पढ़े Dr. KK Aggarwal से जुड़ी कुछ यादें

डॉ. के के अग्रवाल – एक दोस्त चला गया !!

“मैं एम्बुलेंस भेज रहा हूँ। अपनी मदर इन लॉ को तुरंत मूलचंद लेकर आ।”

फोन पर दूसरी तरफ डॉ केके थे। शाम का वक्त था। मैं सफदरजंग अस्पताल में मिंटी की मम्मी यानि अपनी सास के सिरहाने खड़ा था। वे बेहोश थीं। हमें लगा था कि ये बेहोशी कमजोरी के कारण है।

बात 27 जून 1993 की है। हमें मम्मी की तबियत की गंभीरता का कोई अंदाजा नहीं था। मैंने तो यूँ ही उनकी तबियत बताने के लिए केके को फोन किया था। दो – तीन सवाल पूछने के बाद ही केके को पता चल गया कि उन्हें ब्रेन हैमरेज (Brain haemorrhage) हुआ है। मैंने उनसे कहा कि मैं लेकर आता हूँ।

कुछ पल बाद ही केके फिर फोन पर थे।

“तेरे पास टाइम नहीं है। एम्बुलेंस में वक्त लगेगा। ऐसा करो उन्हें अपनी कार में ही लेकर बिना एक मिनट गवाए आ जाओ। बाकी मैं देख लूँगा।”

हम तुरंत मूलचंद अस्पताल पहुंचे। Dr. KK Aggarwal ने न्यूरो सर्जन को बुला रखा था। जिसे हम बेहोशी समझ रहे थे वो दरअसल ‘कोमा’ की स्थिति थी।

रात में ही ऑपरेशन शुरू हुआ। कई घंटे के बाद रात तीसरे पहर सर्जरी ख़त्म हुई। कुछ दिन बाद मम्मी सकुशल घर लौंटी।

ऑपरेशन की सारी रात केके वहीँ थे। घर नहीं गए। रूटीन के मुताबिक सुबह के अपने वार्ड राउंड करने के बाद ही शायद थोड़ा आराम किया होगा।

डा धर ने ऑपरेशन किया था। पर हमारे लिए मम्मी की जान डॉ केके ने बचाई थी।

सिर्फ मम्मी ही नहीं, ऐसी कई घटनाएं मेरी अपनी और अनगिनत जानकारों की हैं, जब केके ने बिना किसी स्वार्थ के मदद की थी। हमारे पिताजी, हमारे बच्चों और खुद मेरे लिए भी केके देवदूत से कम नहीं थे।

मेरा और डॉ के के का रिश्ता कोई 35 साल पुराना था। 80 के दशक में मैंने पत्रकारिता शुरू की थी। डॉक्टर के तौर पर केके का व्यावसायिक जीवन भी शुरूआती दौर में था। उसी दौरान जब मैं दूरदर्शन में संवाददाता था तो एक दोस्त की मार्फ़त में उनका इंटरव्यू करने गया था। उसके बाद हमारी वो मामूली जान पहचान दोस्ती में बदल गयी। वे मूलचंद अस्पताल में डॉ चौपड़ा की टीम में थे। उसके बाद तो किसी को भी कैसी मेडिकल मदद की ज़रुरत होती थी, मेरा फोन उन्हें ही जाता था। और  ऐसा कभी नहीं हुआ कि केके उपलब्ध न हों। 

1996 में जब मुझे ब्लैकआउट हुआ तो मेरे साथी मुझे सीधे केके के पास लेकर गए। तबतक मैं ज़ी टीवी में एक्सीक्यूटिव प्रोड्यूसर बन चुका था।

केके की वो बात मुझे अब तक याद है। जांच के बाद मैंने जब उनसे पूछा कि मुझे आगे क्या करना है।

“तुम्हें कुछ नहीं करना है। बस मस्त रहना है। आज से ये मेरी प्रॉब्लम है।”

दूसरों की प्रॉब्लम को अपनी समस्या बनाकर हल करने के लिए जी जान लगाना, यही थे डॉ केके।

एक कुशल चिकित्सक (Skilled doctor), बड़ा सोचने वाला, हर समय नया करने/सीखने को तत्पर, हमदर्द, दोस्तों का दोस्त और ज़िंदादिल इंसान चला गया। अब मुझे नहीं पता कि आधी रात को भी जब किसी को भी ज़रुरत होगी तो किसे फोन करूंगा??

साभार – उमेश उपाध्याय वरिष्ठ पत्रकार

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