अमीर अमीर होता जा रहा है, गरीब और भी ज़्यादा गरीबी के दलदल में धंसता जा रहा है। जिस हिसाब से देश के मौजूदा आर्थिक हालात बिगड़ते जा रहे है, ये समाज में विषमताओं की खाई को और ज़्यादा चौड़ा कर देगें। हमारा देश विश्व में दूसरे पायदान पर आता है, जहाँ आव़ाम सबसे ज़्यादा आर्थिक-सामाजिक असमानताओं का सामना कर रही है।
ये बात काफी हैरानगी पैदा करती है, वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान देश के 63 अरबपतियों की कुल संपत्ति केन्द्रीय के बजट के मुकाबले कहीं ज़्यादा थी। उस दौरान देश का बजट कुल 24,42,200 करोड़ रूपये था। ये हालात दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे है। दूसरी ओर मुल्क की आव़ामी हुकूमत, ज़मीनी असलियत जाने बिना, आंखें मूंदे लाखों लोगों के लिए नीतियां बनाने में मशरूफ है।
साथ ही घोटाले करने वाली इस ज़मात के लिए कुछ और चीज़े भी काफी मददगार साबित होती है, जैसे जनता के लिए बनायी गयी पॉलिसी को गलत तरीके से लागू करना, जाँच-पड़ताल के नाम पर कुछ ना करना। आखिर क्यों सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिये पर जी रहे लोगों तक पहुँच नहीं बन पा रही है ? जो कि सरकारी नीतियों की सही मायनों में मंजिल है।
राजनीतिक और व्यक्तिगत लाभ के लिए देश में नागरिकों को विकास के झूठे ख़्वाब दिखाये जा रहे है, विकास के नाम पर डब्बा गोल है और लोगों को इसी के साथ जीने के लिए छोड़ दिया गया है। सरकारी संस्थाओं में सशक्तिकरण लाने इच्छा शक्ति कहीं ना कहीं गायब है। गहरी चुप्पी और मानसिक दिवालियेपन ने विकास की रफ्तार को रोकते हुए घोटले बढ़ाये है। यहीं मौका है जागृत होने का बेहतर राष्ट्र बनाने और वास्तविक विकास के अर्थ गढ़ने का जहाँ असमानताओं के लिए कोई जगह ना होगी।