पश्चिम Asia में सांसें भरता नया परमाणु गठबंधन

West Asia: ‘जंग की बेहतरीन महारत है बिना लड़े ही दुश्मन को काबू में करना’ शायद इज़राइल ने चीनी जनरल और दार्शनिक सन त्ज़ु की 475 और 221 ईसा पूर्व के बीच लिखी गयी किताब ‘द आर्ट ऑफ वॉर’ से एक पत्ता निकाला है, क्योंकि हिब्रू भाषी मुल्क इस्राइल ने मित्र राष्ट्रों के साथ परमाणु प्रौद्योगिकी साझा करने की कसम खायी है जो कि अब्राहम समझौते (Abraham Accords) का हिस्सा हैं।

न्यूक्लियर टैक्नोलॉजी ट्रांसफर से जुड़ी पूरी जानकारी का खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है, लेकिन पुख्ता तौर पर ये परमाणु ऊर्जा के सर्वोच्च इस्तेमाल से जुड़ी ताकत के इस्तेमाल की क्लासीफाइड जानकारियां है, जिन्हें इस्राइल (Israel) ने मित्र राष्ट्रों के साथ साझा किया है। राहत की बात ये है कि तकनीक का हस्तांतरण ग्लोबल वार्मिंग के कारण संकट से जूझ रही पृथ्वी को ऊर्जा का स्वच्छ स्रोत मुहैया करवायेगा।

लेकिन एक दूसरा पहलू भी है। परमाणु की उतनी ही ताकत का इस्तेमाल परमाणु बम बनाने के लिये किया जा सकता है, जिसे अगर बेलगाम छोड़ दिया जाये तो कयामत भी बरपा सकती है। खैर ईरान (Iran) पर नजर रखते हुए पश्चिम को हमेशा पश्चिम एशिया की हिलती रेत के नीचे छिपे परमाणु बम की आशंका हमेशा आशंका ही रही। लेकिन पड़ोस में इज़राइल ने सालों से अपने परमाणु शस्त्रागार (Nuclear Arsenal) में खासा इज़ाफा किया है।

जंगी मैदान के जानकारों के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के बराबर इजरायल के पास लगभग 80-400 न्यूक्लियर वॉरहेड हैं। संयोग से तीनों ही मुल्क परमाणु हथियार अप्रसार संधि के सदस्य नहीं हैं। लेकिन चिंता इस बात की है कि यहूदी मुल्क के इस कदम का मकसद उसके कट्टर ईरान को निशाना बनाना हो सकता है। परमाणु तकनीक हस्तांतरण की ये कवायद शिया बहुल ईरान के लिये भारी चिंता का सब़ब है। तेल अवीव कभी भी तेहरान को परमाणु हथियार हासिल करते हुए नहीं देखा सकता, ये उसके लिये कतई बर्दाश्त वाली बात नहीं होगी।

फिलहाल ईरान पश्चिमी ताकतें के कड़े प्रतिबंधों से जूझ रहा है। परमाणु हथियार पाने की महत्त्तवाकांक्षा और कवायदों के बीच लगे इन प्रतिबंधों ने तेहरान को लगभग अपंग से कर दिया है, क्योंकि ये प्रतिबंध यूरेनियम संवर्धन (Uranium Enrichment) करने से उसे रोक रहे है। बगैर यूरेनियम संवर्धन किये उसे परमाणु हथियारों वाली ताकत नसीब नहीं हो पायेगा। कई मौकों और मंचों पर तेहरान जोर देकर कहता रहा है कि उसका यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम सिर्फ शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये है।

जब ईरान की बात आती है तो पश्चिमी जंगी ताकतें दमन करने में जोश का मुज़ाहिरा करती हैं। संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ से लेकर अमेरिका तक सभी ने तेहरान को परमाणु हथियारों का पीछा करने से रोकने के लिये गाहे-बगाहे प्रतिबंध लगाये, जिसका सीधा असर उसकी पेट्रोलियम इंडस्ट्री और अर्थव्यवस्था पर बना हुआ है। इस्राइल जिस तरह से परमाणु ताकत से जुड़ी प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण उसे लेकर पश्चिमी कूटनीति के मायावी गलियारों में ज्यादा सुगबुगाहट नहीं देखी गयी। औपचारिकता के लिये भी छानबीन, विमर्श या चर्चा जैसी रस्मी कवायदें भी नहीं हुई।

इजरायल भी यूरोपीय और अमेरिकियों के तर्ज पर परमाणु समझौते या ईरान के साथ संयुक्त व्यापक कार्य योजना पर लौटने के कदम का जोरदार विरोध करता रहा है। तेल अवीव हमेशा जुलाई 2015 में ईरान और विश्व शक्तियों के बीच हस्ताक्षरित JCPOA परमाणु समझौते का हवाला देता रहा है, जिसमें ईरान प्रतिबंधों को हटाने के बदले में अपने परमाणु कार्यक्रम पर अंकुश लगाने के लिये राज़ी हुआ था।

सह-संस्थापक संपादक : राम अजोर

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