नई दिल्ली (हेल्थ डेस्क): Depression: जब शरीर में कहीं चोट लग जाती है या कोई संक्रमण हो जाता है तो डॉक्टर एक्स-रे और ब्लड टेस्टिंग कराने के लिये कहता है। फिर रिपोर्ट्स देखकर इलाज शुरू होता है। इस कवायद से काफी हद तक समस्या की सारी जानकारी मिल जाती है। लेकिन अगर कोई दिमागी तौर पर परेशान है, यानि अगर कोई शख़्स उदास है तो इस समस्या का पता लैब में किये गये किसी भी परीक्षण से नहीं लगाया जा सकता है, ऐसे व्यक्ति की मदद साइकेट्रिस्ट (Psychiatrist) ही कर सकते हैं, लेकिन कई बार उन्हें ये भी पक्का पता नहीं होता कि असली समस्या क्या है।
अब अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक ऐसे ब्लड टेस्ट की खोज की है जो किसी शख़्स में डिप्रेशन और बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) के बारे में बता सकता है, ठीक वैसे ही जैसे एक साधारण ब्लड टेस्ट से डायबिटीज, थायराइड, कोलेस्ट्रॉल जैसी कई बीमारियों और संक्रमणों का पता लगाया जाता है। यानि अब तक जिस डिप्रेशन को हम एक मनोवैज्ञानिक बीमारी मानते थे, उसे अब एक शारीरिक समस्या माना जा सकता है।
इस समय पूरी दुनिया में 80 करोड़ से ज्यादा लोग किसी न किसी मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं, जबकि भारत में ऐसे लोगों की तादाद 19 करोड़ से ज्यादा है।
यानि मानसिक रोग किसी महामारी से कम नहीं है, लेकिन फिर भी कई बीमारियों के मुकाबले इसका पता लगाना और इलाज करना बहुत मुश्किल होता है।
पूरी दुनिया में अब तक 26 करोड़ लोग कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं और इससे करीब 52 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। ये संक्रमण 2 साल पहले ही दुनिया में आया था और कुछ ही दिनों में शरीर में कोरोना वायरस का चंद मिनटों में पता लगाने वाली तकनीक सामने आ गयी। जबकि 4 हजार साल पहले मेसोपोटामिया में लिखी गयी किताबों में भी मानसिक रोगों का जिक्र मिलता है और आज की तारीख में हर साल 80 लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती है, 4 हजार साल से वैज्ञानिक ऐसी कोई भी तकनीक नहीं खोज पाये है, जो अवसाद और उदासी की सही पहचान कर सके। लेकिन अब इस दिशा में अमेरिका में एक क्रांतिकारी आविष्कार हुआ है।
इंडियाना यूनिवर्सिटी ऑफ अमेरिका (Indiana University of America) के स्कूल ऑफ मेडिसिन ने दावा किया है कि एक साधारण ब्लड टेस्ट के जरिये डिप्रेशन और बाइपोलर डिसऑर्डर का पता लगाया जा सकता है।
डिप्रेशन और बाइपोलर डिसऑर्डर में यही अंतर है कि डिप्रेशन में माइंडेसट डाउन रहता है, थकावट होती है, शरीर में ऊर्जा की कमी महसूस होती है और मौत के ख्याल आने लगते हैं। जबकि बाइपोलर डिसऑर्डर, जिसे उन्माद के तौर पर भी जाना जाता है, रोगी को अपने शरीर में बेहद ज़्यादा ऊर्जा महसूस होती है, नींद खराब होती है, और उसे लगता है कि वो दुनिया में कोई भी काम कर सकता है और वो लक्ष्यहीन तरीके से काम करना शुरू कर देता है।
इंडियाना विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा आविष्कार किया गया ब्लड टेस्ट इन दो हालातों का पता लगा सकता है और उनमें अंतर कर सकता है। इस टेस्ट को 15 साल के शोध के बाद तैयार किया गया है और अब इसे अमेरिका में मान्यता मिल गयी है, यानि वहां के डॉक्टर उन मरीजों को ये टेस्ट करवाने के लिए कह सकते हैं।
अब समझिये आपके खून की कुछ बूंदें कैसे बता सकती हैं कि आपको डिप्रेशन है या नहीं? दरअसल, जब कोई शख़्स डिप्रेशन या उन्माद का शिकार होता है तो उसके बायोलॉजिकल मार्कर (Biological Marker) बदल जाते हैं। जब कोई डॉक्टर आपके ब्लडप्रेशर की जांच करता है, आपकी नाड़ी को देखता है, एक ईसीजी करता है, या आपको ब्लड़ टेस्ट कराने के लिये कहता है तो वो असल में आपके बायोलॉजिकल मार्करों की जांच कर रहा है। अलग-अलग बीमारियों के लिये अलग-अलग बायोलॉजिकल मार्करों की जांच की जाती है और अगर ये मार्कर नॉर्मल से ऊपर या नीचे हैं तो डॉक्टर आपको बता सकते हैं कि आपको कौन सी बीमारी है।
वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि जब किसी व्यक्ति को डिप्रेशन होता है तो उसके शरीर का आरएनए, डीएनए, प्रोटीन और हार्मोन पर भी सीधा असर पड़ता है, जिसका पता 12 अलग-अलग बायोलॉजिकल मार्करों से लगाया जा सकता है। एक बार इन मार्करों में बदलाव का पता चलने के बाद डिप्रेशन से ग्रस्त लोगों को दवायें दी जा सकती हैं। क्योंकि अब तक डिप्रेशन और उन्माद के इलाज के लिये डॉक्टर मरीजों को अलग-अलग दवाएं देते हैं कि कौन सी दवा उन पर असर कर रही है, फिर भी कई बार मरीजों को कई सालों तक सही इलाज नहीं मिल पाता है, लेकिन अब टेस्ट की वजह से डॉक्टर्स मरीजों को उनकी जरूरत के हिसाब से दवायें और इलाज दे सकेंगे।
कुल मिलाकर इस खबर का लबोलुआब ये है कि अब तक जिसे हम मानसिक रोग मानते थे, उसे अब शारीरिक समस्या माना जा सकता है।
जिस तरह आप दूसरी बीमारियों से बचने के लिए अपने शरीर को फिट रखते हैं, उसी तरह आप अपने खान-पान का भी ध्यान रखते हैं, उसी तरह डिप्रेशन को एक बीमारी मानकर इससे बचने की कोशिश करनी चाहिए।
मानसिक रोगों की एक वज़ह ये है कि लोग या तो भविष्य की चिंताओं में खो जाते हैं या अपने अतीत से चिपके रहते हैं। कोई भी वर्तमान में नहीं जीना चाहता, इसलिए वर्तमान में जीने की आदत डालें ताकि अवसाद की जांच कराने की जरूरत न पड़े। इसके अलावा तनाव और डिप्रेशन का सबसे बड़ा कारण ये है कि लोग वो बनना चाहते हैं जो वो नहीं हैं। इसलिए स्वीकारें करें कि आप कौन हैं। खुद पर विश्वास करें और दूसरों से अपनी तुलना करना बंद करें।