न्यूज डेस्क (शौर्य यादव): भारतीय टेलीकॉम मार्केट में रिलायंस जियो (Reliance Jio) की मौजूदगी दूसरे टेलीकॉम दिग्गज़ों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। सस्ते डेटा प्लान्स, अनलिमिटेड कॉल और और जियो फाइबर (jio fiber) की मदद से रिलायंस इस वक्त एकछत्र राज करने की स्थिति में आ गया है।
खब़र है कि जियो दिसम्बर महीने में चाइनीज़ ब्रांड वीवो के साथ मिलकर सस्ते 4-जी मोबाइल्स फोन्स को बाज़ार मे उतारने जा रहा है। जिसकी कीमत 8000 रूपये के आसपास होगी। दोनों की जुगलबंदी से ग्राहकों को ओटीटी सब्सक्रिप्शन (OTT subscription), शॉपिंग बेनेफिट्स और वन टाइम स्क्रीन रिप्लेसमेंट का भी फायदा मिलेगा। लेकिन इसके लिए ग्राहकों में वीवो वाय सीरीज और जियो का कनेक्शन एक साथ लेना होगा।
बताया जा रहा है कि चीनी ब्रांड से साझेदारी करने से पहले जियो ने लावा और कार्बन से इस डील के लिए पेशकश की थी। जो कि पूरी नहीं हो पायी। इसके साथ ही सस्ते फोन मार्केट में उतारने के लिए रिलायंस जियो गूगल के साथ भी साझेदारी कर रहा है। कुछ इसी किस्म का कवायद भारती एयरटेल भी शुरू करने जा रहा है। जिसके लिए लावा और कार्बन के नाम पर आखिऱी मोहर लग सकती है।
ऐसे में बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या कार्पोरेट सेक्टर के लिए व्यापार में चाइनीज़ विरोधी जैसी मुहिम नहीं चल रही है? या जियो जानबूझकर मेक इन इंडिया की मुहिम को कमजोर करने पर लगा है। लावा, कार्बन और माइक्रोमैक्स जैसे बड़ी फोन निर्माता भारतीय कंपनियां बेहतरीन काम कर सकती है।
तो फिर चाइनीज कम्पनी से हाथ मिलाकर व्यापारिक साझेदारी करना कहां तक जायज़ है। चीनी सैनिकों द्वारा लद्दाख के मोर्चे पर गतिरोध के बाद देशभर में चीनी सामानों का बॉयकाट करने की मुहिम में तेजी देखी गयी थी। कई बड़े व्यापारिक संगठनों ने इसका समर्थन भी किया था। मुकेश अंबानी पीएम मोदी के काफी करीबी माने जाते है।
ऐसे में चीनी कम्पनी को व्यापार के बड़े अवसर देना अपने आप में काफी गंभीर है। जबकि भारत सरकार बड़े-बड़े आईटी पार्क, एसईजेड (Special economic zone) और आधारिक संरचना तैयार कर रही है, जिससे विदेशी कंपनियों का निवेश भारत में हो। ऐसे में जियो की चीनी कंपनी के साथ साझेदारी कहीं ना कहीं बीजिंग को ये संदेश साफ देगा कि, भारत आज भी व्यापारिक स्तर पर चीन के सामने नतमस्तक है। भले ही सीमाई तनाव चरम पर पहुँच जाये।