#Covid-19 पर चौकाने वाला आंकड़ा आया सामने, मोदी सरकार फंसती सवालों के घेरे में

नई दिल्ली (ब्यूरो): जिस तरह से कोरोना (Corona) देशभर में पाँव पसार रहा है, उसे लेकर एक तरह से अघोषित आपातकाल के हालात बने हुए है। सार्वजनिक चिकित्सा प्रणाली की वास्तविक दशाओं से सभी अच्छी तरह वाक़िफ है। बावजूद इसके सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टॉफ (paramedical staff) कोरोना वायरस (coronaviruas) की बीमारी पर काबू पाने के भरसक प्रयास कर रहे है। फिलहाल देश के सभी सरकारी अस्पताल बेहद सीमित संसाधनों और सुविधाओं के बीच बेहतरीन काम कर रहे है। बीते 17 मार्च को स्वास्थ्य मंत्रालय (Health Ministry) द्वारा जारी आंकड़े परेशानी का सब़ब बनते दिख रहे है। साथ ही केन्द्र सरकार की कोरोना वायरस से लड़ने के मंशा पर गहरा सवालिया निशान भी लगाते है।

आंकड़ो के मुताबिक- कोरोना वायरस पीड़ित मरीजों को आइसोलेशन बेड देने की दशा में सरकार के पास 84,000 मरीज़ों पर मात्र 1 बेड की उपलब्धता है। ठीक इसी तरह मरीज़ों को क्वॉरंटाइन (Quarantine) करने के लिए 36,000 मरीज़ों पर मात्र 1 बेड की उपलब्धता है। इसके साथ ही 11,600 संक्रमण पीड़ितों को इलाज़ करने के लिए 1 डॉक्टर है। अस्पताल के एक बेड पर औसतन 1,826 मरीज़ों का इलाज़ करने का दबाव है।

ICMR- Institute of Genomics and Integrative के जीव विज्ञान के निदेशक अनुराग अग्रवाल के मुताबिक- फिलहाल भारत कोरोना की स्टेज-2 से गुजर रहा है। इस दशा में लोगों की एक-दूसरे से सामाजिक दूरी बनाना काफी कारगर हो सकता है। इससे संक्रमण की गति में कुछ हद रूकावट लगायी जा सकेगी। अगर मामला बेकाबू होकर स्टेज़ तीन तक पहुँचता है तो लंबे समय तक लॉक डाउन करने के उपाय ही प्रभावी हो सकेगें। हालिया संक्रमण के मामले को देखते हुए जनता कर्फ्यू कारगर कदम है।

राज्यों के मुख्यमंत्रियों और स्वास्थ्य मंत्रियों से हुई पीएम मोदी की बैठक के दौरान ICMR के महानिदेशक बलराम भार्गव ने कहा कि- हालिया तस्वीर में कोरोना वायरस की संक्रमण दर स्टेज-2 के पास ठहरती है। इन्हीं हालातों में प्रभावी कदम उठाकर स्टेज में जाने से बचा जा सकता है। फिलहाल जरूरत है देश के चिकित्सा ढांचे की आधारिक संरचना को मजबूत करने का ताकि आइसोलेशन और क्वॉरंटाइन की सुविधाओं को पुख़्ता किया जा  सके। 2019 के आंकड़ो के मुताबिक देशभर में 1,154,686 पंजीकृत ऐलोपैथिक डॉक्टर है, और 7,39,024 बेड सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध है।

जानकारों की राय है कि, इन आंकड़ो का खुलासा सरकार के इशारे पर नहीं किया गया। पीएम मोदी देश की जनता से सामाजिक दूरी और जनता कर्फ्यू का पालन करने की अपील की है। जिससे की कोरोना वायरस की बढ़ती रफ़्तार पर लगाम कसी जा सके। कहीं ना कहीं पीएम मोदी देश के मेडिकल स्ट्रक्चर से भली-भांति वाक़िफ है। इसीलिए वो देश की सार्वजनिक चिकित्सा प्रणाली पर किसी तरह का दबाव बनने नहीं देना चाहते। सरसरी तौर पर उनका ये फैसला काफी प्रभावी और बेहतरीन है। लेकिन ये कितना प्रभावी है, ये नतीज़े ही बता पायेगें।

गौरतलब है कि सामान्य दिनों में ही देश की 135 करोड़ आबादी के लिए सार्वजनिक प्रणाली चिकित्सा चरमरायी हुई रहती है। मौजूदा वक़्त के दबाव में ये कितनी कारगर रहेगी। ये चिंता का विषय है। फिलहाल केन्द्र सरकार की ओर से बनायी गयी योज़ना में निजी क्षेत्र के अस्पतालों के लिए कोई प्रावधान निर्धारित नहीं किये गये है। जिसका सीधा से मतलब है कि मरीज़ों के लिए सिर्फ और सिर्फ सरकारी अस्पतालों का ही आसारा है।

(ये स्टोरी अबंतिका घोष ने इंडियन एक्सप्रेस के लिए की है, ट्रैंड़ी न्यूज़ की ओर से अंग्रेज मूल के संस्करण का संदर्भ लेते हुए हिन्दी अनुवाद किया गया है। किसी प्रकार की शंका और विवाद की स्थिति में मूल संस्करण को ही मौलिक और अन्तिम माना जाये)

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