न्यूज डेस्क (विश्वरूप प्रियदर्शी): संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत ने पाकिस्तान (Pakistan) पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा ब्लैक लिस्टेड आतंकवादियों को पेंशन देने का मसला उठाया। नई दिल्ली ने सीमा पार आतंक को इस्लामाबाद द्वारा मिल रहे निरंतर समर्थन पर भी गहरी चिंता ज़ाहिर की। संयुक्त राष्ट्र में भारतीय मिशन के भारतीय राजनयिक ने पवन बधे ने जेनेवा में कहा कि- इस परिषद के सदस्य अच्छी तरह से वाक़िफ हैं कि पाकिस्तान खूंखार आंतकवादियों को सरकारी खाते से पेंशन देता है। इस्लामाबाद बड़ी तादाद में दहशतगर्दों की मेज़बानी करने का जिम्मा खतरनाक उठाता रहा है।
पाकिस्तान ने 26/11 के मास्टरमाइंड हाफिज सईद, लश्कर-ए-तैयबा के नेता जकीउर रहमान लखवी और पाकिस्तानी परमाणु इंजीनियर महमूद सुल्तान बशीरुद्दीन को छूट देने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से संपर्क किया था। यहां छूट का मतलब संपत्ति को बंधक ना बनाने और दूसरे खर्चों की भुगतान राशि देने से जुड़ा हुआ है। पवन बधे ने कहा कि, काउंसिल में पाकिस्तान के गर्म तेवरों का ज़वाब देते हुए कहा कि, पाकिस्तानी नेताओं ने इस बात को कबूल किया है कि उनका मुल्क आतंकवादियों के प्रोडक्शन की फैक्ट्री (Terrorist production factory) बन गया है। इस्लामाबाद ने इस बात को हमेशा से ही नज़रअंदाज़ किया है कि आतंकवाद मानवाधिकारों के हनन का सबसे खराब चेहरा है और आतंकवाद के समर्थक मानव अधिकारों का निर्मम तरीके से हनन करते है।
पवन बधे ने आगे कहा कि, पाकिस्तानी पीएम इमरान खान ने खुलेतौर पर पहले कबूल किया था कि उनके मुल्क ने आतंकवादी ज़मातों की मेजबानी की है। इसके साथ ही उन्होनें अल कायदा नेता ओसामा बिन लादेन को शहीद का भी दर्जा दिया था। अपाहिज़ इक्नॉमी (Handicapped economy) वाले मुल्क पाकिस्तान को कांउसिल अच्छी तरह से सलाह दे कि, वो राज्य प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद पर लगाम कसे और अल्पसंख्यक समुदायों के मानव अधिकारों का संस्थागत उल्लंघन खत्म करें। माइनॉरिटी की हिफ़ाजत करने में इस्लामाबाद का ट्रैक रिकॉर्ड बेहद दोयम दर्जें का रहा है।
मानवाधिकार परिषद में इस्लामाबाद सवाल दागते हुए भारतीय राजनयिक ने कहा कि, काउंसिल को पाकिस्तान से पूछना चाहिए कि ईसाई, हिंदू और सिख जैसे अल्पसंख्यक समुदायों की आबादी पाकिस्तान में बेहद कम क्यों होती जा रही है। अहमदिया, शिया, पश्तून, सिंधी और बलूचों पर ईंशनिंदा कानून लगाकर उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। पूरे पाकिस्तान में बेहद सोचे समझे तयशुदा तरीके से ज़बरन धर्मांतरण की कवायद आखिर जोरों पर क्यों है?