रजनीकांत अपनी फिल्मों बतौर सुपरहीरो दिखाई देते है। दुनिया उन्हें अन्ना और थलाइवा के नाम से भी जानती है। अपनी फिल्मों में अक्सर वो ऐसे स्टंट करते दिखते जो आम इंसान के लिए नामुमकिन है। लेकिन उन्होनें अन्ज़ाने में ही कुछ ऐसा कर दिया है, जिससे द्रविड़ आंदोलन के रचनाकार ईवी रामास्वामी एक बार फिर से ज़िन्दा हो, राजनीतिक विमर्श के दायरे में आ गये है।
पिछले हफ़्ते एक तमिल पत्रिका को दिये बयान में रजनीकांत ने कहा- साल 1971 के दौरान पेरियार की अगुवाई में एक जनसभा आयोजित की गयी थी, जिसमें भगवान राम और माता सीता की नंगी तस्वीरों को लगाया गया था। रजनीकांत के इस बयान के बाद सियासी भू-चाल आ गया। द्रविडार विधुतलाई कषगम के सदस्यों ने उनकी खिल़ाफ प्राथमिकी दर्ज करवायी है।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक रजनी अन्ना का ये बयान उनके लिए तमिल राजनीति में लॉन्च पैड का काम करेगा। इस कवायद से वो दक्षिणपंथी ताकतों के सामने खुद को लाना चाहते है। भारी विरोध प्रदर्शन के बीच रजनीकांत ने अपने बयान पर माफी मांगने से इंकार कर दिया है। थलाइवा के इस कदम ने वो कर दिखाया है, जो भाजपा आज तक तमिलनाडु में नहीं कर पायी थी। ऑल इंडिया अन्ना द्रमुक मुन्नेत्र कड़गम और द्रमुक मुन्नेत्र कड़गम जैसी पार्टियों के लिए उनका बयान गले की हड्डी बन गया है। दोनों ही पार्टियां इस पर अपना रूख़ साफ नहीं कर पा रही है।
रजनीकांत के घर के बाहर उनका भारी विरोध हो रहा है। सुरक्षा के मद्देनज़र वहाँ भारी सुरक्षाबलों की तैनाती की गयी है। इस बीच द्रमुक मुन्नेत्र कड़गम एमके स्टालिन का बयान सामने आया है, उनके अनुसार- रजनीकांत अभिनेता है, राजनेता नहीं। कुछ भी बोलने से पहले उन्हें काफी सोच विचार करना चाहिए था। दिलचस्प ये भी है कि ऑल इंडिया अन्ना द्रमुक मुन्नेत्र कड़गम पेरियार की कट्टर विचारधारा से काफी पहले ही किनारा कर चुकी है। जिस तरह की तस्वीर सूबे में बनती दिख रही है, उससे ये कयास लगाये जा रहे है कि रजनीकांत दक्षिणपंथी ताकतों का हाथ थामे तीसरा विकल्प बन सकते है।
कौन है पेरियार और क्या द्रविड़ आंदोलन
ईरोड वेंकाट्प्पा रामासामी पेरियार का जन्म 17 सितम्बर 1879 को हुआ। लोगों के बीच वो पेरियार और थनथाई पेरियार के रूप में काफी मशहूर थे। अपनी प्रगतिशील सोच और तर्कशीलता के कारण उन्होनें तमिलनाडु में द्रविड़यन आंदोलन की अगुवाई की। ये आंदोलन हिन्दू समाज में फैली कुरीतियों के विरूद्ध था। बाह्मणवाद और मूर्तिपूजा के वो सख़्त खिल़ाफ थे। वैचारिक रूप से वो साम्यवाद के काफी करीब थे। इस आंदोलन ने काफी हद तक दक्षिण भारत में हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों का उन्मूलन किया साथ ही मनु स्मृति का प्रतिकार भी किया। करूणानिधि जैसा दिग्गज़ राजनीतिक चेहरा इसी आंदोलन की उपज है।