न्यूज डेस्क (प्रियंवदा गोप): सुप्रीम कोर्ट (SC-Supreme Court) ने आज (29 सितम्बर 222) एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि सभी महिलायें सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (Medical Termination of Pregnancy Act) में बलात्कार शब्द के मतलब में वैवाहिक बलात्कार भी शामिल होना चाहिये। अदालत ने ये भी कहा कि कानून हमेशा एक जैसा नहीं रह सकता, वक्त के साथ कानून में भी बदलाव लाये जाने चाहिये। जिस तरह से लिव-इन जैसे गैर-पारंपरिक संबंधों को कानून के तहत मान्यता दी जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना (Justice JB Pardiwala and Justice AS Bopanna) की पीठ ने एमटीपी अधिनियम की व्याख्या पर ये फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि गर्भपात कानूनों के तहत विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच का अंतर नहीं होना चाहिये। ये रूढ़ि को कायम रखता है कि सिर्फ विवाहित महिला ही सेक्सुअली एक्टिव होती है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक वैवाहिक बलात्कार पर फैसला नहीं सुनाया है, लेकिन अदालत ने पहली बार इसे गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम (Prenatal Diagnostic Techniques Act) के तहत अवांछित गर्भावस्था के मकसद इस बात को मान्यता दी है। खास बात ये है कि कोर्ट ने इस बात पर ज्यादा जोर दिया कि सेक्सुअली एक्टिव (Sexually Active) होना सिर्फ विवाहित महिलाओं तक ही सीमित नहीं है। अगर ऐसा माना जाता है तो ये रूढ़िवादी सोच है। सेक्सुअली एक्टिव होने की श्रेणी में अविवाहित महिलायें भी आती है।
बता दे कि शीर्ष अदालत ने 23 अगस्त को कहा था कि वो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम और विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच 24 हफ्ते की गर्भावस्था तक गर्भपात की मंजूरी देने के लिये भेदभाव को खत्म करने के नियमों की व्याख्या करेगी। इसी क्रम में कोर्ट ने 21 जुलाई को एक 25 वर्षीय लड़की को आपसी सहमति से पैदा हुए 24 हफ़्ते के गर्भ को गिराने की मंजूरी दी थी।