भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल (Nupur Sharma and Naveen Kumar Jindal) की पैगंबर मुहम्मद (Prophet Muhammad) पर कथित टिप्पणी के लगभग 10 दिन बाद भाजपा ने नूपुर शर्मा को निष्कासित कर दिया, जबकि दूसरे को खाड़ी क्षेत्र में भारतीय उत्पादों के बहिष्कार के बढ़ती सोशल मीडिया मुहिम के बीच निलंबित कर दिया गया। ये कदम खाड़ी इलाके के तीन देशों द्वारा विरोध दर्ज कराने के लिये अपने-अपने देशों में भारतीय राजदूतों को तलब करने के बाद उठाया गया था। उन्होंने भारत से सार्वजनिक माफी की भी मांग की। इसके तुरंत बाद कई देशों ने इस पैटर्न का अनुसरण किया।
कतर, सऊदी अरब, कुवैत, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान, जॉर्डन, मालदीव, अफगानिस्तान, बहरीन, पाकिस्तान और इंडोनेशिया (Pakistan and Indonesia) उन देशों में शामिल थे, जिन्होंने दोनों के बयानों की निंदा की, जो अब भाजपा के पूर्व प्रवक्ता हैं। फिलहाल हम खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंधों को समझने की कोशिश करते हैं और दोनों एक दूसरे पर कितना निर्भर हैं।
भारत और खाड़ी देशों के बीच संबंध दशकों से मजबूत रहे हैं। ये न सिर्फ कारोबार और वाणिज्य पर बल्कि इतिहास और संस्कृति पर भी आधारित है। बड़ी तादाद में भारतीय खाड़ी देशों में रहते हैं और काम करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वहां से भारत में भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा आती है। हाल के ही सालों में इन देशों के साथ भारत के राजनीतिक और व्यापारिक संबंध मजबूत हुए हैं। संयुक्त अरब अमीरात (United Arab Emirates) की आबादी में भारतीयों की तादाद एक तिहाई से ज़्यादा है। खाड़ी में 89 लाख भारतीय नागरिक हैं। अपनी तेल जरूरतों के लिये भी भारत खाड़ी देशों पर बहुत ज़्यादा निर्भर है।
खाड़ी और अरब प्रायद्वीप के लोगों के साथ भारत के संबंध कई सहस्राब्दियों पहले के हैं, जब भारतीय नाविकों, व्यापारियों, बुद्धिजीवियों और धार्मिक के लोगों ने हिंद महासागर (Indian ocean) के पानी को पार किया था। उन्होंने नेविगेशन कौशल, सामान, विचारों और विश्वास प्रणालियों का आदान-प्रदान किया।
इस तरह उन्होंने एक-दूसरे को भौतिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध किया और एक साझा लोकाचार बनाया जो आज तक कायम है। पिछले 40 सालों में खाड़ी देशों में भारतीय समुदाय की अहम मौजूदगी और इलाके के विकास में भारतीय उद्यमों की भूमिका ने इन संबंधों को काफी मजबूत किया है।
साल 2005 से 2007 के दौरान खाड़ी सहयोग परिषद (GCC- Gulf Cooperation Council) के हर देश के राज्य या सरकार के प्रमुखों ने भारत का दौरा किया। सऊदी शासक किंग अब्दुल्ला बिन अब्दुल अज़ीज़ (Saudi Ruler King Abdullah bin Abdul Aziz) साल 2006 में भारत के गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि थे, साल 1955 के बाद से किसी सऊदी शासक की ये पहली भारत यात्रा थी। भारत और सऊदी अरब ने राजनीतिक, सुरक्षा, रक्षा, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में अपने संबंधों का विस्तार किया।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015-16 में सभी प्रमुख क्षेत्रीय राजधानियों का सिलेसिलवार दौर किया और वापसी यात्राओं को प्रोत्साहित करने के साथ अपने कार्यकाल की शुरुआत से संबंधों को और मजबूत किया। इन यात्राओं में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, बहरीन और ओमान (Bahrain and Oman) खासतौर से शामिल हैं।
खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) देश भी भारत के अहम कारोबारी और निवेश भागीदार बन गये। संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। खाड़ी देशों में कुछ प्रमुख खुदरा स्टोर और रेस्तरां भारतीयों के मालिकाना हक़ में हैं। भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करने का आह्वान असल में भारतीयों के स्वामित्व वाले कारोबार पर सीधा असर डाल सकता है।
साल 2006 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Former Prime Minister Manmohan Singh) और तत्कालीन सऊदी शासक किंग अब्दुल्ला बिन अब्दुलअज़ीज़ ने दिल्ली घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये, जिसने दोनों देशों ने रणनीतिक ऊर्जा साझेदारी के लिये साझा प्रतिबद्धता जाहिर की। सऊदी अरब ने भारत की स्थिति को अहम वैश्विक तेल आयातक के रूप में मान्यता दी, भारत की 50% से ज़्यादा जरूरतों को खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) देशों द्वारा पूरा किया गया।
भारत-जीसीसी रणनीतिक साझेदारी के साथ राजनीतिक, सुरक्षा, रक्षा, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में संबंधों के विस्तार को आगे बढ़ाने के लिये फरवरी 2010 में रियाद घोषणा (Riyadh Declaration) द्वारा औपचारिक रूप दिया गया। खाड़ी देश भी भारत पर निर्भर हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भारत का दूसरा सबसे बड़ा एक्सपोर्ट डेस्टिनेशन और तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
भारत और संयुक्त अरब अमीरात का द्विपक्षीय व्यापार 2021-22 में 72.9 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जिसमें भारत का निर्यात 28.4 बिलियन अमरीकी डॉलर था। नये संपन्न कारोबारी आर्थिक साझेदारी समझौते के तहत भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच कुल व्यापार 2026 तक 100 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
साल 2006-07 में भारत ने 27 देशों से कच्चा तेल मंगवाया और 2020-21 में भारत ने 42 देशों से कच्चा तेल मंगवाया। पिछले 15 सालों में भारत के तेल आयात के शीर्ष 20 स्रोतों में लगातार 95% से ज़्यादा और शीर्ष 10 देशों में 80% से ज़्यादा का योगदान है। भारत के कच्चे तेल के आयात में फारस की खाड़ी (Persian Gulf) के देशों की हिस्सेदारी पिछले 15 सालों में लगभग 60% पर बनी हुई है।
साल 2020-21 में भारत का शीर्ष तेल निर्यातक इराक था और उसके बाद सऊदी अरब था। साल 2009-10 में इराक की हिस्सेदारी लगभग 9% से बढ़कर 2020-21 में 22% से ज़्यादा हो गयी। भारत के कच्चे तेल के आयात में सऊदी अरब (Saudi Arab) की हिस्सेदारी एक दशक में 17-18% के बीच स्थिर रही है।
खाड़ी देश खासतौर से खाद्य और अनाज के आयात पर निर्भर हैं। उनके भोजन का 85% से ज़्यादा और उनके अनाज का 93% आयात किया जाता है। चावल, भैंस का मांस, मसाले, समुद्री उत्पाद, फल, सब्जियां और चीनी सभी भारत से खाड़ी देशों को निर्यात किये जाते हैं।
संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब समेत जीसीसी (खाड़ी सहयोग परिषद) समूह के देशों के सभी छह सदस्यों के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार साल 2021-22 में काफी बढ़ गया है। ये दोनों क्षेत्रों के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों के कारण है।
केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, खाड़ी सहयोग परिषद के देशों को भारत का निर्यात 2021-22 में 58.26% बढ़कर लगभग 44 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया है, जो कि साल 2020-21 में 27.8 बिलियन अमरीकी डॉलर था। इन छह देशों को भारत का कुल निर्यात 2021-22 में बढ़कर 10.4% हो गया, जो कि साल 2020-21 में 9.51% था।
इसी तरह आयात 2020-21 में 59.6 बिलियन अमरीकी डालर के मुकाबले में 85.8% बढ़कर 110.73 बिलियन अमरीकी डालर हो गया, आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के कुल आयात में जीसीसी सदस्यों की हिस्सेदारी 2021-22 में बढ़कर 18% हो गई, जो कि 2020-21 में 15.5 फीसदी थी। साल 2021-22 में द्विपक्षीय कारोबार बढ़कर 154.73 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो कि साल 2020-21 में 87.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
पहले भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल की हरकतों पर गौर करे और फिर एक बार इन आंकड़ों की ओर ध्यान दें, आप आसानी से समझ सकते है कि न्यूज रूम की डिबेट में दिया गया ओछा बयान कितना बड़ा नुकसान पहुँचा सकता है। राजनीति और छवि चमकाने के लिये भावावेश में किया गया बड़बोलापन आखिर कितना खतरनाक हो सकता है, इसकी बानगी ये आंकड़े काफी सफाई से पेश कर रहे है।