न्यूज डेस्क (विश्वरूप प्रियदर्शी): Covid-19: हाल ही में सामने आये एक नये अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दक्षिण एशियाई लोगों में पाये जाने वाले एक जीन की पहचान की है, जो फेफड़ों के खराब होने और कोरोना से होने वाली मौत के जोखिम को दोगुना कर देता है। इस अध्ययन से जुड़े तथ्यों को बीते गुरुवार (4 नवंबर 2021) को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के नेचर जेनेटिक्स जर्नल (Nature Genetics Journal) में प्रकाशित किया गया।
अध्ययन में सामने आया कि जीन LZTFL1 वायरस के हमला करने के तौर तरीकों और प्रतिक्रिया करने के तरीके को बदल देता है। माना जा रहा है कि इसे अब तक पहचाने गये सबसे अहम आनुवंशिक जोखिम कारक (Genetic Risk Factors) के तौर पर देखा जा रहा है।
अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि 60 फीसदी दक्षिण एशियाई लोगों में ये जीन पाया जाता है जबकि यूरोपीय देशों में ये जीन मात्र 15 फीसदी लोगों में ही पाया जाता है। गौरतलब है कि ये साइंटिफिक स्टडी (Scientific Study) सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप में कोरोना वायरस के मद्देनज़र ही की गयी है।
रिसर्च के मुताबिक ये जीन एक प्रमुख सुरक्षात्मक तंत्र का रास्ता रोकता है, जो कि फेफड़ों पर होने वाले वायरल संक्रमण (Viral Infection) को काफी हद तक रोकता है। जब ये कोशिकाएं SARS-CoV-2 के साथ मिल जाती हैं, जो कि कोविड-19 संक्रमण का कारण बनती हैं, तो वे विशिष्ट कोशिकाओं (Specific Cells) में बदल जाती हैं और इससे वायरस इंसानी शरीर पर आसानी से हमला कर देता है।
रिसर्च में ये भी बताया गया है कि जिन लोगों में LZTFL1 जीन है, उनके टीकाकरण से ज़्यादा फायदा हो सकता है। इस मामले पर गाय्स एंड सेंट थॉमस एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट (Guy's & St Thomas NHS Foundation Trust) यूके के प्रोफेसर फ्रांसिस फ्लिंटर (Professor Francis Flinter) ने कहा कि विभिन्न जातीय समूहों में बीमारी और मृत्यु जोखिम के बीच अंतर को पहले सामाजिक-आर्थिक कारकों को जिम्मेदार ठहराया गया था। हालांकि ये साफ था कि ये एक पूर्ण स्पष्टीकरण नहीं है। फिलहाल इसके लिये आगे और जांच की जरूरत होगी। अध्ययन में शामिल प्रोफेसर फ्लिंटर ने कहा, LZTFL1 जीन COVID-19 के कारण श्वसन विफलता (Respiratory Failure) के लिये मुख्यतौर पर जिम्मेदार है।