भारत का एक ऐसा राजा जिसने अंग्रेजों को 134 दिन तक दिल्ली में नहीं घुसने दिया था। हम बात कर रहे हैं हरियाणा के उस राजा की जिसने अंग्रेजों के खून से बल्लभगढ के तालाब का रंग लाल कर दिया था। जिसने अंग्रेजों को हराकर अपने आस पास के क्षेत्र को आजाद कर लिया था।
वो राजा जिसने शिव मंदिर में अंग्रेजों को देश से बाहर करने की कसम खाई थी। वो राजा कोई और नहीं बल्कि हरियाणा के बल्लभगढ जाट रियासत के राजा नाहर सिंह (Raja Nahar Singh) थे, जिनके नाम पर बल्लभगढ में राजा नाहर सिंह मेट्रो स्टेशन का उद्घाटन किया गया था। इससे पहले उनके नाम पर एक इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम है, शहर में एक द्वार है और बस स्टैंड का नाम भी उन्हीं के नाम से हैं।
बल्लभगढ में उनका महल किला हवेलियां और अन्य चीजें आज भी शान से खड़ी उसकी वीरता की गवाही दे रही है। राजा नाहर सिंह ने 1857 की क्रांति में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उसी वीरता के बल पर आज उन्हें शेर ए हरियाणा, आयरन गेट ऑफ दिल्ली (Iron Gate of Delhi) और 1857 के सिरमौर जैसे अलंकारों से सुसज्जित किया जाता है।
राजा नाहर सिंह ने 1857 की क्रांति को जगाने के लिये देश भर के राजाओं की मीटिंग में हिस्सा लिया, बहुत से राजाओं को क्रांति में शामिल होने के लिये उकसाया।
जब 1857 की क्रांति के लिये नेतृत्व की मांग की जाने लगी तो सबसे आगे उन्हीं का नाम था लेकिन मुस्लिम क्रांतिकारियों (Muslim Revolutionaries) को इस मुहिम में जोड़ने के लिये बहादुर शाह जफर (Bahadur Shah Zafar) का नाम आगे किया गया। हालांकि जफर और राजा नाहर सिंह में बहुत कम बनती थी उसके बावजूद भी उन्होंने देश के लिये अपने मतभेद भुलाकर क्रांतिकारियों के फैसले का सम्मान किया।
वो देश के एकमात्र ऐसे राजा थे, जिनकी रियासत सुरक्षित होने के बावजूद उन्होनें 1857 कई क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया। मीटिंग में 1857 की क्रांति का दिनांक फिक्स कर दिया गया उन्हें दिल्ली का कार्यभार सौंपा गया। लेकिन 10 मई को ही क्रांतिकारी सैनिक मंगल पांडे (Revolutionary soldier Mangal Pandey) की फांसी के साथ ही क्रांति समय से पहले भड़क उठी।
उस समय उनकी बेटी का विवाह तय हो चुका था। लेकिन उन्होंने इसकी जरा भी परवाह न करते हुए इस भव्य कार्यक्रम को रद्द कर दिया और राजकुमार की तलवार से ही अपनी बेटी का विवाह करवाकर क्रांति में कूद पड़े। उनकी रियासत क्रांतिकारियों के लिए सबसे बड़ी और सुरक्षित स्थली थी जहां उनके लिये दरवाजे खुले थे क्योंकि उन्होंने अपने राज्य में अंग्रेजो के बिना अनुमति प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था, जो उस समय का बहुत ही साहसिक कदम था।
उन्होंने अपने राज्य में ऐलान कर दिया था कि कोई भी अंग्रेज विरोधी क्रांतिकारी राज्य में आये तो उसका खुले दिल से स्वागत किया जाये उसकी हर सम्भव सहायता की जाये उनको खाने का सामान और अन्य सामान बाजार से बिना पैसे दिया जाये उसका भुगतान राज्य के खजाने से कर दिया जायेगा।
मंगल पांडे की रेजिमेंट के क्रांतिकारी भी उनके राज्य में घुस आये थे तो उन्होंने ही उन्हें शरण दी और उनमें से ज्यादातर ब्राह्मण थे इसलिये उन्होंने उन्हें हर गांव में में एक-एक दो-दो परिवारों बसाया ताकि अंग्रेज उन पर एक साथ हमला न कर सके और वो अपनी रोजीरोटी भी कमा सके। आज भी उन ब्राह्मणों के वंशज उन गांवों में बसे हुए हैं।
उन्होंने पलवल, फरीदाबाद और गुड़गांव के अंग्रेज अधिकृत इलाकों पर हमला करके अंग्रेजो को मारकर भगाया। साथ ही क्रांतिकारियो के साथ मिलकर दिल्ली को आजाद करवा लिया और जफर को दिल्ली का कार्यभार सम्भालवा दिया। राया मथुरा के क्रान्तिकारी देवी सिंह को उन्होंने राजा की पदवी दिलवायी। जगह जगह के क्रांतिकारियों को मदद दी।
राजा के समय दिल्ली पर अंग्रेजो ने हमले किये लेकिन उन्होंने उन्हें 134 दिन तक दिल्ली में नहीं घुसने दिया। अंग्रेज उन्हें आयरन वॉल ऑफ दिल्ली के नाम से पुकारने लगे थे और समझ गये थे कि उनके होते दिल्ली पर कब्जा करना नामुमकिन है। आखिर में जफर के एक साथी इलाही बख़्श की गद्दारी से अंग्रेजो ने जफर को बंदी बना लिया और बल्लभगढ़ पर हमला कर दिया, जिसके कारण राजा को बल्लभगढ पहुंचना पड़ा।
वहां उन्होंने पहुंचकर अंग्रेजों से इतना भयंकर युद्ध किया कि पास के एक तालाब का रंग अंग्रेजों के खून से लाल हो गया। अंग्रेजो को मारकर हरा दिया। मगर उनकी गैरमौजूदगी में अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया।
अंग्रेजों ने राजा को बंदी बनाने के लिये छल का सहारा लिया। उन्होंने जफर के खास इलाही बख़्श व दूसरे लोगों को भेजकर कहलवाया कि जफर ने उन्हें बुलाया है और वो अंग्रेजो से सन्धि करना चाहते हैं। जाट राजा छल को समझ न पाये। वो अपने 500 सैनिको के साथ दिल्ली पहुंचे। वहां अंग्रेजो ने रात के अंधेरे में रास्ते में उन पर अचानक हमला कर दिया, सभी सैनिक बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हो गये। राजा को बंदी बना लिया गया।
उनके कुछ नजदीकी अंग्रेज अधिकारियो ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि वे अंग्रेजो के आगे झुक जाये और उनसे दोस्ती कर ले तो उन्हें उनका राज उन्हें वापिस कर दिया जायेगा और उन्हें सजा नहीं होगी।
लेकिन राजा ने साफ मना कर दिया कि वो देश के दुश्मनों के आगे नहीं झुकेंगे। उन्हें राज और अपने जीवन की तनिक भी परवाह नहीं। एक नाहर सिंह मरेगा तो माँ भारती को आजाद करवाने वाले लाखों नाहर सिंह पैदा हो जायेगें।
अंत में 9 जनवरी 1858 को राजा व उनके सेनापतियों को दिल्ली के चांदनी चौक पर सरेआम फांसी दे दी गयी। उनके जनता के लिये अंतिम शब्द थे कि क्रांति की ये चिंगारी बुझने मत देना।