मथुरा के नंदबाबा मंदिर में नमाज़ पढ़ने (Namaj In Nand Bhawan Premises) के मामले में चार लोगों – फ़ैसल ख़ान, चांद मोहम्मद, नीलेश गुप्ता और आलोक रत्न के ख़िलाफ़ 29 अक्तूबर को मंदिर परिसर में नमाज़ पढ़कर धर्मस्थल का अपमान करने और दो समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने या इस कार्य में सहयोग करने के आरोप हैं। फ़ैसल और चांद दिल्ली में रहते हैं और ‘ख़ुदाई ख़िदमतगार’ नाम की एक सामाजिक संस्था (Social Institution) के साथ जुड़े हुए हैं। नीलेश और आलोक गांधीवादी कार्यकर्ता हैं। देश के जहरीले माहौल में सांप्रदायिक सौहार्द कायम करने में इन दोनों, खासकर फ़ैसल की सार्थक भूमिका रही है। वे ‘सबका घर’ संस्था में हर साल जन्माष्टमी (Janmashtami) भी मनाते हैं, होली भी, दीवाली भी। उनके कहने पर मज़हब के कट्टरपंथियों का विरोध झेलकर सैकड़ों मुस्लिम युवा दीवाली में अपना घर सजाते हैं। मथुरा में जाकर मंदिर में नमाज़ पढ़ने और उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया में डालने के पीछे उनका उद्धेश्य सांप्रदायिक भरोसे को बढ़ाना ही रहा होगा। मंदिर में नमाज़ अदा करना कोई बड़ा मसला नहीं है।कभी कुछ विशेष परिस्थितियों में देश भर में हिन्दू और सिक्ख मुस्लिम भाईयों को मंदिरों और गुरुद्वारों में नमाज़ अदा करने के अवसर देते ही रहे हैं। फ़ैसल और चांद ने मंदिर के प्रबंधन से अनुमति न लेने की भूल ज़रूर की होगी, लेकिन इस मामले में गिरफ्तारी के पहले उनकी नीयत और उनका पूर्व आचरण भी देखा जाना चाहिए था।
बगैर मामले की तह में गए मीडिया के दबाव में Faisal Khan की गिरफ्तारी से उन तमाम लोगों को धक्का लगा है जो देश में सभी धर्मों के लोगों के बीच आपसी समझ, सम्मान, मुहब्बत और भाईचारा बढाने की कोशिशों में लगे हैं। #istandwithfaisalkhan
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