महंगाई का मुद्दा कुछ ऐसा है जिस पर संसद में बहस होनी चाहिए थी, हालांकि सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध की वज़ह से इस लड़ाई के नतीज़न कांग्रेस पार्टी (Congress Party) ने बीते शुक्रवार को (5 अगस्त 2022) ‘काला विरोध-प्रदर्शन’ किया। इस दौरान कांग्रेस के तमाम सांसदों, नेताओं और आला पदाधिकारियों ने काले कपड़ों में सड़कों पर उतरकर विरोध किया।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और कांग्रेस पार्टी के सभी सांसद संसद भवन परिसर में इकट्ठा हुए। इन सभी सांसदों ने महंगाई और जीएसटी (Inflation and GST) के मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया। इसके बाद काले कपड़ों में विजय चौक पहुंचे राहुल गांधी और पार्टी के अन्य सांसदों ने पैदल मार्च निकालने की कोशिश की, साथ ही मोदी सरकार पर लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाया।
राहुल गांधी ने विरोध प्रदर्शन के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की तुलना एडोल्फ हिटलर (Adolf Hitler) से भी की। उन्होंने कहा कि जर्मनी (Germany) का तानाशाह हिटलर भी चुनाव जीतता था। उसके पास सारी संस्थाएँ थीं, वहाँ अर्धसैनिक बल था, सारा ढाँचा था। राहुल गांधी ने पीएम मोदी की तुलना हिटलर से की लेकिन क्या उनका तर्क सही है?
राहुल गांधी ने शायद हिटलर पर अच्छा होमवर्क नहीं किया लेकिन आपको बता दें कि हिटलर पूर्ण बहुमत से चुनाव जीतकर चांसलर नहीं बना था। ये तो सभी जानते हैं कि साल 1914 से 1919 तक चले पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की हार हुई थी, जिसके बाद वर्साय की संधि (Treaty of Versailles) के तहत जर्मनी को भारी भरकम रकम चुकानी पड़ी थी। ये रकम फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका (Britain and America) जैसे प्रथम विश्व युद्ध जीतने वाले देशों को दी जानी थी।
इस रकम का भुगतान करने के लिये जर्मनी ने अपनी करेंसी को भारी पैमाने पर छापना शुरू किया लेकिन इसका नुकसान ये था कि जर्मनी में मुद्रास्फीति रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गयी। लोगों में सरकार के प्रति असंतोष बढ़ने लगा। साल 1929 में जब अमेरिका में महामंदी आयी, यानि ऐतिहासिक मंदी की शुरुआत हुई तो इसने पूरी दुनिया पर अपना असर डाला। जर्मनी ने भी इस दौरान एक बड़ी बेरोजगारी दर देखी।
इस आर्थिक संकट और लोगों में बढ़ती नाराजगी के बीच एडॉल्फ हिटलर की पार्टी बहुत लोकप्रिय हो गयी क्योंकि उनकी पार्टी उस समय महंगाई और बेरोजगारी का मुद्दा उठा रही थी। इसके बाद 1932 में जब जर्मनी में आम चुनाव हुए तो हिटलर की पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हालांकि तब हिटलर के पास बहुमत नहीं था। जब किसी भी नेता को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका तो जर्मन राष्ट्रपति पॉल वॉन हिंडनबर्ग (German President Paul von Hindenburg) ने हिटलर को देश का चांसलर नियुक्त किया। इसके कुछ ही समय बाद 27 फरवरी 1933 को जर्मनी की संसद में आग लगने की घटना हुई।
इस घटना के लिए एक डच कम्युनिस्ट नेता को दोषी पाया गया और उसे मौत की सजा सुनाई गयी, इसके ठीक बाद हिटलर ने पूरे जर्मनी में कम्युनिस्ट नेताओं, पार्टियों और ट्रेड यूनियनों पर नकेल कसना शुरू कर दिया। आग की घटना के बाद नया आपातकालीन कानून पेश किया गया, जिसके तहत पुलिस किसी को भी गिरफ्तार कर सकती थी। अखबारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया और पत्रकारों की आवाज भी दबा दी गयी। जब 2 अगस्त 1934 को तत्कालीन जर्मन राष्ट्रपति पॉल वॉन हिंडनबर्ग की मौत हुई तो हिटलर ने जर्मनी में दो सबसे बड़े संवैधानिक पदों का विलय कर दिया।
एक पद राष्ट्रपति का और दूसरा चांसलर का। इन दोनों को मिलाकर हिटलर ने एक नया पद बनाया जिसका नाम था फ्यूहरर (Fuhrer) जिसका मतलब होता है सर्वोच्च नेता। हिटलर के सर्वोच्च नेता बनते ही उसे एक ऐसा कानून मिल गया जिसके तहत सभी विरोधी पार्टियों को अपंग कर दिया गया। यानि पूरा जर्मनी एकदलीय राज्य (One Party State) बन गया।
इसके बाद हिटलर ने जर्मनी के विभिन्न प्रांतों की निर्वाचित विधानसभाओं को भंग कर दिया और राष्ट्रीय संसद को सारी शक्तियाँ दे दीं। कहानी सुनने के बाद अब क्या आपको लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी की तुलना हिटलर से करना सही है?
हिटलर के अधीन जर्मनी एक दलीय राज्य था लेकिन अब जबकि नरेंद्र मोदी देश के प्रधान मंत्री हैं, भारत में 8 राष्ट्रीय दल, 54 क्षेत्रीय दल और 2,796 गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल हैं।
हिटलर ने जर्मनी के सभी प्रांतों की निर्वाचित विधानसभाओं को भंग कर दिया। जबकि प्रधानमंत्री मोदी के मौजूदा कार्यकाल में बीजेपी एक नहीं बल्कि कई राज्यों में चुनाव हार चुकी है। सोचिये ये कैसी तानाशाही है, जिसमें बीजेपी (BJP) चुनाव हार जाती है। अगर राहुल गांधी सही हैं तो इस हिसाब से बीजेपी को कोई चुनाव नहीं हारना चाहिये।
ध्यान देने वाली एक और अहम बात ये है कि हिटलर बहुमत हासिल करके सत्ता में नहीं आया था। बल्कि जब बहुमत नहीं था तो वहां के राष्ट्रपति ने उसे खास हालातों में चांसलर नियुक्त किया। जबकि प्रधानमंत्री मोदी एक बार नहीं बल्कि दो बार पूर्ण बहुमत से निर्वाचित होकर सत्ता में आये हैं।
हम यहां ये नहीं कह रहे हैं कि भारत के लोकतंत्र में कोई कमी नहीं है। भारत के लोकतंत्र में कमियां होनी चाहिये जिन्हें सुधारना चाहिये। हालांकि लोकतंत्र में कमियों का मतलब तानाशाही नहीं है और कांग्रेस पार्टी को ये समझना होगा।