नायक जादू नाथ सिंह (Nayak Jadu Nath Singh) भारतीय आर्मी में सिपाही थे और भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 में वे अविरल साहस के साथ जम्मू और कश्मीर में लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए। मरणोपरांत उन्हें परम वीर चक्र से शोभित किया गया।
साल 1947 की सर्दियों में जम्मू और कश्मीर में युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने 24 दिसम्बर को झंगर पर कब्ज़ा कर लिया। झंगर पर काबू पा लेने के कारण नौशेरा सेक्टर (Nowshera Sector) में पाकिस्तानी सेना (Pakistani Army) विजयी स्थिति में आ गयी थी। दुश्मनों की मीरपुर और पूंछ (Mirpur and Poonch) में संचार व्यवस्था भी अच्छी थी। अब पाकिस्तानी दुश्मन पूरी तैयारी के साथ नौशेरा पर हमला करने को तैयार थे।
भारतीय आर्मी ये जानती थी इसलिये उन्होंने जनवरी 1948 में कोट गाँव पर कब्ज़ा कर लिया ताकि दुश्मन आस-पास के इलाके में इकठ्ठे ना हो सके और हमला ना कर सके। इस सब के लिये ब्रिगेडियर उस्मान (Brigadier Usman 50 Para Brigade) ने व्यापक व्यवस्था कर रखी थी, साथ ही मजबूत पिकेट्स भी बनवा दिये थे। इन्ही पिकेट्स में से एक था नौशेरा के उत्तर में तेन धार में।
पहले से ही अनुमान था कि दुश्मन हमला करेगा और दुश्मन ने हमला किया 6 फरवरी को सुबह 6:40 पर। दुश्मनों ने तेन धार में भारी हथियारों से ओपन फायरिंग शुरू कर दी। इसके साथ ही पूरा का पूरा तेन धार मशीन गन के शोर, मोर्टार फायर (Mortar Fire) की आवाज़ से गूंज उठा। दुश्मनों ने अँधेरे का फायदा उठाते हुए भारतीय पिकेट्स तक पहुंच गये।
भोर की पहली रोशनी में देखा गया कि चारों ओर हजारों की तादाद में भारतीय सैनिक (Indian soldiers) हताहत हालात में ज़मीन पर रेंग रहे थे। 6 फरवरी की उस भयानक सुबह के समय नायक जादू नाथ सिंह तेन धार में पिकेट नबंर दो में थे। उनको मिलाकर सिर्फ 9 सैनिक थे उस पोस्ट पर।
दुश्मनों ने उस पोस्ट पर कब्ज़ा करने के लिये सफल हमला किया था। इस नाजुक हालत में नायक जादू नाथ सिंह ने महान वीरता और शानदार नेतृत्व का प्रदर्शन किया। जब जादू नाथ सिंह के 4 साथी बुरी तरह घायल हो गये तब भी उन्होंने बाकी बचे हुए साथियो के साथ मिल कर अगले हमले का सामना किया। पोस्ट में अब सैनिकों की संख्या काफ़ी कम हो चुकी थी, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और पोस्ट से पीछे नहीं हटे।
जब पोस्ट के सभी सैनिक (नायक जादू नाथ सिंह समेत) बुरी तरह घायल हो गये, इनमें एक ब्रेन गन चलाने वाला सैनिक भी था (घायल ब्रेन गन चलाने वाला सैनिक, ब्रेन गन चलाने के हालत में नहीं था) तब जादू नाथ सिंह ने ब्रेन गन खुद के हाथों में ली। तब तक दुश्मन आगे बढ़कर पोस्ट की दीवार तक आ चुके थे।
नायक जादू नाथ सिंह ने खुद की चिंता किये बिना, दुश्मनों के सामने आ गये और ब्रेन गन (Brain Gun) से फायरिंग करने लगे साथ ही अपने साथियो को भी जोश दिलाते गये। नायक जादू नाथ सिंह के इस बहादुरी भरे कदम ने जो निश्चित हार थी उसे जीत में बदल दिया। उन्होंने दूसरी बार पोस्ट को बचाया था।
अब तक जादू नाथ सिंह को छोड़ कर बाकी 8 सैनिक वीर गति को प्राप्त हो चुके थे। दुश्मनों ने तीसरा और आखिरी हमला किया पोस्ट पर कब्ज़ा करने के लिये। नायक जादू नाथ सिंह अच्छी हालत में नहीं थे और बिल्कुल अकेले थे। उनके चारों और अपने ही साथियों के पार्थिव शव पड़े थे।
जादू नाथ सिंह दुश्मनों के तीसरे हमले का जवाब देने के लिये उठ खड़े हुए। वे अपनी ट्रेंच (Trench) से बाहर निकल आये और अपनी स्टेन गन दुश्मनों की ओर कर के फायरिंग करने लगे। इससे दुश्मन हैरत में आ गये। आखिर में दुश्मन की एक गोली उनके सीने में लगी और दूसरी उनके सिर में।
युद्ध में उच्चतम युद्ध साहस और वीरता के कारण नायक जादू नाथ सिंह को मरणोपरांत परम वीर चक्र (Posthumous Param Vir Chakra) से सम्मानित किया गया। बाद में उनकी याद उनके जन्मस्थान शाहजहाँपुर उत्तर प्रदेश में एक खेल स्टेडियम (Sports stadium) भी बनवाया गया।