अफगानिस्तान जहां तख्तापलट के लिए तालिबान (Taliban) ने बेरहमी की सारी हदें पार कर रहा है। हाल ही में जारी एक वीडियो में तालिबान आतंकवादियों को अफगानिस्तान के 22 निहत्थे सैनिकों को मारते हुए देखा गया। ये सैनिक वहां सरेंडर करने को तैयार थे, लेकिन बावजूद इसके तालिबान ने इन सभी सैनिकों को बेरहमी से मार डाला।
तालिबान अब जम्मू-कश्मीर से सिर्फ 400 किमी दूर है। और आने वाले दिनों में तालिबान इस हालात में आ जायेगा कि वो जम्मू-कश्मीर को आतंकवाद का एक्सपोर्ट कर सकेगा। अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा समझौते (Doha Agreement) के बाद अफगानिस्तान में युद्ध जैसे हालात हैं। इस समझौते के तहत 90 प्रतिशत अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान छोड़ चुके हैं और तालिबान धीरे-धीरे पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा करने की ओर बढ़ रहा है।
अफगानिस्तान में कुल 407 जिले हैं। तालिबान ने इनमें से 212 जिलों पर पूरी तरह कब्जा कर लिया है। 119 जिलों में तालिबान और अफगानिस्तान के बीच कब्जे के लिए संघर्ष चल रहा है और केवल 76 जिलों पर अफगानिस्तान सरकार का नियंत्रण है।
तालिबान का दावा है कि अफगानी सरकार ने सिर्फ कुछ ही जिलों पर नियंत्रण खोया है और अब 85 प्रतिशत इलाके पर तलिबान का नियंत्रण है। इसके मुताबिक आने वाले कुछ दिनों में अफगानिस्तान में तालिबान का राज होगा। भारत के लिये ये चिंता का सब़ब है कि इस बार तालिबान मध्य अफगानिस्तान के बजाय अन्य देशों के सीमावर्ती इलाकों (Border Areas) पर कब्जा कर रहा है।
तालिबान ने ईरान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान, पाकिस्तान और उज्बेकिस्तान की सीमा से लगे जिलों पर कब्जा कर लिया है और इस बार तालिबान की रणनीति साफ है कि वो सीमावर्ती इलाकों में खुद को मजबूत करेगा ताकि जब वहां उसकी सरकार आये तो पड़ोसी देश उस पर दबाव न बना सकें और एक बार फिर अफगानिस्तान में अपना बेरहम तख्तशाही चला सके।
तालिबान जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा से सिर्फ 400 किमी दूर है। तालिबान ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की सीमा से लगे अफगानिस्तान के बदख्शां प्रांत (Badakhshan Province) पर कब्जा कर लिया है। अब अगर तालिबान अफगानिस्तान के सभी जिलों पर कब्जा कर अपनी सरकार स्थापित कर ले तो वो आसानी से अपने आतंकवादियों को जम्मू-कश्मीर भेज सकेगा और पाकिस्तान की मदद भी कर सकेगा। यही वजह है कि तालिबान के मजबूत होने से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान इतने खुश हैं।
पाकिस्तान के अलावा चीन भी भारत के लिये चुनौती बन सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जहां तालिबान पर पाकिस्तान का प्रभाव है, वहीं चीन मौजूदा वक़्त में अफगानिस्तान के लिये सबसे बड़ा निवेशक है। इस समय अफगानिस्तान में चीन के कई बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं और तालिबान जानता है कि अगर उसे अपनी स्थिति मजबूत रखना है तो उसे सबसे ज्यादा चीनी पैसे की जरूरत होगी। इसी वजह से तालिबान ने ऐलान किया है कि वो अफगानिस्तान में चीनी परियोजनाओं (Chinese Projects) को हाथ नहीं लगायेगा।
ये भी विडम्बना है कि मानवाधिकारों पर पूरी दुनिया को व्याख्यान देने वाले पश्चिमी देशों और संयुक्त राष्ट्र के थिंक टैंक अफगानिस्तान के मौजूदा हालात को लेकर ज्यादा सक्रिय नहीं हैं। वो भी तब जब यह सर्वविदित है कि अफगानिस्तान में तालिबान का शासन मानवाधिकारों को कुचलकर रख देगा, जैसा कि तालिबान ने साल 2001 से पहले किया गया था।
उस समय तालिबान ने शरिया कानून (Sharia Law) को सख्ती से लागू किया था। जिसके तहत उसने पुरुषों के लिए दाढ़ी रखने और महिलाओं को अपने पूरे शरीर को ढकने के लिए फरमान जारी किया था, जिसका उल्लंघन करने पर सार्वजनिक रूप से दंडित किया जाता था। इसके अलावा उस समय संगीत, फिल्में और टेलीविजन देखने पर भी प्रतिबंध था और 10 साल से ज़्यादा उम्र की लड़कियों को स्कूल जाने की मंजूरी नहीं हुआ करती थी। सीधे शब्दों में कहें तो तालिबान अगर अफगानिस्तान में दोबारा आता है तो वहां दुबारा ऐसा ही होगा।