न्यूज डेस्क (श्री हर्षिणी सिंधू): म्यांमार में सैन्य शासन लगातार बेलगाम (Myanmar crisis) होता जा रहा है। विरोध प्रदर्शनों को बुरी तरह कुचलने के लिए मानव अधिकारों को ताक पर रखकर सेना और स्थानीय सुरक्षा बल आम जनता पर सीधी गोलीबारी कर रहे हैं। इसी क्रम में बीते शुक्रवार (26 मार्च 2021) को 114 और शनिवार (27 मार्च 2021) 91 लोग मारे गये। मारे गये इन लोगों में महिलायें और मासूम बच्चे भी शामिल है। सेना द्वारा शासन का तख्तापलट करने के बाद बेरहमी से मार दिये गये प्रदर्शनकारियों की मौत का ये अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। म्यांमार में अब तक लोकतंत्र की आवाज बुलंद करने वाले करीब 450 आंदोलनकारी सेना द्वारा बेरहमी से मौत के घाट उतार दिये गये हैं।
अमेरिकी रक्षा विभाग के अंतर्राष्ट्रीय सेना प्रमुख जनरल मार्क ए माइले ने ब्रिटेन, कोरिया, न्यूजीलैंड, इटली, ग्रीस, जापान, डेनमार्क और नीदरलैंड के सेना प्रमुखों की मौजूदगी में इस प्रकरण की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि सैन्य शासक आम जनता और प्रदर्शनकारियों पर युद्धक हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। म्यांमार की सेना का ये रवैया पेशेवर सेना से बिल्कुल अलग है। सेना आम लोगों की रक्षा करती है, उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाती। सेना को अंतरराष्ट्रीय नियमों का सम्मान करते हुए आम जनता के हितों की रक्षा का का काम करना चाहिये, ना कि उन्हें मौत के घाट उतारा जाना चाहिए।
जनरल मार्क ए माइले ने आगे अपील करते हुए कहा कि- आम जनता पर सेना द्वारा होने वाले अत्याचार को तुरंत रोका जाना चाहिए। म्यांमार में लोकतांत्रिक व्यवस्था की बहाली को सुनिश्चित कर शांति व्यवस्था बनाए रखने के विकल्पों पर गौर किया जाना चाहिये। तख्तापलट के बाद कई हजारों लोगों को हिरासत में लेकर नज़रबंद कर दिया गया है। अब तक हुई इन कवायदों में 20 मासूम बच्चों समेत 350 लोग सेना के हाथों मौत पा चुके हैं। इंटरनेशनल एमनेस्टी के मुताबिक मरने वालों की तादाद इससे कहीं ज्यादा हो सकती है।
यूनाइटेड नेशन सहित कई बड़े अंतरराष्ट्रीय सामुदायिक मंचों ने म्यांमार के हालातों पर काफी चिंतित ज़ाहिर की है। संयुक्त राष्ट्र के कई देश इस संकट पर संजीदगी भरी प्रतिक्रिया दे चुके है। सभी को मानना है कि वहां लोकतांत्रिक की बहाली हो। इसी क्रम में अमेरिका, कनाडा और फ्रांस ने म्यांमार पर कड़े प्रतिबंध लगाये। हाल ही में यूरोपियन यूनियन ने म्यांमार के शीर्ष 11 लोगों पर प्रतिबंध लगाये। इनमें म्यांमार की कुछ कंपनियां भी शामिल है। जिनकी बागडोर पूरी तरह से वहां की सेना के पास है। इन सभी देशों ने म्यांमार से व्यापारिक समझौते खत्म करने और वहां के कुछ खास लोगों को अपने मुल्क में आने पर कड़ी रोक लगाई है।
गौरतलब है कि बीते 1 फरवरी 2021 को म्यांमार के कमांडर इन चीफ ऑफ डिफेंस सर्विस सीनियर जनरल मिन आंग ह्लेनिंग ने लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट करते हुए सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले ली। साथ ही उन्होंने खुद को म्यांमार का प्रमुख घोषित किया। जिसके बाद नेशनल काउंसिल का गठन किया गया। जिसमें सेना के कई शीर्ष अधिकारियों को जगह दी गयी। इस दौरान म्यांमार में इंटरनेट सेवा को तत्काल रोक दिया गया। साथ ही हिंसा और गोलीबारी की खबरें देश से बाहर ना पहुंचे इसलिए मीडिया पर भी कड़ी सेंसरशिप लगा दी गई। नवंबर 2020 से आंग सांग सू की चुनावी जीत हासिल कर दोबारा सत्ता पर काबिज हुई थी। जनरल मिन आंग ह्लेनिंग ने आरोप लगाया कि इन चुनावों में बड़े स्तर पर धोखाधड़ी कर आंग सांग सू की ने जीत हासिल की है। इसीलिए ये मामला सीधे तौर पर सिविल नाफरमानी का बनता है। इसके साथ ही सैन्य तानाशाह की अगुवाई में आंग सांग सू की पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने के संगीन आरोप भी लगाये गये। दुनिया की निगाहें म्यांमार की सेना की बेरहमी की ओर लगातार बनी हुई है।