Russia Ukraine War: मास्को का बड़ा दावा, शुरू हो चुका है तीसरा विश्व युद्ध

Russia Ukraine War: यूक्रेन ने काला सागर में तैनात रूस के तीसरे सबसे बड़े युद्धपोत को तबाह करने का दावा किया है। हमले की कुछ तस्वीरें भी सामने आयी हैं, जिनमें ये मोस्कवा जंगी युद्धपोत (Moskva Warship) समुद्र के बीच जलता नज़र आ रहा है। इस जंगी युद्धपोत की तबाही जंग में एक बड़ा मोड़ है। रूस के सरकारी मीडिया ने कहना शुरू कर दिया है कि जंग अब दो देशों तक सीमित नहीं रह गयी है। तीसरा विश्व युद्ध अब शुरू हो गया है, जिसमें अमेरिका और यूरोपीय देश रूस के खिलाफ लड़ रहे हैं। ऐसे में क्या काला सागर में डूबा ये जंगी युद्धपोत इस युद्ध में बेहद खतरनाक मोड़ साबित हो सकता है?

रूस के रक्षा मंत्रालय (Russian Defence Ministry) ने अभी तक इस घटना के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी है। लेकिन रूसी रक्षा मंत्रालय ने मामले पर एक वीडियो जारी किया गया, जिसमें इस युद्धपोत के चालक दल के सदस्य नज़र आ रहे हैं। रूस का कहना है कि घटना के दौरान युद्धपोत पर तैनात 500 जवान पूरी तरह सुरक्षित हैं। रूस ने यूक्रेन के इस दावे का भी खंडन किया है कि उसकी नौसेना ने काला सागर में रूसी युद्धपोत पर दो नेप्च्यून मिसाइल (Neptune Missile) दागी और उसे समुद्र में डुबो दिया।

रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि युद्धपोत पर कोई हमला नहीं हुआ है। दरअसल उसकी नौसेना इस युद्धपोत को तटीय इलाके में ले जा रही थी और तभी उसमें आग लग गयी, जिससे ये विशाल युद्धपोत समुद्र में डूब गया। हालांकि इस घटना के बाद से रूस और यूक्रेन के बीच तनाव काफी बढ़ गया है और ये युद्धपोत अचानक ही इस पूरे युद्ध के केंद्र में आ गया है तो ये युद्धपोत इस युद्ध का टर्निंग पॉइंट कैसे बना? सबसे पहले आपको यह समझना होगा।

ऐसा 40 साल बाद हुआ है, जब एक युद्धपोत जंग में तबाह होने के बाद समुद्र में डूब गया। इससे पहले साल 1982 में जब ब्रिटेन और अर्जेंटीना (Britain and Argentina) के बीच युद्ध हुआ था, इसी तरह अर्जेंटीना ने युद्धपोत रोधी मिसाइलों से ब्रिटिश युद्धपोत को तबाह कर दिया था, और इस घटना की वजह से तब दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था।

अब फिर वही हो रहा है। रूस के इस जंगी युद्धपोत का नाम मोस्कवा है। ये साल 1983 में रूस की नौसेना में शामिल हुआ था। साल 2008 से ये काला सागर में तैनात है। साल 2014 में जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था, तब भी युद्धपोत ने सैन्य संघर्ष में अहम भूमिका निभायी थी। ऐसा माना जाता था कि जब तक रूस का ये युद्धपोत काला सागर में तैनात था, तब तक यूक्रेन क्रीमिया (Crimea) में जंग लड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकता। ये इस इलाके में तैनात रूस का सबसे बड़ा जंगी युद्धपोत था।

ये जंगी युद्धपोत काफी महंगा था। इसकी कीमत 5,718 करोड़ रुपये आंकी गयी है। लेकिन यूक्रेन का दावा है कि उसकी 100-100 करोड़ रुपये की दो मिसाइलों ने करीब 6 हजार करोड़ रुपये के इस युद्धपोत को आसानी से समुद्र में डुबो दिया।

ऐसे में इस घटना के बाद ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या ऐसे युद्धपोतों का दौर अब खत्म हो गया है?

चीन (China) के पास इस वक़्त दुनिया में सबसे ज्यादा 777 युद्धपोत हैं। इसके बाद 605 युद्धपोतों के साथ रूस, 484 के साथ अमेरिका और 450 के साथ कोलंबिया और उत्तर कोरिया हैं। और बड़ी बात ये है कि चीन के पास सबसे अधिक जंगी युद्धपोत हैं, लेकिन वो उन्हें बहुत प्रभावी नहीं मानता है। चीन का मानना ​​है कि अब ऐसी युद्धपोत रोधी मिसाइलें आ गयी हैं, जो कुछ ही सेकेंड में खतरनाक युद्धपोतों को तबाह कर सकती हैं। ऐसे में इस तरह के युद्धपोतों को विकसित करना घाटे का सौदा होगा। इसीलिए चीन अब युद्धपोत बनाने से ज्यादा जंगी युद्धपोत-रोधी मिसाइल (Anti-Warship Missile) बनाने पर ध्यान दे रहा है।

इसका दूसरा कारण ये है कि ये आकार में बहुत बड़े होते हैं और इन्हें छुपाकर नहीं रखा जा सकता है। इसके अलावा इनकी स्पीड भी कम होती है। तबाह किये गये रूसी युद्धपोत का वजन 12,500 टन था और इसकी अधिकतम गति 59 किलोमीटर प्रति घंटा थी। जिससे यूक्रेन की नौसेना इसे आसानी से अपना निशाना बनाने में कामयाब रही।

हालांकि आप में से कई लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होगी कि दूसरे विश्व युद्ध में इस तरह के युद्धपोतों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया था। उससे पहले रूस का आखिरी युद्धपोत भी दूसरे विश्व युद्ध में तबाह हो गया था। साल 1941 में जर्मन नौसेना (German Navy) ने सोवियत रूस (Soviet Russia) के एक युद्धपोत को तबाह कर दिया था। ये हमला तब युद्ध में एक बड़ा मोड़ साबित हुआ और इस बार भी ऐसा हो सकता है। रूस के सरकारी मीडिया ने कहना शुरू कर दिया है कि अब तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया है। विश्व युद्ध की शुरुआत तब मानी जाती है, जब दो से ज़्यादा मुल्क जंग में हिस्सा लेते हैं। इस जंग में भी यही हो रहा है।

फिलहाल दुनिया के ज्यादातर देश इस युद्ध में यूक्रेन की सीधे तौर पर मदद कर रहे हैं। इनमें 27 यूरोपीय संघ के देश शामिल हैं, जो अब तक यूक्रेन को सैन्य सहायता दे चुके हैं। इसके अलावा अमेरिका यूक्रेन को हथियार भी दे रहा है। 24 फरवरी से अब तक अमेरिका ने यूक्रेन को 19 अरब रुपये के हथियार देना का ऐलान किया।

नाटो देश भी यूक्रेन की मदद कर रहे हैं। नाटो (NATO) यूक्रेन को मिसाइल और दूसरे खतरनाक हथियार दे रहे है। इसके अलावा यूके ने यूक्रेन को 800 एंटी टैंक मिसाइल, जैवेलिन एंटी टैंक मिसाइल (Javelin Anti Tank Missile), एयर डिफेंस सिस्टम और अन्य हथियार भी दिये। फिलहाल, 30 से ज़्यादा मुल्क यूक्रेन को हथियार दे रहे हैं, जबकि ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाकर यूक्रेन को अपना समर्थन देने का ऐलान किया।

यानि एक तरह से कई मुल्क इस जंग में शामिल हो चुके हैं, और इसलिए रूस अब कह रहा है कि तीसरा विश्व युद्ध (Third World War) शुरू हो गया है।

रक्षा मामलों के संवाददाता ट्रेंडी न्यूज नेटवर्क – दिगान्त बरूआ

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