न्यूज़ डेस्क (निकुंजा राव): पड़ोसी देश नेपाल (Nepal) द्वारा हाल ही में जारी नया राजनीतिक नक्शा भारत और नेपाल के कूटनीतिक संबंधों पर बड़ा असर डालने जा रहा है। इस नए नक्शे में लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को नेपाली सीमा का हिस्सा दिखाया गया है। इस नए नक्शे की रूपरेखा नेपाली मंत्रिमंडल की बैठक के बाद तैयार की गई। कैबिनेट बैठक के दौरान अपने दावे को जायज़ ठहराते हुए नेपाली संसद ने लिम्पियाधुरा को नेपाली सीमा का हिस्सा माना। इस इलाके से ही महाकाली नदी का उद्गम होता है। जो कि भारत (India) के उत्तराखंड का हिस्सा है। मामले की औपचारिक जानकारी नेपाल की विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली ने ट्विटर के माध्यम से दी।
इस प्रकरण की शुरुआत तब हुई, जब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से लिपुलेख से होकर तिब्बत में मानसरोवर जाने वाले रास्ते का लोकार्पण किया। रास्ता बनाए जाने के दौरान भी नेपाल इस परियोजना का विरोध करता रहा। जिसके लिए नेपाली प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर विरोध जाहिर किया था। फिलहाल भारत ने मामले पर रुख़ साफ करते हुए दावा किया कि- सड़क निर्माण भारतीय अधिकृत इलाके में किया गया है। जहां पहले रास्ता हुआ करता था। फिलहाल मामले को सुलझाने के लिए दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच वार्ता कार्यक्रम तय हुआ है। लंबे समय से भारत और नेपाल लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख इलाके में अपना दावा जताते रहे हैं।
कूटनीतिक जानकार मानते हैं कि, नेपाल ये काम चीन के इशारे पर कर रहा है। बीजिंग के प्रभाव में आकर नेपाली संसद लंबे समय से चली आ रही, दोनों देशों की आपसी समझ को खत्म करने के कगार पर है। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी का वैचारिक तालमेल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना से है। नेपाल में अलिखित का नियम चल रहा है जिसके मुताबिक चीन, नेपाल की सभी जरूरतें पूरी कर सकता है। ऐसे में नई दिल्ली में बैठे हुक्मरानों को प्रभावी कूटनीतिक और राजनयिक कदम उठाने होंगे। फिलहाल नई दिल्ली को जरूरत है कि, वे अपने पुराने दोस्त की आशंकाओं को दूर करें।