दिखने के बजाय “बस लोग ही लोग” देखकर दांत चियार रहे थे। डायलॉग फेंक रहे थे। दिल उतने से नहीं भरा तो यूपी में चुनाव होने दिए। शिक्षकों की संस्था बता सचमुच मैं रोने वगैरह का मज़ाक नहीं बनाता। पहले भी वो रोये हैं लेकिन कम से कम मैंने खुद को उपहास करने से रोका। ऐसा नहीं कि उसमें छिपी सियासत पता न थी लेकिन फिर भी भावुकता पर मैं ज़रा सा नियंत्रित हो जाता हूं। चुप रहता हूं। सम्मान भी करता हूं लेकिन आज?
आज मुझे ना उन आंसुओं पर हमदर्दी है, ना भरोसा। जब लोग मर रहे थे ये “दीदी ओ दीदी” खेल रहे थे। डॉक्टर कह रहे थे कि पांचों राज्यों में चुनाव बाद केसेज़ अचानक बढ़ जाएंगे मगर फिर भी चुनाव का बहुत मन है तो रैलियां ना करके वर्चुअली मामला निपटा लीजिए। कोई बात नहीं सुनी। कोरोना के मरीज़रही है कि उन चुनावों की हवस ने हमारे हज़ारों साथी खा लिए।। इनकी सरकार बता रही है तीन ही मरे।
चुनाव आयोग के अफसरों की जान जब मद्रास हाईकोर्ट में फंसी तो वो सच बोलने को मजबूर हो गए। साफ कहा कि अगर प्रधानमंत्री (PM Modi) हज़ारों की रैली बुला लें तो क्या हम गोली चला दें? मुझे विश्वास है यदि इतनी ही कठोरता सुप्रीम कोर्ट ने बरत दी होती तो चुनाव आयोग ये भी बताने को मजबूर हो जाता कि कौन लोग चुनाव कराने पर उतारू थे।
आज आपको रोना आ रहा है? पता नहीं आ भी रहा है या ठग रहे हैं। आपके संसदीय क्षेत्र तक में लोग आपसे राहत मांग मांगकर बेहाल हैं। पार्टी के विधायक तक कह रहे हैं कि कुछ कहेंगे तो मुकदमा हो जाएगा इसलिए जो हो रहा है बस ठीक है। एक बात बताइए, रोने से ही काम चलता तो फीस लेकर रोने वाली नेहा कक्कड़ को पीएम बनाना क्या बुरा है? आपने ही ऐसा क्या संभाल लिया? रोज़ लाइव खेलने का शौक था आपको। केजरीवाल ने लाइव कर दिया तो प्रोटोकॉल आंखों में उतर आया था। मेरे पास लिखने को बहुत है लेकिन काबू करूंगा क्योंकि मानसिक संतुलन (Mental balance) बिगड़ने का खतरा है। अब तो हम भी रो रोकर थक गए।
और सब तो छोड़िए, जो पं छन्नूलाल मिश्र चुनाव में आपके प्रस्तावक रहे वो चार दिन के अंदर पत्नी और बेटी को खोकर बेहाल हैं लेकिन मजाल है कि बेटी की मौत पर कायदे से जांच तक हुई हो। बीस दिन से उस बुजुर्ग की आंख में नींद नहीं है। अस्पताल सीसीटीवी फुटेज जांच के लिए देने को तैयार नहीं है। पांच लाख से ऊपर का बिल बना दिया पर डीएम की इनवेस्टिगेशन में ये नहीं बता रहा कि इलाज क्या किया? ये उस आदमी के साथ चल रहा है जो डायरेक्ट आपको जानता है।
पंडित राजन मिश्रा कोविड पीड़ित थे और वेंटीलेटर के अभाव में दम तोड़ दिया। उनके नाम पर वाराणसी में सर्वसुविधा युक्त कोविड अस्पताल (Well-equipped covid hospital) खड़ा कर दिया गया। सम्मान पूरा रहे सो अस्पताल के बाहर एक बैनर में राजन जी के साथ मोदी जी की फोटो भी लगा दी गई। समझ नहीं पा रहा कि ये सब करनेवाला कहां से इतनी बेशर्मी लाया होगा। रहने दीजिए सर। मत कीजिए ढोंग। हो चुका बहुत। अब आप पर कभी हंसी आती है और कभी सिर्फ़ गुस्सा। इंसानियत के नाते संदेह का लाभ दिया करते थे अब उतनी हिम्मत भी नहीं बची। नहीं संभल रहा छोड़ दीजिए। अपनी ही पार्टी में किसी को दे दीजिए ज़िम्मा वैसे भी देश को अभी रोनेवाले नहीं संभालनेवाले नेता की ज़रूरत है।