नई दिल्ली (शौर्य यादव): सुप्रीम कोर्ट (SC- Supreme Court) ने आज (3 नवंबर 2000) लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) के आतंकी मोहम्मद आरिफ (Mohammad Arif) उर्फ अशफाक की समीक्षा याचिका खारिज कर दी, जिसे 2000 के लाल किले पर हमले के मामले में मौत की सजा सुनायी गयी थी। इस हमले में सेना के दो अधिकारियों समेत तीन लोगों की मौत हो गयी थी। सितंबर 2007 में दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने अशफाक को मौत की सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि जिन आतंकवादियों के पास मानव जीवन के लिये कोई मूल्य नहीं है, वो मौत की सजा के हक़दार हैं।
हालांकि उच्च न्यायालय ने अशफाक की पत्नी फारूकी (Farooqui) समेत छह अन्य लोगों को उनके खिलाफ पर्याप्त सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए बरी कर दिया। अगस्त 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अशफाक की मौत की सजा को बरकरार रखते हुए कहा था कि- ये हमला पाकिस्तान द्वारा भारत को डराने और युद्ध छेड़ने की कोशिश था। इस समीक्षा के साथ-साथ मामले में अशफाक की क्यूरेटिव पिटीशन (Curative Petition) को भी खारिज कर दिया गया।
हालांकि पाकिस्तानी आतंकी ने अपनी समीक्षा याचिका पर इस आधार पर पुनर्विचार की मांग करते हुए फिर से शीर्ष अदालत का रूख किया कि संविधान पीठ ने माना था कि मौत की सजा के दोषी की समीक्षा याचिका को तीन-न्यायाधीशों की न्यायिक खंडपीठ द्वारा खुली अदालत में सुना जाना चाहिये।
इस दलील से सहमत होते हुए शीर्ष अदालत ने उसकी सजा पर रोक लगा दी और 19 जनवरी 2016 को फैसला किया कि उनकी समीक्षा याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई की जायेगी।