Russia Ukraine Conflict: आर्थिक प्रतिबंधों से रूस पर नकेल कस पायेगी पश्चिमी मुल्कों की जंगी ताकतें?

यूक्रेन (Ukraine) लगभग सभी अंतर्राष्ट्रीय समाचारों में सबसे आगे है। रूस (Russia) अपने सेवाओं को बड़े हिस्से में तैनात कर बेलारूस, मोल्दोवा, क्रीमिया और यूक्रेन के साथ अपनी पश्चिमी सीमा अपने सैन्य बलों को मोबालाइज़ कर रहा है। जिससे गंभीर सैन्य संकट (Serious Military Crisis) के आसार लगातार बने हुए है। यूरोपीय संघ (The European Union) के साथ-साथ यूके, फ्रांस और यूएस जैसे दूसरे मुल्क सक्रिय तौर पर इस संभावित को लेकर काफी मुखर है। रूसी सेनाओं ने कुछ हद तक यूक्रेन पर जबरन कब्जा कर लिया है। यूक्रेन यूरोप का रूसी प्रवेश द्वार है और इसी तरह ये नाटो के लिये रूसी में घुसने का सीधा रास्ता है। अगर रूस इस पर काबू पा लेता है तो मास्को पर यूरोप का कोई दखल नहीं होगा।

अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हो जाता है तो अमेरिकी सेना क्रेमलिन (Kremlin) के दरवाजे पर दस्तक देगी। एक मोटे अनुमान के मुताबिक रूसी सेना के 1200-1500 सैनिकों की ताकत के साथ लगभग 80 से ज़्यादा बटालियन टैक्टिकल ग्रुप (Battalion Tactical Group) कीव के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं, जो यूक्रेन के लिये चिंताजनक के हालात बनाते है।

नाटो खुद इस मुद्दे पर बंटा हुआ है और नाटो गठबंधन के ज़्यादातर पूर्वी यूरोपीय सदस्य मुल्क क्रेमलिन के खिलाफ किसी भी सैन्य कार्रवाई का समर्थन नहीं कर रहे हैं, भले ही वो यूक्रेन पर हमला करे। यूक्रेन में रूस के खिलाफ नाटो बलों की तैनाती से मास्को को सैन्य प्रतिक्रिया (Military Response) करने के लिये मजबूर होना पड़ेगा, जिससे एक और शीत युद्ध (Cold War) जैसे हालात पैदा हो सकते है। इससे नाटो देशों के पास सिर्फ एक ही विकल्प बचता है और वो है रूस पर अधिक आर्थिक प्रतिबंध लगाना।

ये बहस का मुद्दा है क्योंकि साल 2014 के क्रीमियन संकट (Crimean crisis) के बाद रूस पर पहले से ही अमेरिका और यूरोपीय संघ के कड़े प्रतिबंध हैं। साल 2014 से अब तक सात साल बीत जाने के बाद ये अभी भी कायम है, बावजूद इसके मास्को ने बखूबी रहना सीख लिया है। असल में इस कवायद ने कुछ हद मास्को को आर्थिक रूप से तोड़कर रखा दिया था। थोड़े समय बाद इसके उल्ट रूस ने ज़बरदस्त वापसी करते हुए आर्थिक रफ्तार को बढ़ाया।

यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था पर इसके ज़्यादा गंभीर असर दिखायी दिये। रूस के साथ हुए व्यापार नुकसान के कारण पहले तीन सालों में यूरोपीय संघ को लगभग 100 बिलियन यूरो का सीधा नुकसान हुआ। व्यापार के मामले में रूस सरप्लस मुल्क है, जहां उसके इम्पोर्ट से ज्यादा एक्सपोर्ट है। नाटो और यूरोपीय संघ इस बार क्रेमलिन पर प्रतिबंधों का नया सिलसिला लगाने के लिये कमर कस रहे हैं। ऐसे में ये जानना बेहद जरूरी है कि क्यो नाटो और यूरोपीय संघ की ये कवायदें रूसी अर्थव्यवस्था (Russian Economy) पर कितना असर डाल सकेगी।

अमेरिका ने पहले ही अपने चिप निर्माताओं को इस संभावना के बारे में बता रखा है कि  रूस को उनके एक्सपोर्ट को रोका सकता है। रूसी आयात का एक बड़ा हिस्सा (लगभग 45%) मशीनरी, उपकरण और प्रौद्योगिकी है, लेकिन इसका एक बड़ा हिस्सा चीन, जर्मनी और कुछ अन्य यूरोपीय देशों से आता है और मुश्किल से 5-6% अमेरिका से आता है। इसलिये अगर अमेरिका रूस पर कोई प्रतिबंध भी लगाता है तो वो चीन और अन्य देशों में आसानी से विकल्प ढूंढ लेगा।

यूरोपीय संघ के पास कई विकल्प हैं। पहला विकल्प नॉर्ड स्ट्रीम 1 और 2 के साथ-साथ साउथ स्ट्रीम समेत विभिन्न पाइपलाइनों के जरिये रूसी और तेल गैस की सप्लाई को रोकना। हालांकि संभावनायें मुश्किल हैं क्योंकि 70 फीसदी यूरोप अपनी रोजाना की ऊर्जा जरूरतों (Daily Energy Needs) के लिये रूसी तेल और गैस पर निर्भर है जो कि सस्ता है और पाइपलाइन के जरिये से आसानी से उपलब्ध है। प्रतिबंधों या रूसी सप्लाई से इनकार के मामले में इन देशों के पास मध्य पूर्व से महंगे पेट्रोलियम टैंकर खरीदने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा। जिसका परिवहन यूरोप के कुछ भू-भाग वाले देशों में बड़े पैमाने वाला काम होगा। रूस के खिलाफ कोई भी कार्रवाई पूरे यूरोप की ऊर्जा सुरक्षा को सीधे तौर पर प्रभावित करेगी।

दूसरा विकल्प रूस के साथ व्यापार को रोकना है और इस तरह की कार्रवाई के हालातों में, रूस के पास पहले की तरह पेट्रोलियम आपूर्ति (Petroleum Supply) को रोकने या बाधित करने का अधिकार सुरक्षित है। यूरोपीय संघ ने साल 2014 में भी इसी तरह के हालातों का स्वाद चखा और इस बार हालातों को संभालने के लिये वो पूरी तरह से तैयार नहीं है। इसके अलावा अगर हम जर्मनी छोड़ देते हैं तो रूस के साथ अन्य यूरोपीय संघ के देशों का व्यापार बेहद कम है, जो कि रूसी अर्थव्यवस्था पर किसी तरह का कोई बड़ा असर नहीं डाल सकता।

यूरोपीय संघ के साथ व्यापार के मामले में रूस के पास एक अहम ट्रेड सरप्लस है और नुकसान यूरोपीय संघ के देशों को होगा जो पहले से ही कोविड महामारी के कारण कड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। इसके अलावा यूरोपीय संघ खुद यूक्रेन मुद्दे पर बंटा हुआ है और जाहिर तौर पर ऐसा कोई भी फैसला लेने के लिये यूरोपीय संघ के सभी 27 देशों को सहमत होना चाहिये जो इस मामले में मुमकिन नहीं है।

मास्को के लिये अपने दरवाजे बंद करने के लिये अमेरिका और अन्य देश खुले तौर पर अपने प्रतिबंधों के पैकेज के तहत रूस को स्विफ्ट इलेक्ट्रॉनिक भुगतान गेटवे (Swift Electronic Payment Gateway) से इंकार करने के बारे में बोल रहे हैं। ये ब्रुसेल्स आधारित स्विफ्ट प्रणाली जो रूस में विदेशी मुद्रा प्रवाह की रीढ़ है। क्रेमलिन को लगभग 75 फीसदी वित्तीय ट्रांसफर के लिये यूरोपीय संघ खुद जिम्मेदार है, स्विफ्ट प्रणाली के बंद होने से रूस पर इसका ज़्यादा असर नहीं पड़ेगा। अमेरिका पहले ही रूस को अपनी पूरी बैंकिंग प्रणाली से दूर कर चुका है और इसका कोई अब तक बड़ा असर नहीं पड़ा है। तेजी से धन भुगतान करने की प्रणाली से मास्को को दूर रखने की कार्रवाई ना सिर्फ रूस  बल्कि दुनिया के दूसरे मुल्कों को भी विकल्प तैयार करने के लिए प्रेरित करेगी। चीन पहले से ही ओर काम कर रहा है और रूस के भी इसमें शामिल होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

पिछले सात दशकों में संयुक्त राज्य अमेरिका रूसी शस्त्र उद्योग (Russian Arms Industry) के साथ बड़े पैमाने पर प्रतिस्पर्धा कर रहा है। दोनों देशों के पास वैश्विक रक्षा बाजार (Global Defence Market) का लगभग 70 फीसदी हिस्सा है। ये बेहद मुमकिन है कि अमेरिका या यूरोपीय संघ रूस पर उसके डिफेंस एक्सपोर्ट (Defence Export) से इनकार करते हुए प्रतिबंध लगा सकते हैं, हालांकि इसका असर सीमित होगा। सबसे पहले प्रतिबंधों के सीमित दायरे की वज़ह से ज़्यादातर रूसी रक्षा उपकरण खरीदार नाटो और यूरोपीय संघ के बाहर हैं, जो इन प्रतिबंधों के दायरों से बाहर होंगे और दूसरा रूसी हथियारों के बड़े खरीदार चीन, भारत और कुछ वो है देश जो तत्कालीन सोवियत संघ (Soviet Union) का हिस्सा थे। ये गैर-नाटो, गैर-यूरोपीय संघ के देश हैं और इतनी आसानी से नाटो के सामने नहीं झुकेंगे।

फॉरेन एक्सचेंज़ और वित्तीय कार्डों पर लेन-देन (Transactions on Foreign Exchange And Financial Cards) पर रोक लगाकर रूस पर काबू पाने की कवायद को लेकर अमेरिकी अर्थशास्त्री मुखर हैं, वहीं इसका असर उल्टा होने वाला है। 600 बिलियन अमरीकी डालर से ज़्यादा के विदेशी भंडार के साथ ट्रेड सरप्लस मुल्क (Trade Surplus Country) के तौर पर रूस आसानी इन हालातों से पार पाने की कुव्वत रखता है। इसके अलावा अमरीकी डालर और यूरो की गैरमौजूदगी में यूरोपीय देशों को रूस को उसके तेल और गैस के लिये भुगतान करने के लिये एक और विकल्प तलाशना होगा। ये किसी अन्य मुद्रा (जापानी येन या चीनी रॅन्मिन्बी) या बुलियन (सोना) के तौर पर हो सकता है। इस तरह के किसी भी प्रतिबंध का मतलब अमेरिका और यूरोपीय संघ दोनों के लिये आत्मघाती प्रयास होगा। ये न सिर्फ यूरोप में विदेशी मुद्रा संकट पैदा करेगा बल्कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर और यूरो की मजबूती को भी कमजोर करेगा। इसके अलावा अगर ये विकल्प काम करता है तो ये दुनिया से अमेरिकी डॉलर के एकाधिकार को खत्म कर देगा।

ऐसे में दो बातों पानी की तरह बेहद साफ है। सबसे पहले रूस में मजबूत ट्रेड सरप्सल इक्नॉमी (Strong trade surplus economy) है, जो 30 साल पहले बनने के बाद से अब तक कई उतार-चढ़ाव से गुजरी है। इसने अतीत में कई गंभीर आर्थिक हालातों को देखा है और हर बार उस पर फतेह हासिल की है। साल 2014 में लगाये गये अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों के विकल्प खास कारगर नहीं दिखते है। जब जब भी ऐसा हुआ है तब रूस ने नये कारोबारी भागीदार चुनकर प्रतिबंधों को धत्ता बताया। फिलहाल रूस अब संयुक्त राज्य अमेरिका के समानांतर शक्ति के रूप में उभर रहा है। जबकि यूरोपीय संघ फिजिबल ऑप्शन से बाहर हो गया है, अमेरिका द्वारा कोई भी कार्रवाई हमेशा आत्मघाती होगी। यूक्रेन में क्या होगा ये एक अलग सवाल है। रूस पूरी ताकत से उस पर हमला करता है या एक सीमित कार्रवाई करता है या खार्किव और डोनबास इलाके को उसी तरह दबाव की रणनीति से मुक्त कर सकता है जैसे उसने क्रीमिया में किया था। विकल्पों की सूची काफी लंबी है और मौजूदा वक़्त में इसकी सभी ज़वाब भविष्य के गर्भ में ही छिपे हुए है।

सह-संस्थापक संपादक: राम अजोर

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