न्यूज डेस्क (विश्वरूप प्रियदर्शी): बीते शुक्रवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने जेके बजाज और एम डी श्रीनिवास द्वारा लिखित ‘मेकिंग आफ ए हिन्दू पेट्रियट: बैकग्राउंड आफ गांधीजी हिन्द स्वराज’ का लोकार्पण किया। इस दौरान उन्होनें कहा कि- यदि कोई हिन्दू है तो वह स्वत: स्फूर्त देशभक्त ही होगा, क्योंकि ये गुण उसके आधारिक चरित्र और प्रकृति का हिस्सा है। ये गुण उसके मूल में सुषुप्तावस्था में है, जिसके जागृत करना जरूरी है। इसके सम्पूर्ण क्रियान्वयन (Full execution) से कोई भी हिन्दू भारत विरोधी नहीं हो सकता। किताब के नाम और उसके मेरे द्वारा विमोचन करने पर तरह-तरह की अटकलें लग सकती है। कुछ लोग कह सकते है कि ये पुस्तक गांधी जी को अपने हिसाब से परिभाषित करने की कोशिश करती है।
आगे उन्होनें कहा कि- महापुरूषों को कोई भी अपने सांचे के मुताबिक परिभाषित नहीं कर सकता। पुस्तक पूर्णरूपेण तथ्यपरक शोध कार्यों पर आधारित (Purely based on research work) है। मतान्तर होने पर विरोध मत के लोग भी शोध करने के लिए स्वतन्त्र है। महात्मा गांधीजी ने कहा था कि मेरी देशभक्ति का उद्गम मेरे धर्म से होता है। स्वराज के वास्तविक अर्थ समझने के लिए स्वधर्म को समझना अत्यन्त आवश्यक है। धर्म को समझकर ही अच्छा देशभक्त बना जा सकता है। मैं दूसरे लोगों को भी ऐसा करने के लिए कहूंगा। जब तक लोगों के मस्तिष्क में अस्तित्व को लेकर शंकायें और खतरे व्याप्त रहेगें, तब तक सौदे होते रहेगें। आत्मीयता कायम नहीं हो पायेगी। वैविध्यता भारत की मूल सोच और आत्मा है।
ये पुस्तक विमोचन कार्यक्रम सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज के तत्वाधान में (Under the auspices of the Center for Policy Studies) आयोजित किया गया था। इसमें पुस्तक में दोनों लेखकों ने महात्मा गांधी की पोरबंदर से लेकर इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका से भारत वापसी की यात्राओं के बारे में शोधपरक आलेखनात्मक विवरण दिया है। पुस्तक में दावा किया गया है कि महात्मा गांधी को जीवन में दो बार धर्मान्तरण करने ऑफर मिला था। जिसे ठुकराकर वे आजीवन समर्पित हिंदू बने रहे।
संघ प्रमुख के इन बयानों पर असद्दुदीन औवेसी ने पलटवार करते हुए कहा कि- क्या मोहन भागवत जवाब देंगे: महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के बारे में? नेल्ली नरसंहार के लिए जिम्मेदार लोगों के बारे में, 1984 के सिख विरोधी दंगों और 2002 के गुजरात में हुए नरसंहार के बारे में?’ ये बात मानी जा सकती है कि ज़्यादातर हिन्दुस्तानी वतनपरस्त है। चाहे उनका कोई भी मज़हब हो। इसके उल्ट आरएसएस का बेबुनियादी फलसफ़ा (Unsound philosophy) एक खास मज़हब के लोगों को वतनपरस्ती के सर्टिफिकेट बांट रही है। और दूसरे मज़हब के लोगों को अपनी देशभक्ति साबित करनी पड़ती है। खुद को हिन्दुस्तानी साबित करने में कुछ लोग अपनी पूरी ज़िन्दगी गंवा देते है।