न्यूज डेस्क (विश्वरूप प्रियदर्शी): सुप्रीम कोर्ट (SC) ने आज (12 जुलाई 2022) उत्तर प्रदेश पुलिस (Uttar Pradesh Police) द्वारा सीतापुर (Sitapur) में दर्ज मामले में फैक्ट-फाइडिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ (Fact-Finding Website Alt News) के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर (Mohammad Zubair) को दी गयी अंतरिम जमानत को बढ़ा दिया। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना (Justice DY Chandrachud and Justice AS Bopanna) की पीठ ने मामले की सुनवाई 7 सितंबर को तय की और उत्तर प्रदेश सरकार को जुबैर की याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिये चार सप्ताह का समय दिया।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने जुबैर की याचिका पर हलफनामा दाखिल करने के लिये समय मांगा जुबैर की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस (Senior Advocate Colin Gonsalves) ने पीठ को बताया कि उनकी अंतरिम जमानत केवल पांच दिनों के लिये थी और आज वो समाप्त हो रही है। इस पर पीठ ने कहा कि वो जुबैर की अंतरिम जमानत जारी रखेगी।
पीठ ने कहा कि, “राज्य ने जवाबी हलफनामा दायर करने के लिये समय मांगा है। 4 हफ़्ते के भीतर जवाब दाखिल करना है और उसके बाद 2 हफ़्ते के भीतर जवाब देना है। सीतापुर प्राथमिकी मामले में अंतरिम जमानत जारी रहेगी। 7 सितंबर 2022 को इस सूचीबद्ध मामले का निस्तारण कर दिया जायेगा”
जुबैर ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा सीतापुर में एक ट्वीट के लिये दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया था, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर तीन हिंदू संतों को ‘घृणा फैलाने वाला’ कहा था। बीते हफ्ते शीर्ष अदालत ने जुबैर को सीतापुर में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में पांच दिनों के लिये अंतरिम जमानत दी थी।
शीर्ष अदालत ने साफ किया था कि अंतरिम जमानत आदेश सिर्फ जुबैर के खिलाफ सीतापुर में दर्ज प्राथमिकी के संबंध में थी और इसका दिल्ली में दर्ज मामले से कोई लेना-देना नहीं है। जमानत पर शर्तें लगाते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि वो बेंगलुरू (Bangalore) या कहीं और इलेक्ट्रॉनिक सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे। वो मामले के संबंध में ट्वीट नहीं करेंगे, पीठ ने कहा था। साथ ही ये भी साफ कर दिया था कि इस आदेश से सीतापुर मामले में जांच, सबूतों की जब्ती में भी कोई बाधा नहीं आयेगी।
दिल्ली की अदालत ने जुबैर को साल 2018 में उनके द्वारा पोस्ट किये गये एक ट्वीट पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में दिल्ली पुलिस (Delhi Police) द्वारा दर्ज एक मामले में न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। बीते हफ्ते उन्हें सीतापुर कोर्ट के सामने पेश किया गया था, जिसने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया। बीते सोमवार (11 जुलाई 2022) को यूपी की लखीमपुर कोर्ट ने भी उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
सुप्रीम कोर्ट जुबैर की गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दे रहा था, जिसमें कथित तौर पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिये ट्वीट पर दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार किया गया था।
बीते हफ्ते हुई सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने जुबैर की याचिका का विरोध किया और कहा कि- ये एक ट्वीट के बारे में नहीं है। वो एक ऐसे सिंडिकेट का हिस्सा है जो देश को अस्थिर करने के इरादे से नियमित रूप से इस तरह के ट्वीट पोस्ट कर रहे है। इस मामले में जो नज़र आता है उससे कहीं ज़्यादा है। कई तथ्य दबाये-छुपाये गये हैं और उनका कहना है कि वो फैक्ट-फाइडिंग वेबसाइट चलाते है”
उन्होंने पीठ से कहा था कि, “मामले में मनी ट्रेल एंगल (Money Trail Angle) भी शामिल है। क्या भारत के विरोधी देशों से उन्हें डोनेशन मिली है या नहीं, इसकी जांच की जा रही है।” सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि एक अकेला ट्वीट क्राइम नहीं है, इसके पीछे देश विरोधी गतिविधियों का लंबा सिलसिला छिपा हुआ है, जिसकी आपराधिक जांच की जा रही है और वो आदतन अपराधी है।
एएसजी एसवी राजू ने कहा था कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की मंशा है या नहीं, ये जांच का विषय है। ASG ने आगे कहा था कि प्रथम दृष्टया मामला 295A (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य) और 153A (धर्म, जाति, जन्म स्थान, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) के तहत बनता है।
जुबैर की पैरवी कर रहे है वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा था कि अगर वो अभद्र भाषा का इंगित करने और पुलिस को रिपोर्ट करने की भूमिका निभा रहे हैं, तो ये धर्मों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा नहीं दे रहा है, वो असल में धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दे रहे है। गोंजाल्विस ने कहा कि वो उनसे दुश्मनी को बढ़ावा देना बंद करने, अभद्र भाषा को रोकने के लिये कह रहे हैं।
गोंजाल्विस ने कहा था कि जुबैर की जान को खतरा है और इसलिए उन्होनें कोर्ट का रूख किया। गोंजाल्विस ने ट्विटर पर मिली कुछ धमकियों का भी जिक्र किया जहां उन्होंने कहा था कि उन्हें सीधे गोली मारने वाले को 1 लाख रूपये के इनाम देने का ऐलान किया गया था।
जुबैर ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 10 जून के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जहां उन्होनें उत्तर प्रदेश के सीतापुर में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि जब जांच शुरूआती चरण में थी तो दखल देना जल्दबाजी होगी।
उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर करते हुए जुबैर ने मामले में जांच पर रोक लगाने और यूपी पुलिस को प्राथमिकी के आधार पर आगे बढ़ने, मुकदमा चलाने या गिरफ्तारी जैसे गतिविधियों पर रोक लगाने का निर्देश देने के लिये कोर्ट से गुहार लगायी थी।
प्राथमिकी एक ट्वीट के लिये दर्ज की गई थी जिसमें उन्होंने कथित तौर पर हिंदू संतों यति नरसिंहानंद सरस्वती, बजरंग मुनि और आनंद स्वरूप (Yeti Narasimhanand Saraswati, Bajrang Muni and Anand Swaroop) को ट्विटर पर “घृणा फैलाने वाले” कहा था। जुबैर के खिलाफ 1 जून को आईपीसी की धारा 295 (ए) और आईटी अधिनियम की धारा 67 के तहत सीतापुर जिले के खैराबाद पुलिस स्टेशन (Khairabad Police Station) में साधुओं की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर ठेस पहुंचाने के लिये एफआईआर दर्ज की गयी थी।
अदालत में जुबैर ने कहा था कि उनके खिलाफ प्राथमिकी के आरोप “बिल्कुल झूठे और निराधार” हैं। उन्होनें निर्दोष होने का दावा किया और कहा कि मैनें कोई अपराध नहीं किया है। उनकी ओर से दायर याचिका में कहा गया कि, याचिकाकर्ता (जुबैर) को गिरफ्तार करने की पुलिस की धमकी और याचिकाकर्ता का जीवन और स्वतंत्रता खतरे में है। प्राथमिकी में इस आपराधिक अपराध को शामिल करने में प्रतिवादी (यूपी पुलिस) ने जिस तरह से हिंसक, दुर्भावनापूर्ण और मनमानी तरीके से काम किया है। इससे बहुत कुछ साफ हो जाता है।”