NCP Tussle: महीनों तक चली राजनीतिक साजिशों के नाटकीय अंत में, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता अजीत पवार ने अपने चाचा और एनसीपी संरक्षक शरद पवार (NCP Patron Sharad Pawar) से अलग होकर आखिरकार महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से हाथ मिला लिया है। एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) की अगुवाई वाली मंत्रिपरिषद में जूनियर पवार ने दूसरे उपमुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली, लेकिन सूबे की राजनीति में चल रहे नाटक में ये शायद ही आखिरी सियासी नाटक हो। एकनाथ शिंदे ने पिछले साल उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की अगुवाई वाली शिवसेना से अलग होने और उनकी जगह मुख्यमंत्री बनने के लिये ठीक इसी तरह की पटकथा रची थी।
दलबदल विरोधी कानून के तहत एकनाथ शिंदे के खिलाफ अयोग्यता याचिका (Disqualification Petition) पर महाराष्ट्र अध्यक्ष की ओर से कभी भी फैसला किया जा सकता है, और सीएम पद खाली होने के हालातों में जूनियर पवार को संभवत: आगे बढ़ाया जा सकता है। एनसीपी में खींचतान के कारण चाचा और भतीजे के बीच गहरी खाई पैदा हो गयी है, जिसे दोनों ही लगभग छिपाने की कोशिश कर रहे है। शरद पवार ने दुबारा एनसीपी को खड़ा करने की कसम खाई है, लेकिन 82 साल की उम्र में ये उनकी क्षमता की अग्नि परीक्षा होगी। अलग हुए गुट ने दावा किया है कि उसे पार्टी में सभी का आशीर्वाद हासिल है, जो कि पार्टी संस्थापक के साथ मौन सहमति को दर्शाता है। मौजूदा धुंधले सियासी बादलों ने असल ज़मीनी हकीकत की पर्तों को लगभग ढ़क सा दिया है, जिसमें हकीकत और परसेप्शन को अलग करना फिलहाल के लिये आसान नहीं दिख रहा है।
राकांपा के दलबदलुओं को गले लगाकर भाजपा ने राज्य में एक और करतब कर दिखाया है। भाजपा ने राकांपा और उसके नेताओं पर वंशवाद और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। जो लोग भाजपा में शामिल हुए हैं उनमें से कई लोग अलग अलग एजेंसियों के तहत जांचों का सामना कर रहे हैं। साल 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद लंबे समय से सहयोगी शिवसेना के साथ गठबंधन से स्तब्ध भाजपा को अजीत पवार के तौर पर कद्दावर साथी मिला, और साथ ही वो भाजपा के देवेंद्र फड़नवीस (Devendra Fadnavis) की अगुवाई वाली शॉर्ट टर्म सरकार में उप मुख्यमंत्री भी थे। उसके बाद बनी कांग्रेस-शिवसेना-एनसीपी सरकार में जूनियर पवार फिर से उपमुख्यमंत्री बने। एक ही विधानसभा के भीतर तीसरे राजनीतिक उलट फेर के तहत उपमुख्यमंत्री का पद ग्रहण करके उन्होंने अवसरवाद की असीमित संभावनाओं का मुज़ाहिरा किया है।
उनके साथ शपथ लेने वाले नये मंत्री राज्य के अलग-अलग सामाजिक गुटों की अगुवाई करते हैं। मूल राकांपा (शरद पवार की अगुवाई वाली) ने अलग हुए विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही शुरू कर दी है, इसके साथ ही वरिष्ठ पवार के दो वफादार विधायकों जयंत पाटिल और जितेंद्र अव्हाड (Jayant Patil and Jitendra Awhad) को विधानसभा से अयोग्य घोषित करने की मांग भी जोर पकड़ रही है। राकांपा के बिखरने से राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता पर खासा असर पड़ रहा है, जिसके सीनियर पवार बड़े समर्थक रहे हैं। ये सत्ता बरकरार रखने के लिये भाजपा की रणनीति में अंतहीन योजनाओं को भी दिखाता है, साथ ही भाजपा और शिवसेना के शिंदे गुट के बीच मौजूदा गठबंधन में ताजा तनाव की कड़ियों को भी जोड़ता है।