न्यूज डेस्क (शाश्वत अहीर): पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने आज (13 फरवरी 2023) कहा कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया (Delimitation Process) को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने का सर्वोच्च न्यायालय (SC- Supreme Court) का कोई महत्व नहीं है, जबकि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम (Jammu and Kashmir Reorganization Act) की कानूनी चुनौतियां शीर्ष अदालत के सामने लंबित थीं। उन्होनें आगे कहा कि- “हमने परिसीमन आयोग को शुरू से ही खारिज कर दिया है। हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि फैसला क्या है?”
सुप्रीम कोर्ट ने आज जम्मू-कश्मीर में विधान सभा और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिये परिसीमन आयोग के गठन के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। पूर्व मुख्यमंत्री (PDP President Mehbooba Mufti) ने परिसीमन याचिका पर फैसला सुनाने के लिये SC से सवाल किया, जबकि अन्य दलीलें अभी भी लंबित हैं।
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने पूछा कि- “पुनर्गठन अधिनियम (जिसके तहत परिसीमन प्रक्रिया को अंजाम दिया गया था) की चुनौती लंबित है, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की चुनौती SC के समक्ष लंबित है। अगर ये सब लंबित है तो वो (माननीय सर्वोच्च न्यायालय) इस याचिका पर फैसला कैसे दे सकते हैं?”
महबूबा ने आरोप लगाया कि परिसीमन चुनाव से पहले धांधली की एक सोची समझी चाल थी। यही उन्होंने किया है, बहुमत को अल्पसंख्यक (Minority) में बदल कर भाजपा के पक्ष में। हमने परिसीमन आयोग की चर्चाओं में भी हिस्सा नहीं लिया है।”
ये पूछे जाने पर कि क्या उन्हें अभी भी न्यायपालिका पर भरोसा है, महबूबा ने कहा कि अदालतें देश में किसी की भी आखिरी उम्मीद और सहारा हैं। जहां तक न्यायपालिका की बात है तो एक गरीब कहां जायेगा? यहां तक कि (मुख्य) जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) ने कहा है कि निचली अदालतें जमानत देने से डरती हैं। अगर कोई अदालत जमानत देने से डरती है, तो वो (निष्पक्ष) फैसला कैसे सुनाएंगे? एक वक्त था जब अदालत के एक फैसले ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की गद्दी छीन ली थी। आज लोगों को अदालतों से जमानत तक नहीं मिलती है।