सबसे ज्यादा आबादी वाला सूबा तब भाजपा के आक्रामक राम जन्मभूमि मंदिर अभियान (Ram Janmabhoomi Mandir Campaign) के मद्देनजर तीव्र सांप्रदायिक ध्रुवीकरण देख रहा था।

समाजवादी नेता के रूप में उभरते हुए मुलायम ने जल्द ही खुद को ओबीसी दिग्गज के रूप में स्थापित कर लिया और कांग्रेस के खाली किये गये राजनीतिक स्थान पर कब्जा कर लिया। 1989 में यूपी के 15वें सीएम के रूप में शपथ लेने के बाद कांग्रेस (Congress) सूबे में कभी भी सत्ता में नहीं लौट सकी।

राजनीति में अपने अचानक कदमों के लिये जाने जाने वाले मुलायम न तो अपने मन की बात कहने में झिझकते थे और न ही जिस बात में विश्वास करते थे उसे लागू करने में हिचकिचाते थे।

उन्होंने 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (SSP) के उम्मीदवार के तौर पर इटावा जिले के जसवंत नगर विधानसभा क्षेत्र (Jaswant Nagar Assembly Constituency) को जीतकर 28 साल की छोटी उम्र में पहली बार मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने पहले चरण सिंह (Charan Singh) की पार्टी भारतीय क्रांति दल के उम्मीदवार के तौर पर सात बार जीत हासिल की, बाद में 1989 में जनता दल के उम्मीदवार के रूप में भारतीय लोक दल का नाम बदल दिया, साल 1992 में समाजवादी पार्टी बनाने से पहले वो 1991 में जनता पार्टी के उम्मीदवार बने। 1996 के बाद से जब मुलायम संसद के लिये चुने गये, ये सीट उनके भाई शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) ने जीती है।

सांसद के तौर पर अपने पहले कार्यकाल में मुलायम ने संयुक्त मोर्चा सरकार में केंद्रीय रक्षा मंत्री के रूप में काम किया। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने चीन (China) को पाकिस्तान (Pakistan) के मुकाबले भारत का “बड़ा दुश्मन” कहा और आखिरी तक वो इसी बात पर डटे रहे। मौजूदा दौर में चीन का रूख़ देखते हुए आज भी मुलायम सिंह यादव की कही वो बात प्रासंगिक है।

वो पहली बार 1989 में उत्तर प्रदेश में जनता दल की अगुवाई वाली सरकार के तहत मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनका कार्यकाल दो साल से ज्यादा नहीं चल सका क्योंकि पार्टी केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों में बंट गयी थी।

उनके पहले शासन के दौरान 30 अक्टूबर 1989 को विहिप, आरएसएस और भाजपा (VHP, RSS and BJP) नेताओं के आह्वान पर पुलिस ने अयोध्या में इकट्ठा हुए कारसेवकों पर गोलियां चलायी। बाद में जो कुछ हुआ उस पर उन्होंने दुख और खेद जाहिर किया, लेकिन ये कहते गोलीबारी को जायज ठहराया कि विवादित ढांचे की सुरक्षा देश की एकता और लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों की आस्था के लिये जरूरी था।

साल 1993 के विधानसभा चुनावों के बाद वो दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, जब उन्होंने बसपा (BSP) के साथ सरकार बनायी, तब बसपा की अगुवाई पार्टी के संस्थापक कांशीराम (Kanshiram) कर रहे थे। उस दौरान सरकार कुख्यात गेस्ट हाउस कांड (Guest House Scandal) के कारण गिर गयी जब नाराज सपा कार्यकर्ताओं ने एक बैठक पर हमला किया, जो मायावती (Mayawati) अपनी पार्टी के विधायकों के साथ कर रही थी।

मुलायम 2003 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। इस कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई सामाजिक कल्याण योजनाओं और बहुचर्चित 500 रूपये प्रति माह बेरोजगारी भत्ता की शुरुआत की। उन्होंने गरीब छात्राओं की मदद के लिये कन्या विद्या धन योजना भी शुरू की, जिसे बाद में अखिलेश यादव ने पुनर्जीवित किया, जो कि साल 2012 में मुख्यमंत्री बने।

अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने के उनकी सरकार के फैसले से भाजपा के सहयोगी उन्हें “मुल्ला मुलायम” कहने लगे, इससे उन्हें अपनी पार्टी के लिये मुस्लिम-यादव या MY कॉम्बिनेशन बनाने में मदद मिली, जिससे उन्हें अच्छी खासी पॉलिटिकल माइलेज मिली।

वो सरकारी विज्ञप्ति में हिंदी के इस्तेमाल के प्रबल समर्थक थे, और अक्सर अंग्रेजी के प्रचार के खिलाफ बोलते थे। साल 2013 में उन्होंने संसद में अंग्रेजी के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग की, जबकि साल 2009 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के घोषणापत्र ने “महंगी अंग्रेजी शिक्षा” और कंप्यूटर के खिलाफ ये कहते हुए विरोध किया कि इससे बेरोजगारी बढ़ेगी।

साल 2014 में बलात्कार के लिये सजा-ए-मौत का विरोध करने वाले उनके बयान “लड़के, लड़के हैं, उनसे गलतियां हो जाती है, इसक जमकर विरोध हुआ। उनका ये बयान उनके बड़े विवादों में से एक है। अभी विरोधी पार्टियां खासतौर से भाजपा इस बयान को लेकर सपा पर तंज कसती है। जब सपा शासन में अराजकता का हवाला देना होता है तो विरोधी अक्सर मुलायम सिंह यादव के इसी बयान को सामने लाते है।

मुलायम के परिवार में पहली पत्नी से उनका बेटा अखिलेश, दूसरी पत्नी साधना गुप्ता से बेटा प्रतीक है। इसके साथ भाइयों समेत उनका परिवार पोते-पोतियों से भरपूरा हैं।

सह-संस्थापक संपादक : राम अजोर

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