न्यूज डेस्क (गौरांग यदुवंशी): जैन संत आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वरजी की ‘शांति की प्रतिमा’ (Statue of Peace) की प्रतिमा का अनावरण आज पीएम मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से किया। राजस्थान के पाली (जैतपुरा) में जैन संत की ये मूर्ति उनकी 151 वीं जयंती के अवसर पर तैयार की गयी थी। इसे तैयार करने में अष्टधातु का इस्तेमाल किया गया है। जिसमें खासतौर से तांबे का उपयोग प्रमुख है। गुरु वल्लभ महान जैनाचार्य (Jain Saint Acharya Vijay Vallabh Surishwar) होने के साथ-साथ क्रांतिकारी, समाज-सुधारक और शिक्षाविद् थे। उन्हीं की प्रेरणा मंत्रों का मूर्त रूप है, गुजरात के पाटण में प्राचीन एवं आधुनिक साहित्य के लिए बना सेतुबंध हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान भंडार। उनके विचारों से प्रेरित होकर बीकानेर की महारानी ने अपने उपवन का नाम ‘विजय वल्लभ बाग’ कर दिया। उन्हें स्वदेशी वस्तुओं के इतना प्रेम था कि, उन्होनें मखमल के वस्त्रों का परित्याग कर खादी को प्राथमिकता दी।
साम्प्रदायिक सद्भाव और सौहार्द की भावना उनमें कूट कूट भरी थी। जिस कालखंड में उनका पदार्पण लाहौर में हुआ उस दौरान पूरा शहर साम्प्रदायिक दंगों (Communal riots) की आग में झुलस रहा था। महाराज जी के जादुई वचन सुनकर सभी वर्गों के लोग शांत हो गये। मुस्लिम समुदाय के कई लोग उनके अनुयायी बन गये। महिला सशक्तिकरण के लिए उन्होनें जो घोष किया, उसकी प्रतिध्वनि आज भी बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान में झलकती है। फिलोस्फी, धर्म, स्प्रिचुअलैटी, न्याय, गणित, भूगोल, कॉस्मोलॉजी, नीति, इतिहास और कर्मकाण्ड में उनकी समान रूप से पकड़ थी।
Statue of Peace के अवसर पीएम मोदी संबोधन की बड़ी बातें
- मेरा सौभाग्य है कि मुझे देश ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की विश्व की सबसे ऊंची ‘स्टेचू ऑफ यूनिटी’ के लोकार्पण का अवसर दिया था, और आज जैनाचार्य विजय वल्लभ जी की भी ‘स्टेचू ऑफ पीस’ के अनावरण का सौभाग्य मुझे मिल रहा है।
- भारत ने हमेशा पूरे विश्व को, मानवता को, शांति, अहिंसा और बंधुत्व का मार्ग दिखाया है। ये वो संदेश हैं जिनकी प्रेरणा विश्व को भारत से मिलती है। इसी मार्गदर्शन के लिए दुनिया आज एक बार फिर भारत की ओर देख रही है।
- भारत का इतिहास आप देखें तो आप महसूस करेंगे, जब भी भारत को आंतरिक प्रकाश की जरूरत हुई है, संत परंपरा से कोई न कोई सूर्य उदय हुआ है। कोई न कोई बड़ा संत हर कालखंड में हमारे देश में रहा है, जिसने उस कालखंड को देखते हुए समाज को दिशा दी है। आचार्य विजय वल्लभ जी ऐसे ही संत थे।
- एक तरह से आचार्य विजयवल्लभ जी ने शिक्षा के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का अभियान शुरू किया था। उन्होंने पंजाब, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में भारतीय संस्कारों वाले बहुत से शिक्षण संस्थाओं की आधारशिला रखी।
- आचार्य जी के ये शिक्षण संस्थान आज एक उपवन की तरह हैं। सौ सालों से अधिक की इस यात्रा में कितने ही प्रतिभाशाली युवा इन संस्थानों से निकले हैं। कितने ही उद्योगपतियों, न्यायाधीशों, डॉक्टर्स, और इंजीनियर्स ने इन संस्थानों से निकलकर देश के लिए अभूतपूर्व योगदान किया है।
- स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में इन संस्थानों ने जो योगदान दिया है, देश आज उसका ऋणि है। उन्होंने उस कठिन समय में भी स्त्री शिक्षा की अलख जगाई। अनेक बालिकाश्रम स्थापित करवाए, और महिलाओं को मुख्यधारा से जोड़ा।
- आचार्य विजयवल्लभ जी का जीवन हर जीव के लिए दया, करुणा और प्रेम से ओत-प्रोत था। उनके आशीर्वाद से आज जीव दया के लिए पक्षी हॉस्पिटल और अनेक गौशालाएं देश में चल रहीं हैं। ये कोई सामान्य संस्थान नहीं हैं। ये भारत की भावना के अनुष्ठान हैं। ये भारत और भारतीय मूल्यों की पहचान हैं।