हाल ही में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने उन भारतीयों को पद्म पुरस्कार (Padma Award) से सम्मानित किया जिन्होंने कला, संगीत और अन्य क्षेत्रों में देश का नाम रौशन किया। उनमें से एक वाराणसी के 126 वर्षीय स्वामी शिवानंद थे, जिन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जब वो राष्ट्रपति भवन के शानदार रेड कार्पेट पर नंगे पांव चले तो पूरा देश गौरवान्वित महसूस कर रहा था। पुरस्कार ग्रहण करने से पहले स्वामी शिवानंद (Swami Sivananda) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को झुककर नमस्कार किया। जिसके बाद पीएम मोदी ने भी सिर झुकाकर उनका शुक्रिया अदा किया और उनका अभिवादन स्वीकार किया।
स्वामी शिवानंद ने 126 साल की उम्र में कुल चार बार झुककर अपनी फिटनेस से सभी को चौंका दिया। वो राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के सामने भी घुटनों के बल बैठ गये, जिसके बाद राष्ट्रपति ने उन्हें प्रणाम किया और उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया। ये तस्वीरें पूरे देश के लिये प्रेरणा बनी हैं। स्वामी शिवानंद को भारतीय जीवन शैली और योग के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिये पद्म श्री (Padma Shri) से सम्मानित किया गया है।
स्वामी शिवानंद की तरह हरियाणा के ओम प्रकाश गांधी (Om Prakash Gandhi) की सादगी ने भी सभी को आकर्षित किया। ओम प्रकाश गांधी दिखने में जितने साधारण हैं, उनकी उपलब्धियां भी उतनी ही असाधारण हैं। वो पिछले तीन दशकों से महिलाओं की शिक्षा के लिये काम कर रहे हैं और उन्होनें कई स्कूलों और गुरुकुलों की स्थापना की। हालांकि विडंबना ये है कि हमारे देश में बहुत से लोग पाकिस्तान की सामाजिक कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई (Malala Yousafzai) को जानते हैं, जो शिक्षा से वंचित महिलाओं के अधिकारों की बात करती हैं। लेकिन वो ओम प्रकाश गांधी को नहीं जानते, जिन्होंने अपने जीवन के कई साल महिलाओं की शिक्षा के लिये समर्पित कर दिये। जब उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया तो पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।
पद्म पुरस्कारों की स्थापना साल 1955 में की गयी थी। उनका मकसद कला, खेल और सामाजिक क्षेत्रों में विशिष्ट योगदान देने वाले लोगों का सम्मानित कर प्रोत्साहित करना था। लेकिन ये दुर्भाग्यपूर्ण था कि 1960 के दशक में ये पुरस्कार नेताओं और उनके परिवार के सदस्यों को खुश करने का साधन बन गया। बाद के सालों में ये पुरस्कार भी आम लोगों की पहुंच से बाहर रहा। 1970 और 1980 के दशक में ये पुरस्कार या तो दिल्ली में रहने वाले लोगों को दिया जाता था, या मुंबई में बड़ी हस्तियों और अन्य बड़े शहरों के प्रतिष्ठित लोगों को दिया जाता था।
मिसाल के लिये 1955 और 2016 के बीच, कुल 4,284 लोगों को पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री पुरस्कार मिले। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इन 4,000 लोगों में से 793 लोग दिल्ली में रहने वाले और राजनीतिक दबदबे वाले परिवारों के करीबी थे। दिल्ली के बाद इन पुरस्कारों के लिये दूसरी पसंद महाराष्ट्र के लोग थे। क्योंकि इस समयावधि में महाराष्ट्र के 748 लोगों को पद्म पुरस्कार मिले। लेकिन इनमें ऐसे बहुत से लोग नहीं हैं, जो जमीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिये काम करते हैं और इस देश के असली हीरो हैं। जिन लोगों को पद्म पुरस्कारों से नवाजा गया है, वो सभी देश के असली हीरो हैं।
हिम्मत हो कुछ करने का जज्बा हो तो कोई कमजोरी आड़े नहीं आती। इसका एक उदाहरण केरल की के.बी.राबिया (K.B. Rabia) है। जिन्हें पद्मश्री से नवाजा गया है। पोलियो की वज़ह राबिया के अपने पैरों ने उनका साथ नहीं दिया लेकिन फिर भी उनका इरादा दूसरों को अपने पैरों पर खड़ा करने का था। राबिया ने न सिर्फ व्हीलचेयर पर बैठकर अपनी पढ़ाई पूरी की, जिसके बाद वो शिक्षिका भी बनीं लेकिन संघर्ष यहीं नहीं थमा। केरल के मलप्पुरम में उन्होंने विकलांग बच्चों के लिये कई स्कूल खोले। मलप्पुरम में साक्षरता अभियान की कहानी राबिया का जिक्र किये बिना पूरी नहीं हो सकती।
पद्म श्री पुरस्कार विजेताओं में से एक महाराष्ट्र के डॉ हिम्मतराव बावस्कर (Dr. Himmatrao Bavaskar) हैं। मेट्रो सिटी में रहने वाले समझ नहीं पा रहे हैं कि बिच्छू और सांप के काटने से क्या खतरा है। लेकिन महाड़ के सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में रहकर डॉ. बावस्कर ने इस संकट को करीब से देखा, फिर उस पर शोध किया और अचूक इलाज भी खोजा। डॉ. बावस्कर के शोध को दुनिया भर से पहचान मिली है। उनका शोध दुनिया भर के मेडिकल जर्नल्स में शामिल है। उनके इलाज को दुनिया भर के डॉक्टरों ने फॉलो किया।
राष्ट्रपति भवन में पद्म पुरस्कारों से सम्मानित होने वालों में शिक्षाविद, नौकरशाह, सामाजिक कार्यकर्ता, थिएटर कार्यकर्ता और फिल्म कलाकार शामिल थे, जबकि किसान भी पद्म पुरस्कारों से सम्मानित होने वालों में शामिल थे।
यूपी के सहारनपुर के रहने वाले सेठपाल सिंह (Sethpal Singh) को आप किसान कह सकते हैं, लेकिन उनका जुनून और योगदान किसी कृषि वैज्ञानिक से कम नहीं है। सेठपाल सिंह का खेत अपने आप प्रयोगशाला है। खेती में नये-नये प्रयोग और तकनीक से तरह-तरह की फसलें उगाकर मुनाफा कैसे कमाया जाये, सेठपाल सिंह ने न सिर्फ सोच-समझकर बल्कि ऐसा करके भी दिखाया।
पद्म पुरस्कार पाने वालों की लिस्ट में देवेंद्र झांझरिया (Devendra Jhanjharia) का भी नाम शामिल है। झांझरिया ये सम्मान पाने वाले पहले पैरालंपिक खिलाड़ी हैं। साधारण किसान परिवार में जन्मे देवेंद्र झांझरिया ने बचपन में दुर्घटना में एक हाथ गंवा दिया। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी, इसलिये उन्होंने पैरालिंपिक में भाला फेंक में तीन पदक जीतकर इतिहास रच दिया।
इन गुमनाम नायकों ने साबित कर दिया है कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। … अगर आप में जोश है, जुनून है, तो सम्मान, पुरस्कार, पुरस्कार की चिंता न करें … वो खुद आपके पीछे-पीछे चले आयेगें, आज नहीं तो कभी भी।