Russia Ukraine Crisis: ग्लोबल जियो-स्ट्रैटजिक प्लेटफॉर्म पर यूक्रेन की अपनी अहमियत है। न सिर्फ यूरोप या रूस के लिये गेटवे होने की वज़ह से ये न सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों के मामले में यूरोपीय देशों में सबसे अमीर होने का खास गौरव रखता है, बल्कि खेती योग्य कृषि भूमि के मामले में भी इसके पास बड़ा इलाका है। यूक्रेन सालों तक पूरे यूरोप महाद्वीप का पेट भर सकता है और इसलिये ये उनके लिये काफी अहम है। यूक्रेन रूस के लिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये नाटो और क्रेमलिन (NATO and Kremlin) के बीच बफर स्टेट के तौर पर काम करता है। ये पूरे यूरोप में चलने वाली विभिन्न रूसी तेल पाइपलाइनों के लिये कैरियर (वाहक) का भी काम करता है। कीव की अहमियत यूरोपीय संघ के लिये तो है ही साथ ही ये रूसी अर्थव्यवस्था को भी बड़ा बढ़ावा दे सकता है।
जिन घटनाओं के कारण 2014 में क्रीमिया (Crimea) का रूसी विलय हुआ और बीते सोमवार (21 फरवरी, 2022) डोनेट्स्क और लुहान्स्क को स्वतंत्र गणराज्यों के तौर पर मान्यता दी गयी, ये बहुत अच्छी तरह से पहले से ही अपेक्षित था। इसकी पटकथा 2013 के आखिर और 2014 की शुरुआत में लिखी गयी थी, जब कीव में यूक्रेनी क्रांति शुरू हुई। इससे पहले कि हम विवरण में आगे बढ़ें, यूक्रेन की जनसांख्यिकी (Demographics) को समझना होगा, क्रीमिया में टार्टार की बड़ी आबादी है और इसके पूर्वी हिस्से में रूसी लोग खासतौर से से डोनेट्स्क, लुहान्स्क और खार्किव (Donetsk, Luhansk and Kharkiv) में हैं, जबकि बाकी इलाकों में मुख्य तौर से यूक्रेनी आबादी है। यूक्रेन की रणनीतिक स्थिति ने इसे अमेरिका के लिये काफी आकर्षक बना दिया है और ये साबित करने के लिये पर्याप्त सबूत हैं कि यूक्रेनी क्रांति की ओर ले जाने वाली घटनाओं का सिलसिला संयुक्त राज्य अमेरिका ने स्वार्थों के लिये तैयार किया था।
इसलिए जब फरवरी 2014 में अमेरिका समर्थित हथियारबंद भाड़े के सैनिकों ने हिंसक विरोध प्रदर्शनों के सिलसिले के बाद यूक्रेन की राजधानी कीव पर हमला किया और राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच पर जबरन महाभियोग चलाया तो क्रेमलिन और व्लादिमीर पुतिन जैसे अनुभवी जासूसों के लिये चीजें बदसूरत हो गयी। अब नई चुनौती यूक्रेन को अमेरिकी हाथों की कठपुतली बनने से बचने के लिये उभरी। यूक्रेन में रूसी हिस्सेदारी को बचाने के लिये मास्को को यूक्रेन में रूसी समर्थक तत्वों को सक्रिय करना पड़ा और नतीज़न क्रीमिया, डोनेट्स्क, लुहान्स्क, मारियुपोल, ज़ापोरिज़्ज़िया (Mariupol, Zaporizhzhya) और खार्किव में सरकार विरोधी प्रदर्शनों का सिलसिला चल निकला, जो जल्द ही रूस के सक्रिय समर्थन के साथ अलगाववादी आंदोलन में बदल गया।
इस कवायद की जद में आने वाला पहला इलाका क्रीमिया था, जहां क्रेमलिन ने भूगोल स्थिति का सही फायदा उठाया और नोवोरोस्सिय्स्क (Novorossiysk) के जरिये अपनी सैन्य तैनाती को रणनीतिक तौर पर बदला। साल 2014 के आखिर में बगैर खून खराबे के प्रायद्वीप से पूरी तरह से यूक्रेनी वापसी को मजबूर कर दिया। बाद में बेहद विवादित जनमत संग्रह में क्रीमिया ने यूक्रेन से अलग होने के लिये फैसला किया। हालांकि इस प्रकरण के बाद पश्चिमी मुल्कों ने रूस पर गंभीर आर्थिक प्रतिबंध लगाये, लेकिन ये सबसे खराब स्थिति से गुजरा और अगले दो सालों के भीतर क्रीमिया इन हालातों को अच्छी तरह से पार करने में कामयाब रहा।
रूस के सामने बड़ी दुविधा है क्योंकि वो यूक्रेन को नाटो में शामिल होने नहीं देना चाहता है। ये मास्को के लिये सैन्य और आर्थिक तबाही दोनों लायेगा और वो (रूस) इस तरह किसी भी कीमत पर इससे बचना चाहता था। इसलिये सिलसिलेवार तरीके से डोनेट्स्क, लुहान्स्क और यूक्रेन के अन्य इलाकों में सशस्त्र अलगाववादी आंदोलन तेज हो गये थे जिसके परिणामस्वरूप यूक्रेन से दो अलग-अलग गणराज्यों की घोषणा हुई। डोनेट्स्क पीपुल्स रिपब्लिक (डीपीआर) और लुहान्स्क पीपुल्स रिपब्लिक (एलपीआर)।
इस मामले की बाद तुरन्त ही अंतर्राष्ट्रीय शक्तियां सक्रिय हो गयी और मिन्स्क समझौतों के लिये मध्यस्थता की गयी, जहां दोनों पक्षों ने वादे किये लेकिन उनमें से कोई भी वादा पूरा नहीं हुआ और स्थिति तनावपूर्ण बनी रही। यूरोप के पूर्वी हिस्से में बड़े इलाके रूस समर्थित डीपीआर और एलपीआर के अलगाववादियों द्वारा नियंत्रित हैं, जिनके पास एडवांस हथियार और बेहतरीन तेल वाली मशीनरी है।
पिछले कुछ महीनों में बीते घटनायें की वज़ह से दुनिया को लगता है कि रूस और यूक्रेन के बीच बड़े पैमाने पर सीधी जंग होगी। अगर हम इसकी टाइमलाइन का बारीकी से विश्लेषण करें तो ये काफी दिलचस्प थी। लेकिन डोनेट्स्क और लुहान्स्क को स्वतंत्र गणराज्यों के तौर पर मान्यता देने के साथ ही मास्को ने बड़ा लक्ष्य हासिल किया है। इसने न सिर्फ यूक्रेन के एक बड़े हिस्से को काट दिया बल्कि यूक्रेन और रूस के बीच बफर जोन भी बनाया ताकि भविष्य में यूक्रेन नाटो का सदस्य बन सके। ये कार्रवाई यूक्रेन को भी अस्थिर करेगी और उसके नेतृत्व को कड़ा संदेश देगी। जहां तक आगे आर्थिक प्रतिबंधों का संबंध है, रूस ने अतीत से काफी कुछ सीखा है और इन प्रतिबंधों को वो आसानी से पार पा सकता है।
रूस ने सलामी स्लाइसिंग रणनीति को जॉर्जिया में अपनाया और यूक्रेन में इसकी कार्रवाई अभी खत्म नहीं हुई है। आज सबसे बड़ा सवाल क्रीमिया, डोनेट्स्क और लुहांस्क के बाद आखिर अब क्या है? जाहिर है, जब हम यूक्रेन को समग्रता में देखते हैं तो इसके लगभग 37% लोग केवल रूसी भाषा बोलते हैं और यूरोपीय संघ या नाटो की तुलना में रूस में ये रूस के बहुत करीब हैं। अगर हम जनसांख्यिकीय आधार पर इसका विश्लेषण करते हैं तो यूक्रेन के 24 प्राथमिक ओब्लास्ट (राज्यों) में से 8 में रूसी आबादी काफी बड़ी तादाद है। ये हैं क्रीमिया (97%), डोनेट्स्क (93%), लुहान्स्क (89%), ओडेसा (85%), ज़ापोरिज्जिया (81%), खार्किव (74%), निप्रॉपेट्रोस (72%) और मायकोलाइव (66%) है। इनमें से शीर्ष तीन पहले ही यूक्रेन से अलग हो चुके हैं, बाकी का भविष्य भी अनिश्चित है। ये यूक्रेन के पूर्वी या दक्षिण-पूर्वी प्रांत में स्थित हैं और इसके निवासियों की बड़ी तादाद रूसी समर्थक है और अतीत में यूक्रेनी सरकार के खिलाफ ये लोग विरोध में लगे हुए हैं। अगर हालात तनावपूर्ण बने रहे तो इस बात की प्रबल संभावना है कि अगला प्रांत इन प्रांतों में से होगा। खार्किव में तनाव पहले से ही उबल रहा है।
वैश्विक स्तर पर हमें ये समझना चाहिए कि समस्या की जड़ आर्थिक पहलुओं में छिपी हुई है और इसका क्षेत्रीय मुद्दे से अलग विश्लेषण किया जाना चाहिये। ये रूस का क्षेत्रीय विस्तार नहीं है बल्कि अपने हितों की रक्षा के लिये उठाया गया कदम है। दुनिया को करीब से देखना होगा। इस समस्या का एकमात्र हल यूक्रेन और रूस दोनों के बीच सौहार्दपूर्ण बातचीत से होगा। यूक्रेन का सामाजिक और सांस्कृतिक जुड़ाव गहरे तौर पर मास्को से जुड़ा हुआ है, दूसरी ओर रूस को यूक्रेनी अधिकारों का भी सम्मान करना होगा।