न्यूज़ डेस्क (नई दिल्ली): सर्वोच्च न्यायालय सोमवार को 94 वर्षीय महिला द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें इंदिरा गाँधी द्वारा 1975 में लगायी गई इमरजेंसी (Emergency) को “असंवैधानिक” घोषित करने और इसमें सम्मिलित अधिकारियों से 25 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की गई थी। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की तीन-न्यायाधीश पीठ 7 दिसंबर को वीना सरीन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करेगी।
दलील में कहा गया है कि पीडिता अपने, अपने मृत पति और अपने परिवार के साथ हुए अत्याचारों के कारण जीवन भर पीड़ा सहती रही है जिसके चलते मुआवज़े की मांग की गई है। दलील में कहा गया है कि भारतीय लोकतंत्र में सबसे काले अध्याय से उन्हें न्याय मिलना अभी तक बाकी है, उन्होंने कहा कि आपातकाल के समय अधिकारियों के हाथों उन पर अत्याचार किया गया था।
याचिका में कहा गया है कि “याचिकाकर्ता आपातकाल की घोषणा के बाद जून 1975 की अवधि के दौरान अपने मृत पति और परिवार सहित आघात और उत्पीड़न से दुखी है। इसमें कहा गया कि सरीन और उनके पति को बिना किसी उचित कारण के जेल में डाल दिए जाने के डर से देश छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था।
आपातकाल के बारे में बताते हुए, सरीन ने आरोप लगाया कि तत्कालीन सरकारी अधिकारियों ने करोल बाग और कनॉट प्लेस में अपने पति के स्वर्ण कला व्यवसाय (gold arts business) को बंद कर दिया, जिसे उन्होंने 25 साल की कड़ी मेहनत के साथ खड़ा किया था।