अब बहुत देर हो चुकी है। इस महामारी को बहुत हल्के में लिया गया नतीजन हम लॉकडाउन की बेबसी से जूझ रहे हैं। लॉकडाउन इतना कारगर कदम नहीं है। इसके लिए प्रशासनिक तंत्र को चार कदम आगे बढ़कर काम करने के साथ, ऐसा प्रभावी तंत्र विकसित करना होगा जो इस वायरस की जड़ों पर सीधा हमला करें। स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़े सामानों का अभाव और वायरस संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों के पास बुनियादी उपकरण तक उपलब्ध नहीं है, जिससे उनका संक्रमण से बचाव हो सके। इन्हीं हालातों के चलते तस्वीर एकदम उलट तस्वीर एकदम उल्ट हो जाती है। इससे आत्मविश्वास बुरी तरह डगमगाने लगता है। सबसे बुरा तो ये है कि सरकार संक्रमण की फैल रही इस महामारी के जमीनी हालात जनता से छुपा रही है। आंकड़े उपलब्ध करवाने वाली एजेंसियां और एनफोर्समेंट डिपार्टमेंट जनता के बीच हवाई और बेबुनियादी आंकड़े पेश कर रहे हैं। सरकार की इन हरकतों से ये बात साफ हो जाती है कि, हालात काबू से बाहर हो चुके हैं। हालातों को काबू करने के सरकारी दावे से हकीकत बिल्कुल उल्ट है। बिगड़ते हालातों के बीच मुल्क और आवाम को एडवांस टेक्नोलॉजी, वॉलिंटियर, पर्याप्त सहायता/इंफ्रास्ट्रक्चर और सही आंकड़ों के साथ सटीक जांच और संतुलन ही बचा सकते हैं।